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वाराणसी : ईंट-भट्ठों के किनारे लगती है पाठशाला, 2000 से भी ज्यादा बच्चों को पढ़ा रहे है युवा!

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वाराणसी : ईंट-भट्ठों के किनारे लगती है पाठशाला, 2000 से भी ज्यादा बच्चों को पढ़ा रहे है युवा!

डॉ. भानुजा शरण लाल (बाएं) और बच्चे पढ़ते हुए (दायें)

त्तर-प्रदेश के बनारस में युवाओं का एक संगठन ईंट के भट्ठों पर मजदूरी करने वाले बच्चों के जीवन को सँवारने की मुहीम चला रहा है। संगठन का नाम है 'मानव संसाधन एवं महिला विकास संगठन' और इसकी शुरुआत की थी प्रोफेसर राजा राम शास्त्री ने। आज उनकी इस पहल को आगे बढ़ा रहे हैं डॉ. भानुजा शरण लाल।

इनके साथ आज लगभग 100 युवा काम कर रहे हैं। पिछले चार सालों से ये सभी युवा हर दिन शाम को इन बच्चों को तीन-चार घंटे तक पढ़ाते हैं। इन बच्चों को सामान्य शिक्षा देने के बाद सरकारी स्कूलों में स्पेशल परिमशन पर नाम लिखवाया जाता है। सभी युवा मिल कर अब तक करीब दो हजार से भी ज्यादा बच्चों को शिक्षित कर चुके हैं, जिनमें से आधे से ज्यादे बच्चों को स्कूलों में प्रवेश मिल चुका है।

बच्चों के लिए कॉपी, किताब और अन्य साधनों की व्यवस्था भी संगठन द्वारा की जाती है। फ़िलहाल बनारस में 24 जगहों पर बच्चों की ऐसी कक्षाएं चल रही हैं।

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बच्चों को पढ़ाते हुए युवाओं की टीम

डॉ. भानुजा बताते हैं कि करीब चार साल पहले वे वाराणसी के बड़ागांव गए थे। गांव के ही किनारे ईंट के भट्ठे थे। भट्ठे के आस-पास मजदूरों की एक छोटी बस्ती थी। ये सभी भट्ठों में ही काम करते हैं। इन परिवारों के साथ लगभग 20 बच्चे साथ रहते हैं। ये बच्चे भी इन्हीं भट्ठों में मजदूरी करते थे।

वैसे तो देश में सभी को शिक्षा का अधिकार प्राप्त है। लेकिन इसके बावजूद ये बच्चे इससे वंचित रह जाएँ, ये डॉ. भानुजा को मंजूर नहीं था। इसलिए इन्होंने इन भट्ठों से ही शिक्षा की अलख जगानी शुरू की।

पर जब संगठनों की कोशिशों के चलते बच्चे शिक्षा की तरफ बढ़ने लगे और भट्ठों का काम प्रभावित होने लगा तो इन भट्ठा मालिकों ने विरोध किया। पर डॉ. भानुजा और उनकी टीम ने हार नहीं मानी। बल्कि उन्होंने बहुत ही धैर्य के साथ इन सभी को समझाया और जागरूक किया। और कई प्रयासों के बाद भट्ठा मालिक मान गए।

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ईंट-भट्ठों के पास खेलते बच्चे

धीरे-धीर डॉ. भानुजा की पहल से काशी विद्यापीठ के भी कई प्रोफेसर जुड़ गये। इसके अलावा संगठन में विश्व विद्यालय के कई छात्र-छात्राएं और नौकरी करने वाले लोग भी शामिल हैं। डॉ. भानुजा बताते हैं कि जब उनके इस मिशन में साथ देने वालों की संख्या बढ़ने लगी तो उन्होंने मानव संसाधन एवं महिला विकास संस्थान नाम की सामाजिक संस्था बना ली।

इस संगठन के जरिये बच्चों के साथ रोजी-रोटी के लिए मजदूरी करने वाली महिलाओं को भी हुनर के काम सिखाये जाते हैं। इन महिलाओं को रोजगार के लिए बतख और बकरी पालन, कालीन की बुनाई और डिटर्जेंट बनाना सिखाया जाता है।


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