मंगल पांडे को कैसे दी गई फांसी? जेल के सभी जल्लादों ने कर दिया था इंकार

अंग्रेजों की फ़ौज के सिपाही मंगल पांडे के विद्रोह से शुरू हुआ था भारत का पहला स्वतंत्रता संग्राम। पढ़ें, उनके जीवन से जुड़ी कुछ दिलचस्प बातें।

Mangal Pandey

1757 में पलासी की लड़ाई में जीत के बाद ईस्ट-इंडिया कंपनी के कर्मचारी ‘बिज़नेस चलाने वाले’ के साथ-साथ देशभर में ‘हुक्म चलाने वाले’ भी बन गए। धीरे-धीरे उनकी तानाशाही बढ़ने लगी, ऐसे में क्रांति की मशाल लेकर किसी को तो आगे आना था। लेकिन अंग्रेजी हुकूमत के आगे बोलने की ताकत सबके पास नहीं थी। लोगों ने गुलामी को अपना नसीब मान लिया था। लेकिन 1857 में एक सैनिक के विद्रोह ने देश भर में अंग्रेजों के खिलाफ माहौल पैदा कर दिया।

दरअसल 1857 में सेना में आई एनफील्ड राइफल में जानवरों की चर्बी का इस्तेमाल होने की खबर कई छावनियों में फ़ैल गई थी। मार्च 1857 में बैरकपुर में ब्रिटिश छावनी की 34वीं पलटन की परेड चल रही थी। परेड के दौरान गुस्से में भरा एक सिपाही अपनी भरी हुई बंदूक लेकर कतार में सामने आ गया। उसने जानवर की चर्बी वाली कारतूस की गोली को इस्तेमाल करने से मना कर दिया। इतना ही नहीं, उसने अंग्रेजों पर धर्म भ्रष्ट करने का इल्जाम भी लगाया। जाति से ब्राह्मण उस सिपाही का नाम था -मंगल पांडे। और यहीं से शुरू होती है ब्रिटिश के खिलाफ पहले विद्रोह की कहानी।

अंग्रेजों की सेना में होते हुए भी उनके खिलाफ जाने की हिम्मत उस समय शायद ही किसी में नहीं थी। मंगल पांडे के अंदर का गुस्सा इतना ज्यादा था कि उन्होंने अंग्रेजों के हर गलत व्यवहार का जवाब देने का फैसला किया। घटना जितनी छोटी दिखती है शायद उतनी छोटी थी नहीं। क्योंकि इस विद्रोह के कारण ही देश भर की कई छावनियों में सैन्य विद्रोह शुरू हो गया। 

मंगल पांडे और उनके मुट्ठी भर दोस्तों को इस विद्रोह की भारी कीमत चुकानी पड़ी। कुछ को गिरफ्तार किया गया तो कुछ को मार डाला गया।  लेकिन यह बात यहां दबी नहीं बल्कि जंगल में आग की तरह फ़ैल गई और देश भर में मंगल पांडे पर हुए अत्याचार का विरोध शुरू हो गया। इसी विरोध से शुरू होती हैं देश की आजादी की लड़ाई, जिसका बिगुल मंगल पांडे ने फूंका था। हालांकि उस घटना के बाद भी हमें आजादी मिलने में तक़रीबन 100 साल लग गए।   

कौन थे मंगल पांडे?

Mangal Pandey freedom fighter of India

मंगल पांडे का जन्म 19 जुलाई 1827 को उत्तर प्रदेश के बलिया जिले के नगवा में एक ब्राह्मण परिवार में हुआ था। इनके पिता का नाम दिवाकर पांडे था। 

उस दौरान ज्यादातर ब्राह्मण घर के बच्चे सेना में शामिल होते थे। इसलिए मंगल पांडे ने भी 22 साल की उम्र में सेना में भर्ती होने का फैसला किया। वह 1849 में बैरकपुर की सैनिक छावनी के 34वीं बंगाल नेटिव इन्फैंट्री में शामिल हुए। 

सेना में रहकर उन्होंने हमेशा अपने परिवार को भूलकर अंग्रेजों की सेवा भी की। लेकिन भारतीयों पर हो रहे अत्याचार से वह परेशान थे।  

मंगल पांडे अपने काम में जितने ईमानदार थे, उतने ही वह धार्मिक भी थे। जब वह सेना में थे तब 1853 में एनफील्ड राइफल को बंगाल आर्मी के तहत ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कंपनी ने पेश किया था। 1857 की क्रांति का कारण इस राइफल के कारतूस ही थे। 

सेना में रहकर उन्हें इन कारतूसों को दांत से काटने थे, जो मंगल पांडे को कतई मंजूर नहीं था। 

अंग्रेज भी डरते थे मंगल से 

ऐसी भी अफवाह उड़ाई गई कि कारतूस में गाय और सूअर की चर्बी डाली गई है क्योंकि अंग्रेज अपने सिपाहियों को समाज में बहिष्कृत करके, ईसाई धर्म में परिवर्तित होने के लिए मजबूर कर सके। दरअसल ईस्ट इंडिया कंपनी के अवध, पूर्वांचल और पश्चिमी बिहार इन्फेंट्री में ब्राह्मण जाति के सैनिक थे, जो शाकाहारी थे।

मंगल पांडे के साथ जब कई और सिपाहियों ने कारतूस इस्तेमाल करने से मना किया, तब अंग्रेज डर गए। अंग्रेजों ने विद्रोहियों से लड़ने के लिए नई सेना भी बुलवाई। लेकिन उससे पहले ही 29 मार्च 1857 को मंगल पांडे ने अपने कमांडिंग ऑफिसर को गोली मार दी। इस घटना ने कलकत्ता तक अंग्रेजी ऑफिसरों को डरा दिया। इस घटना के बाद मंगल पांडे को गिरफ्तार किया गया और फांसी की सजा भी सुनाई गई।  

देश भर में सैन्य छावनियों में विद्रोह इतना तेजी से फैला था कि मंगल पांडे को फांसी 18 अप्रैल को देना था लेकिन 10 दिन पहले 8 अप्रैल को ही दे दी गई। ऐसा कहा जाता है कि बैरकपुर छावनी के सभी जल्लादों ने मंगल पांडे को फांसी देने से इनकार कर दिया था। फांसी देने के लिए बाहर जल्लाद बुलाए गए थे।

1857 की क्रांति भारत का पहला स्वतंत्रता संग्राम था। जिसकी शुरुआत मंगल पांडे के विद्रोह से शुरू हुआ था।

आजादी की लड़ाई का बिगुल बजाने वाले मंगल पांडे के सम्मान में भारत सरकार ने 1984 में एक डाक टिकट जारी किया था। 8 अप्रैल का दिन आज भी हमारे देश में बलिदान दिवस के तौर पर मनाया जाता है।

संपादन- जी एन झा

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