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एक इंजीनियर का बनाया यह कैफ़े है ख़ास, यहाँ खाएं, पकाएं, बर्तन धोएं और घर ले जाएँ

हरियाणा के डाबला गांव के रहनेवाले नीरज शर्मा पेशे से तो इंजीनियर हैं, लेकिन जब उन्हें मिट्टी के बर्तनों का महत्त्व पता चला, तो उन्होंने केमिकल-मुक्त मिट्टी के बर्तन बनाने और बेचने के साथ-साथ लोगों को भी इसके गुणों से जोड़ना चाहा और इस तरह शुरुआत हुई ‘मिट्टी रसोई’ की!

मिट्टी के बर्तन अरसे से भारतीय घरों का हिस्सा रहे हैं। गर्मियों में सुराही के पानी का वह स्वाद, जिसने न केवल हमारी प्यास बुझाई, बल्कि बचपन में न जाने कितनी बार हमें सुकून भी दिया है। मिट्टी के बर्तनों का इस्तेमाल न सिर्फ़ पानी रखने के लिए, बल्कि खाना पकाने के लिए भी किया जाता रहा है।

समय के साथ मॉडर्न और इलेक्ट्रिक उपकरणों का चलन बढ़ा, लेकिन मिट्टी के बर्तन का महत्त्व आज भी उतना ही है। आज भी छोटे कस्बों और शहरों में लोग मिट्टी के तवे पर रोटी पकाते हैं। बाज़ार में मिट्टी के बर्तनों की मांग जितनी बढ़ती जा रही है, इसे बनाने का बिज़नेस भी उतनी ही तेज़ी से बढ़ रहा है। लेकिन देश की ज़्यादातर जगहों में बन रहे मिट्टी के इन बर्तनों को कोई कुम्हार नहीं, बल्कि मशीन तैयार कर रही है।  

डाई मोल्ड और केमिकल कोटिंग के साथ काफ़ी फैंसी मिट्टी के बर्तन तैयार किए जाते हैं। मिट्टी के बर्तनों की इसी सच्चाई को जानने के बाद, झज्जर (हरियाणा) के डाबला गाँव के रहनेवाले नीरज शर्मा को ‘मिट्टी, आप और मैं’ नाम से अपना बिज़नेस शुरू करने की प्रेरणा मिली।

स्वादिष्ट खाने के साथ सिखाते हैं मिट्टी के बर्तनों का इस्तेमाल

Mitti Rasoi
मिट्टी रसोई

आज नीरज अपना एक कैफ़े ‘मिट्टी रसोई’ चला रहे हैं, जो कई मायनों में ख़ास है। इस किचन की शुरुआत लगभग तीन महीने पहले ही हुई है, लेकिन यहां आने वाले मेहमानों की तादात देखकर यह यकीन हो जाता है कि हमारी देश की मिट्टी में कुछ तो बात है। 

पेशे से इंजीनियर नीरज को जब मिट्टी के बर्तनों का महत्त्व पता चला, तो उन्होंने केमिकल-मुक्त मिट्टी के बर्तन बनाना और बेचना शुरू किया। पर अक्सर उन्हें ऐसे लोग मिलते थे, जो मिट्टी के बर्तनों में खाना खाना तो चाहते थे पर उन्हें यह पता ही नहीं था कि इनमें पकाना कैसे है और धोना कैसे है।

इसी समस्या का हल था ‘मिट्टी रसोई’ जहाँ लोगों को मिट्टी के बर्तन इस्तेमाल करने की एक तरह से ट्रेनिंग दी जाती है। इस अनोखे कैफ़े में मिट्टी के बर्तनों में खाना पकाया और परोसा ही नहीं जाता, बल्कि आने वाले मेहमानों को इन्हें इस्तेमाल करना भी सिखाया जाता है; जैसे इनमें पकाएं कैसे, इन्हें धोएं कैसे और इनका ध्यान कैसे रखें!

संपादन- अर्चना दुबे

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