दोस्तों ने कहा कबाड़ इकट्ठा क्यों कर रहे हो? आज उसी से फर्नीचर बनाकर कमा रहे करोड़ों

tyre furniture

अहमदनगर के प्रमोद सुसरे ने अपने हुनर के भरोसे नौकरी छोड़कर रीसाइकल्ड फर्नीचर बनाने का काम शुरू किया। लोगों ने उनका मज़ाक भी उड़ाया लेकिन आज वह अपने इसी स्टार्टअप से करोड़ों का मुनाफा कमा रहे हैं।

कहते हैं न, किसी एक का कचरा दूसरे के लिए बड़े काम की चीज हो सकती है। वेस्ट में से बेस्ट बनाना अपने आप में एक कला है। अहमदनगर के 28 वर्षीय प्रमोद सुसरे का स्टार्टअप भी वेस्ट में से बेस्ट बनाने का काम कर रहा है। वह इंडस्ट्रियल वेस्ट को अपसाइकल करके, गार्डन, कैफ़े और होटल्स के लिए बेहद अनोखे फर्नीचर बनाने का काम कर रहे हैं। 

उन्होंने साल 2018 में,  नौकरी करते हुए इस तरह के फर्नीचर बनाना शुरू किया। हुनर और कड़ी मेहनत के दम पर, उन्हें ऑर्डर्स भी मिलने शुरू हो गए, और सिर्फ तीन साल के अंदर उन्होंने एक करोड़ से ज्यादा का मुनाफ़ा कमाया। आज वह अपने साथ, 15 लोगों को रोजगार दे रहे हैं। कोरोनाकाल में जब ऑर्डर्स नहीं मिल रहे थे, तब उन्होंने अपने पास उपलब्ध सामान से सैनिटाइजर डिस्पेंसर मशीन, कोविड हॉस्पिटल्स के लिए बेड आदि बनाने का काम भी किया। द बेटर इंडिया से बात करते हुए प्रमोद बताते हैं, “जब मैं फैक्ट्री में काम करता था, तो मेंटेनेंस इंजीनियर होते हुए भी, मैं वेल्डिंग और फिक्सिंग जैसे सभी काम करता था। लोग मज़ाक भी उड़ाते थे कि मेकेनिक वाले काम क्यों कर रहे हो? लेकिन मेरा वही अनुभव आज मेरे काम आ रहा है।”

old tyre recycling

नौकरी के साथ शुरू किया बिज़नेस 

प्रमोद ने, अहमदनगर से ही इंजीनियरिंग की पढ़ाई की। इसके बाद वह, पुणे की एक कंपनी में मेंटेनेंस इंजीनियर का काम करने लगे। किसान परिवार से ताल्लुक रखने वाले प्रमोद का बचपन से ही सपना था कि वह खुद का बिज़नेस करें। लेकिन घर की आर्थिक स्थिति को देखते हुए, उन्होंने नौकरी करना शुरू कर दिया। उस दौरान भी वह, कई बिज़नेस आईडियाज़ के बारे में सोचते रहते थे। लेकिन उनके पास काम शुरू करने के लिए कोई पूंजी नहीं थी।

प्रमोद बताते हैं, “मेरे पिता के पास मात्र एक एकड़ ही जमीन है, जिससे घर चलाना मुश्किल था। मैं अपनी सैलरी से भी हर महीने घर पैसे भेजा करता था।” एक बार सोशल मीडिया के जरिए उन्होंने देखा कि जापान में ड्रम और टायर का इस्तेमाल करके बेहद सुंदर फर्नीचर बनाए जा रहे हैं। चूँकि जहां वह काम करते थे, वह फैक्ट्री इंडस्ट्रियल इलाके में ही थी। इसलिए वह, वहां अक्सर ड्रम वगैरह को कबाड़ में जाते देखा करते थे। एक दिन जब वह अपनी पंक्चर बाइक ठीक करवाने टायर की दुकान पर गए, तो वहां उन्हे टायर के बारे में भी ऐसा ही कुछ पता चला। वे लोग टायर को 7 रुपये प्रति किलो की कीमत पर कबाड़ में दे देते थे। 

बस फिर क्या था प्रमोद ने कुछ टायर और ड्रम्स बड़े ही सस्ते दाम पर खरीदे, और सेकंड हैंड दुकान से ड्रिल मशीन सहित जरूरत की बाकी चीजें लाकर काम करना शुरू किया। वह ऑफिस से आकर हर दिन चार पांच घंटे फर्नीचर बनाने का काम करने लगे। वह बताते हैं, “चूँकि मेरे पास कई फर्नीचर बनकर तैयार थे,  जिसे खरीदने वाला कोई नहीं था। तो मैंने आस-पास के जूस सेंटर में उसे रख दिया और उनके मालिक को अपना नंबर भी बता दिया ताकि जिसे जरूरत हो फ़ोन पर पूछ सके।”

