कैसा होता है कोविड-19 का आइसोलेशन वार्ड? जानिए कोरोना का इलाज कर रहे डॉक्टर से

"हम एक बार फुल बॉडी सूट पहन लेते हैं तो पूरी शिफ्ट के दौरान आठ घंटे इसे पहने रहते हैं। यह एक तरह का स्पेससूट जैसा होता है, जो एयरटाइट होता है। इसके बाद ना तो हम कुछ खा-पी सकते हैं, ना वॉशरूम जा सकते हैं और ना ही थोड़ी देर के लिए इसे उतार सकते हैं, और इस तरह हमलोग आइसोलेशन वार्ड के अंदर मरीज़ों की देखभाल करते हैं।”

गुड़गांव के फोर्टिस मेमोरियल रिसर्च इंस्टीट्यूट में पल्मोनोलॉजी विभाग के निदेशक, डॉ. मनोज गोयल ने अब तक कोविड-19 से संक्रमित छह रोगियों का इलाज किया है, जिनमें से तीन को अस्पताल से छुट्टी दे दी गई है और फिलहाल वे अपने घरों में क्वारंटीन हैं। इस लेख में, द बेटर इंडिया से बात करते हुए डॉ. गोयल ने बताया है कि मरीज़ का कोविड-19 टेस्ट पॉज़िटिव आने के बाद से लेकर उसके ठीक होने और डिस्चार्ज होने तक का दौर कैसा होता है।

डॉ. गोयल कहते हैं, “सरकार के आदेश अनुसार, अगर मरीज़ का कोविड-19 का टेस्ट पॉज़िटिव आता है तो सबसे पहले उसे भर्ती करना होता है। ज़्यादातर वे मरीज़ आते हैं, जिनमें सर्दी,खांसी या बुखार जैसे एक या ज़्यादा लक्षण होते हैं। जैसे ही हमें पुष्टि होती है कि मरीज़ कोरोना वायरस से संक्रमित है, हम कुछ और बुनियादी जांच करते हैं, जिसमें ब्लड टेस्ट और छाती का एक्स-रे शामिल हो सकता है। इसके बाद मरीज़ को एक आइसोलेशन वार्ड में रखा जाता है।”

Stay at home and stay safe.

क्या है आइसोलेशन वार्ड?

आइसोलेशन वार्ड एक विशेष क्षेत्र है जिसे अस्पतालों ने अकेले कोविड-19 रोगियों के इलाज के लिए अलग रखा है। डॉ. गोयल बताते हैं, “एक बार जब मरीज़ आइसोलेशन वार्ड के अंदर होता है, तो हम सभी सामान्य दवाओं और व्यक्तिगत उपचार के माध्यम से, एक नियंत्रित वातावरण में उसकी निगरानी करते हैं।”

डॉ. गोयल ने उस सुरक्षात्मक गियर के बारे में भी बताया जिसे आइसोलेशन वार्ड में जाने से पहले चिकित्सा कर्मियों को पहनना पड़ता है। “हम जो पहनते हैं वह एक प्रकार का स्पेससूट जैसा होता है, जो एयरटाइट होता है। सभी डॉक्टर, नर्स और पैरा मेडिकल स्टाफ इसे पहनते हैं। अपनी शिफ्ट शुरू होते समय हम इसे पहनते हैं और फिर पूरी शिफ्ट के दौरान आठ घंटे इसे पहने रहते हैं।”

इसके अलावा, एक बार जब यह सूट पहन लिया जाता है, उसके बाद ना तो कुछ खा-पी सकते हैं, ना वॉशरूम जा सकते हैं और ना ही बीच-बीच में, थोड़ी देर के लिए इसे उतारा जा सकता है। डॉ. गोयल समझाते हुए बताते हैं,”पूरी शिफ्ट के दौरान हम इसमें ही रहते हैं, और इस तरह हमलोग आइसोलेशन वार्ड के अंदर मरीज़ों की देखभाल करते हैं।”

रोगी के लिए घर जाना कब सुरक्षित है?

