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27 स्पेशल बच्चों की माता-पिता बनकर सेवा करता है यह युवा कपल, खुद उठाते हैं सारा खर्च

साल 2016 से राजकोट के उपलेटा तालुका की किरण पिठिया, अपने पति रमेश पिठिया के साथ मिलकर, गरीब और बेसहारा मानसिक और शारीरिक रूप से कमजोर बच्चों के लिए एक विशेष संस्था चला रही हैं, जहां इन बच्चों की मुफ्त में सेवा की जाती है।

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divya jyot divyang (Gujarat Social Worker Couple Work For Mentally Challenged)

उपलेटा तालुका (गुजरात ) की किरण पिठिया और उनके पति रमेश पिठिया ने शादी के बाद, बड़ा घर या किसी लंबे टूर पर जाने की योजना नहीं बनाई, बल्कि उन्होंने  ऐसे दिव्यांग बच्चों की सेवा करने का फैसला किया, जिनके माता-पिता आर्थिक रूप से कमजोर हों या जो रिश्तेदारों के सहारे पल रहे हों।

ऐसा बहुत कम देखने को मिलता है कि पति-पत्नी दोनों के जीवन का लक्ष्य एक ही हो।लेकिन किरण और उनके पति रमेश हमेशा से दिव्यांगों के प्रति विशेष सहानुभूति रखते थे। इसका कारण यह है कि किरण बचपन से अपने दिव्यांग भाई के साथ पली-बढ़ी हैं और ऐसे विशेष बच्चों की परेशानियां बड़े अच्छे से समझती हैं।  वहीं, रमेश एक स्पेशल एजुकेटर हैं और उपलेटा के एक सरकारी स्कूल में पढ़ाते हैं।  

kiran pithiya working for mentally challenged (Gujarat Social Worker Couple Work For Mentally Challenged)

किरण कहती हैं, "मुझे हमेशा से ऐसे जरूरतमंद बच्चों के लिए कुछ करने की इच्छा थी,  मैंने कभी सोचा नहीं था कि मैं कुछ कर पाउंगी। लेकिन जब मैंने अपने पति से अपने मन की बात कही, तो उन्होंने मेरा साथ देने का फैसला किया। हम गांव के आस-पास कई ऐसे बच्चों को जानते थे, जिन्हें सहायता की जरूरत थी।"

उस दौरान, किरण की उम्र मात्र 25 साल  थी और वह एक प्राइवेट स्कूल में पढ़ाया करती थीं, लेकिन जब उन्होंने संस्था बनाने का फैसला किया, तब उन्होंने नौकरी छोड़ दी। वहीं, रमेश ने नौकरी करना जारी रखा।

उन्होंने मात्र 10 बच्चों के साथ शुरुआत की थी, जिसके लिए उन्होंने एक घर को किराये पर लिया और बच्चों के लिए बुनियादी सुविधाएं बनाईं। 'दिव्य ज्योत दिव्यांग' नाम से उन्होंने अपनी संस्था का रजिस्ट्रेशन भी कराया, ताकि ज्यादा लोगों की मदद मिल सके । उन्होंने इस काम के लिए दो-तीन लोगों को काम पर भी रखा, साथ ही  किरण भी 24 घंटे सेवा के लिए हाजिर रहती हैं। 

नेक काम को मिला सामाजिक सहयोग 

couple from gujarat running an NGO

रमेश, बच्चों को वोकेशनल ट्रेनिंग देने और  पढ़ाने का काम करते हैं। रमेश कहते हैं, "हमें शुरुआत में इस संस्था को चलाने में हर महीने तक़रीबन 50 हजार रुपये का खर्च आता था। संस्था में रहनेवाले दिव्यांगों के परिवार से कोई मदद नहीं मिलती थी, क्योंकि  ज्यादातर बच्चे बेहद गरीब परिवार से आते हैं।  लेकिन जैसे-जैसे लोगों को हमारे काम के बारे पता चलता गया,  हमें अपने गांव सहित आस-पास के गांवों से भी मदद मिलने लगी। कई लोग अपने जन्मदिन पर तोहफे और पैसों की मदद करने लगे।"

किरण के लिए यह काम शुरुआत में काफी मुश्किल था, क्योंकि उन्हें अपने से बड़ी उम्र के दिव्यांगों की भी सेवा करनी पड़ती थी।  लेकिन वह इसे अपने जीवन का विशेष लक्ष्य समझती हैं, इसलिए घबराने के बजाय  उन्होंने हिम्मत से काम लिया।   फिलहाल, वह अपने खुद के छह साल के बेटे की देखभाल के साथ, इन दिव्यांगों की सेवा भी करती हैं।

 यह दम्पति डोनेशन के जरिए  संस्था के लिए एक मकान बना रहे हैं। संस्था में अभी 27 बच्चे हैं, लेकिन उनका मानना है कि ज्यादा सुविधा होने से वे और जरूरतमंद लोगों की मदद कर पाएंगे। 

आप उनकी संस्था के बारे में जानने या उन तक अपनी मदद पहुंचाने  के लिए उन्हें 9714536408 पर सम्पर्क कर सकते हैं।  

संपादन -अर्चना दुबे 

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