tyre furniture

इस तरह उन्हें कुछ छोटे-छोटे ऑर्डर्स मिलने शुरू हो गए। जिन्हें वह ऑफिस के बाद मिले समय में बनाया करते थे। लेकिन इन एक-दो ऑडर्स के भरोसे वह नौकरी नहीं छोड़ सकते थे। उन्होंने एक छोटी सी जगह भी किराए पर ली, जिसमें वह काम कर सकें। तक़रीबन एक साल तक वह ऐसे ही काम करते रहे और आख़िरकार एक साल बाद अक्टूबर 2019 में उन्हें पुणे के एक कैफ़े के लिए फर्नीचर बनाने का काम मिला। जो एक बड़ा ऑर्डर था और साथ ही, उनके पास कुछ और ऑर्डर्स भी थे। जिसके बाद उन्होंने नौकरी छोड़कर स्टार्टअप पर काम करना शुरू किया। उन्होंने अपनी मदद के लिए दो लोगों को रखा और P2S International नाम से अपनी कंपनी भी रजिस्टर करवाई।  

कोरोना काल में बिज़नेस 

हालांकि, उन्होंने घरवालों को एक साल तक अपने इस स्टार्टअप के बारे में नहीं बताया था। लेकिन कोरोना में जब उन्हें काम बंद करके घर जाना पड़ा, तब उन्होंने घर पर सबको बताया। लेकिन वह सिर्फ एक महीने ही खाली बैठे थे। प्रमोद बताते हैं, “चूँकि मेरे साथ काम करने वाले लोग घर नहीं जा पाए थे और मेरे पास सामान भी था, तो हमने मई महीने में सैनिटाइजर डिस्पेंसर मशीन बनाने का काम शुरू कर दिया। हमें बस पाइप्स लाने पड़े, बाकि वेल्डिंग करके हमने कई मशीनें बनाई और अच्छा मुनाफा भी कमाया।” 

लॉकडाउन खुलते ही उन्हें मुंबई, पुणे के कई होटल्स और कैफ़े के लिए फर्नीचर बनाने का काम मिलने लगा। वहीं इस साल, जब देशभर में कोविड मरीज़ों के लिए बेड की दिक्कत थी। तब उन्होंने कोविड सेंटर के लिए बेड बनाने का काम भी किया। 

इसी साल मार्च में उन्हें साउथ अफ्रीका से भी ऑर्डर मिला था। अब तक उन्होंने 15 होटल्स और कैफ़े के लिए फर्नीचर बनाए हैं। फ़िलहाल उनके पास हैदराबाद, विशाखापत्तनम और गुजरात से भी फर्नीचर के ऑर्डर्स हैं।

recycling drums to make sofa

प्रमोद बताते हैं, “हम आज भी कई सेकंड हैंड टूल्स इस्तेमाल कर रहे हैं, जो मैंने अपनी नौकरी के दौरान खरीदे थे। फर्नीचर बनाने का सामान आसानी से मुझे अपनी आस-पास की फैक्ट्री से मिल जाता है। वहीं, इसकी मार्केटिंग में भी मैंने कोई पैसा नहीं खर्च किया। मात्र सोशल मीडिया के जरिए ही कई लोगों ने मेरे बारे में जाना और ऑर्डर दिए।”

प्रमोद को इस साल दो करोड़ से ज्यादा मुनाफ़े की है उम्मीद 

अंत में वह कहते हैं, ‘जब मैंने पुराने टायर और टूटी चीजें खरीदना शुरू किया, तो मेरे दोस्त कहते थे, ‘क्यों नौकरी छोड़कर कबाड़ का काम कर रहे हो।’ लेकिन मुझे खुद पर यकीन था, इसलिए मैंने कभी उनकी बातों पर ध्यान नहीं दिया। आज वही दोस्त मेरी तारीफ करते हैं, जिससे मुझे बेहद ख़ुशी मिलती है।”

वीडियो में देखिये कैसे कबाड़ से जुगाड़ करके प्रमोद बनाते हैं खूबसूरत फर्नीचर –

प्रमोद के बनाए फर्नीचर देखने या खरीदने के लिए आप, उन्हें फेसबुक और इंस्टाग्राम पर सम्पर्क कर सकते हैं।

संपादन – अर्चना दुबे

यह भी पढ़ें: किसान माता-पिता चाहते थे इंजीनियर बनाना, पर बेटा एम्ब्रॉइडरी सीखकर बन गया सफल बिज़नेसमैन

यदि आपको इस कहानी से प्रेरणा मिली है, या आप अपने किसी अनुभव को हमारे साथ साझा करना चाहते हो, तो हमें hindi@thebetterindia.com पर लिखें, या Facebook और Twitter पर संपर्क करें।

We at The Better India want to showcase everything that is working in this country. By using the power of constructive journalism, we want to change India – one story at a time. If you read us, like us and want this positive movement to grow, then do consider supporting us via the following buttons:

Let us know how you felt

  • love
  • like
  • inspired
  • support
  • appreciate
X