डॉ. गोयल बताते हैं, “एक बार जब मरीज़ में तीन दिन (72 घंटे) के लिए रोग के लक्षण दिखाई देना बंद हो जाता है तो हम दोबारा टेस्ट के लिए नमूने एकत्र करते हैं और जब लगातार दो बार टेस्ट निगेटिव आता है तब हम मरीज़ को डिस्चार्ज कर देते हैं।”

हालांकि, डिस्चार्ज के बाद भी, डॉक्टर मरीज़ को कम से कम 14 दिनों तक घर पर ही क्वारंटीन रहने की सलाह देते हैं, और उसके 14 दिनों बाद तक मरीज़ को सतर्क रहने की सलाह दी जाती है, जैसे घर से बाहर निकलते समय मास्क पहनना आदि। डॉ. गोयल कहते हैं, “मरीज़ की रिपोर्ट निगेटिव आने के बाद, कम से कम 28 दिनों के लिए उन्हें आइसोलेट और सतर्क रहने की सलाह दी जाती है।”

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कैसा लगता है आइसोलेशन वार्ड में रहना?

डॉ. गोयल कहते हैं, “वर्तमान में हमारे पास आइसोलेशन वार्ड में एक साथ देखभाल के लिए विभिन्न आवश्यकता वाले रोगी हैं। वार्ड खुद में पर्याप्त है। हमें जिन चीज़ों की ज़रूरत होती है, जैसे वेंटिलेटर से लेकर मॉनिटरिंग डिवाइस तक, सभी अंदर मौजूद हैं।

आमतौर पर कोविड-19 के रोगियों को दिए जाने वाले आहार के बारे में बात करते हुए वह कहते हैं, “उन्हें बहुत संतुलित और पौष्टिक आहार दिया जाता है, जिनमें फल और जूस शामिल होते हैं और जो प्रोटीन से भरपूर होता है। हालांकि ऐसा कुछ विशेष भोजन नहीं है जिसे वे खा सकते हैं या नहीं खा सकते हैं। हम सिर्फ यह सुनिश्चित करते हैं कि तैयार और परोसा जा रहा भोजन पौष्टिक हो।”

मरीज़ की मानसिक स्थिति का ख्याल कैसे रखा जाता है?

“ज्यादातर मामलों में हमने देखा है कि रोगी का इलाज कर रहे मेडिकल पेशेवरों की टीम पर रोगी और उनके परिवार का जबरदस्त विश्वास है। इससे हमें बहुत मदद मिलती है। इसके अलावा, हम यह सुनिश्चित करते हैं कि हम केवल रोगी को ही नहीं बल्कि उसके परिवार को भी परामर्श दें जो ज़्यादातर मामलों में अस्पताल का दौरा नहीं करते हैं और उन्हें पता नहीं होता है कि मरीज़ की हालत कैसी है।”

कई मामलों में मरीज़ के परिवार के सदस्य भी घर पर ही क्वारंटीन रहते हैं, इसलिए उनके बीच बातचीत की बहुत गुंजाइश नहीं होती है। डॉक्टर यह भी सुनिश्चित करते हैं कि परिवार को स्थिति से अवगत कराया जाए और उन्हें बताया जाए कि मरीज़ के साथ क्या हो रहा है। डॉ. गोयल कहते हैं, “हम उन्हें वीडियो कॉल करने और इस मुश्किल समय के दौरान संपर्क में रहने के लिए तकनीक का उपयोग करने के लिए प्रोत्साहित करते हैं। शुरू में, जब मरीज़ हमारे पास आते हैं तो वे बहुत आशंकित होते हैं और यहां तक ​​कि कोविड-19 को लेकर डरे रहते हैं। हालांकि, बार-बार काउंसलिंग के साथ, रोगी का डर दूर हो जाता है।”

Dr. Manoj Goel

मेडिकल टीम कैसे रहती है प्रेरित?

डॉ. गोयल कहते हैं, “जब से हमने चीन में प्रकोप के बारे में सुना तब से मेडिकल बिरादरी ने इसके लिए तैयारी शुरू कर दी थी। हमें पता था कि यह दुनिया के बाकी हिस्सों में भी फैल जाएगा और हमने अचानक होने वाले प्रकोप से निपटने के लिए खुद को मानसिक रूप से तैयार करना शुरू कर दिया था। हम कोविड-19 से डरते नहीं हैं। केवल मुझे ही नहीं, बल्कि अस्पताल में पूरे स्टाफ को पता है कि हम किस चीज़ का सामना कर रहें हैं। चाहे वह प्रशासन हो या सहायक या कर्मचारी, हम सबके सामने एक ही चुनौती है।”

इस बीमारी से लड़ना वाकई बहुत मेहनत का काम है, लेकिन डॉ. गोयल का मानना है कि अस्पताल का प्रत्येक सदस्य साहस के साथ खड़ा है और वे इससे लड़ने के लिए तैयार हैं।

मूल लेख: विद्या राजा
संपादन – अर्चना गुप्ता


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