डॉ. राजेन्द्र प्रसाद न केवल देश के पहले राष्ट्रपति थे, बल्कि उन्हें जन-साधारण का राष्ट्रपति कहा जाता है। 3 दिसंबर 1884 में बिहार के सीवान जिले के एक गाँव में जन्में राजेन्द्र बचपन से ही बहुत प्रतिभाशाली थे। एक साथ दोनों हाथों से लिखने में माहिर राजेन्द्र का दिमाग अपनी उम्र के बच्चों से कहीं ज्यादा तेज़ चलता था।
कोलकाता विश्विद्यालय की प्रवेश परीक्षा में प्रथम स्थान पाने वाले राजेन्द्र को विश्वविद्यालय की ओर से 30 रुपये की स्कॉलरशिप मिलती थी। उन्होंने साल 1915 में वकालत में मास्टर्स की डिग्री हासिल की और साथ ही उन्होंने वकालत में ही डॉक्ट्रेट भी किया।
वे पढ़ाई में इतने तेज थे कि बहुत बार उनके शिक्षक भी हैरान रह जाते थे। उनके स्कूल के दिनों का ऐसा ही एक किस्सा बहुत मशहूर है। कहा जाता है कि एक परीक्षक ने उनके परीक्षा पत्र पर लिखा था कि ‘यह छात्र परिक्षण करने वाले शिक्षक से भी बेहतर है।’
दरअसल, उस परीक्षा में बच्चों को दस प्रश्न पूछे गये थे और निर्देश दिया गया था कि ‘किन्हीं पाँच प्रश्नों के उत्तर दें।’ राजेन्द्र ने सभी 10 प्रश्नों के उत्तर लिखे और अपनी उत्तर-पुस्तिका पर निर्देश लिख दिया कि ‘कोई भी पाँच उत्तर जांच लें!’ उत्तर-पुस्तिका का परिक्षण करने वाले शिक्षक ने जब यह पढ़ा तो उन्हें लगा कि यह छात्र बहुत ही घमंडी-किस्म का है शायद। लेकिन जैसे-जैसे वे उनके उत्तर पढ़ते गये तो उन्हें समझ आया कि राजेन्द्र का स्तर अपने बाकी सभी सहपाठियों की तुलना में बहुत ऊँचा है। और उन्होंने उक्त पंक्तियाँ राजेन्द्र के उत्तर-पत्रिका पर लिखी!
हालांकि, केवल यही एक किस्सा नहीं है जो उनकी प्रतिभा का प्रमाण है। बल्कि और भी कई घटनाओं से पता चलता है कि हमारे देश के पहले राष्ट्रपति की योग्यता और बुद्धिमत्ता का कोई सानी न था।
उनकी यही बौद्धिक क्षमता एक बार गाँधी जी के बड़े काम आई। गाँधी जी एक बार राउंड टेबल कांफ्रेंस में भाग लेने के लिए जा रहे थे लेकिन उनका एक जरुरी डॉक्यूमेंट खो गया। बहुत ढूंढने पर भी जब डॉक्यूमेंट नहीं मिला तो गाँधी जी ने राजेन्द्र बाबू से पूछा कि क्या उनके पास कोई दूसरी कॉपी है, क्योंकि डॉक्यूमेंट को उन्होंने ही टाइप करवाया था।
अब राजेन्द्र बाबू के पास दूसरी कॉपी तो नहीं थी लेकिन उन्होंने बापू से कहा कि वे उनके लिए वह डॉक्यूमेंट मुंह-जुबानी बोल सकते हैं, क्योंकि उन्हें उसमें लिखी सभी बातें याद थीं। बाद में जब असली डॉक्यूमेंट बापू को मिला तो उन्होंने दोनों को पढ़ा, राजेन्द्र बाबू का लिखवाया हुआ डॉक्यूमेंट लगभग पूरा सही था।
देश की सेवा के लिए हमेशा तत्पर रहने वाले राजेन्द्र एकमात्र नेता रहे, जिन्हें 2 बार राष्ट्रपति पद के लिए चुना गया। बताया जाता है कि अपने कार्यकाल के दौरान वे केवल अपना आधा वेतन ही लेते थे और कार्यकाल के अंतिम वर्षों में तो वे केवल एक चौथाई ही लेते थे।
1962 में जब उन्होंने राष्ट्रपति पद से इस्तीफ़ा दिया तो दिल्ली के रामलीला मैदान में बहुत से लोग उनके विदाई समारोह के लिए आये और उन्हें सम्मानित किया। साल 1962 में राजेन्द्र बाबू को देश के सर्वोच्च नागरिक सम्मान भारत रत्न से सम्मानित किया गया।
राजेंद्र प्रसाद ने अपने जीवन का आख़िरी समय पटना के पास सदाकत आश्रम में बिताया। 28 फरवरी 1963 को उनका देहांत हो गया। पर आज भी वे हर भारतीय के दिल में बसते हैं।
संपादन – मानबी कटोच
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