सौ रूपये से भी कम लागत में, गाँव-गाँव जाकर, आदिवासी महिलाओं को 'सौर कुकर' बनाना सिखा रहा है यह इंजीनियर!

सौ रूपये से भी कम लागत में, गाँव-गाँव जाकर, आदिवासी महिलाओं को 'सौर कुकर' बनाना सिखा रहा है यह इंजीनियर!

ज भी भारत के बहुत से गांवों और ख़ास कर कि आदिवासी इलाकों में खाना बनाने के लिए पारम्परिक ईंधन जैसे कि कोयला, लकड़ी तथा गोबर के उपलों का इस्तेमाल किया जाता है। रसोई के लिए ईंधन जुटाने के लिए ये लोग अपनी आय का लगभग 10 प्रतिशत भाग खर्च करते हैं। साथ ही, ग्रामीण महिलाओं को लकड़ियाँ इक्कठा करने के लिए काफ़ी समय जंगल में बिताना पड़ता है और फिर लकड़ी के चूल्हे के धुएं के कारण ये महिलाएँ कई तरह की बिमारियों का भी शिकार हो जाती हैं।

इन सभी दुष्परिणामों से इन महिलाओं को बचाने का बीड़ा उठाया, 'गुजरात ग्रासरूट्स इनोवेशन ऑगमेंटेशन नेटवर्क' में सीनियर मैनेजर का पद संभाल रहे अलज़ुबैर सैयद ने। थर्मल इंजीनियरिंग कर चुके सैयद हमेशा से ही अपनी शिक्षा और ज्ञान को आम लोगों के भले के लिए इस्तेमाल करना चाहते थे और इसकी शुरुआत उन्होंने सौराष्ट्र में असिस्टेंट प्रोफेसर की नौकरी करते हुए की।

publive-image
अलज़ुबैर सैयद

सौराष्ट्र में रहते हुए सैयद को गांवों और आदिवासी इलाकों में जाने का मौका मिला। वहां उन्होंने देखा कि गाँव की महिलाओं को खाना पकाने के लिए काफ़ी जद्दोज़हद करनी पड़ती है। इससे उन्हें विचार आया कि क्यों न वे ऐसा कुछ करें कि ग्रामीण महिलाओं की कुछ मदद हो सके। उन्होंने पारंपरिक ईंधन के विकल्प तलाशना शुरू किया और उनकी तलाश 'सौर कुकर' पर आकर ख़त्म हुई।

यह भी पढ़ें: गुजरात के इस गाँव में हो रही है ‘सोलर’ खेती, न डीज़ल का खर्च और न ही सुखा पड़ने का डर!

बाज़ार में उपलब्ध विभिन्न प्रकार के सौर कुकर पर शोध करने पर उन्हें पता चला कि भारत में दो तरह के सौर कुकर उपलब्ध हैं, एक बॉक्स टाइप और दूसरा पैराबोलिक, जिनकी कीमत इन आदिवासियों के सामर्थ्य के परे हैं। पैराबोलिक सोलर कुकर की कीमत नौ से दस हज़ार रूपये होती है, वहीं गुजरात सरकार से सब्सिडी मिलने के बाद भी बॉक्स टाइप सोलर कुकर की कीमत लगभग 2, 200 रूपये तक होती है।

"इन आदिवासी इलाकों में कोई भी परिवार इतना सम्पन्न नहीं होता कि वे एक ही बार में 2 हज़ार रूपये तक की भी राशि खर्च कर पाए। इसलिए, मुझे इन्हें ऐसा कोई विकल्प देना था, जो कि इतना किफ़ायती हो कि उसे खरीदने से पहले इन्हें ज़्यादा सोचना न पड़े," द बेटर इंडिया से बात करते हुए सैयद ने कहा।

उन्होंने अपना सोलर कुकिंग अभियान साल 2016 से शुरू किया और अपने इस मिशन को पूरा करने के लिए सैयद ने अन्य देशों में इस्तेमाल हो रहे सौर-कुकर पर शोध किये। उनकी तलाश शेरोन क्लौस्सों द्वारा बनाये गये कोपेनहेगेन सोलर कुकर पर खत्म हुई। इस मॉडल से प्रेरणा लेकर उन्होंने अपना एक आसान मॉडल तैयार किया।

सैयद की मुलाकात शेरोन से एक इवेंट के दौरान अहमदाबाद में ही हुई। शेरोन ने उन्हें उनके सोलर कुकिंग अभियान के लिए काफ़ी सराहा।

साल 2017 तक उन्होंने अपने एक दोस्त, वीरेन्द्र धाकड़ा की मदद से सौर कुकर का प्रोटोटाइप तैयार कर लिया, जिसे घर में भी आसानी से बनाया जा सकता था।

publive-image
अल्ज़ुबैर सैयद का 'सौरकुकर मॉडल', जिसे आसानी से घर में बनाया जा सकता है

हर तरीके से इस मॉडल की जाँच करने के बाद, जब उन्हें लगा कि इस मॉडल की मदद से बहुत हद तक ग्रामीण इलाकों में खाना पकाने की समस्या को कम किया जा सकता है, तो उन्होंने इस मॉडल को ग्रामीणों तक पहुँचाने की पहल शुरू की।

यह भी पढ़ें: ए.सी क्लासरूम, वनस्पति उद्यान, छात्रों के लिए टेबलेट – निजी विद्यालयों से बेहतर बन रहा है यह सरकारी विद्यालय!

क्या है सैयद का मॉडल:

"इस सोलर कुकर को घर की वस्तुओं से ही बनाया जा सकता है। इसके लिए आपको कार्टन (गत्ता), एल्मुनियम फॉयल, कपड़े सुखाने वाली 4 पिन और एक डोरी की आवश्यकता होगी। ये सभी चीज़ें घर में भी आसानी से उपलब्ध हो जाती हैं। और यदि आपको बाहर से भी ये सब लेना पड़े तो कुल लगत लगभग 80-90 रूपये ही आएगी," सैयद ने बताया।

यह सोलर कुकर बहुत ही कम वजन का और साथ ही, फोल्डेबल है। इसलिए आप इसे अपने साथ कहीं भी ले जा सकते हैं। एक सोलर कुकर को आप लगभग एक-डेढ़ साल तक इस्तेमाल कर सकते हैं। इसके लिए आपको अलग से कोई ख़ास बर्तन लेने की ज़रूरत नहीं है। आपको बस अपने स्टील, एल्मुनियम के बर्तनों को बाहर से काले रंग से पेंट करना होगा ताकि यह सूर्य की किरणों को ज़्यादा से ज़्यादा सोखे।

यह भी पढ़ें: दरामली : देश का पहला ‘कौशल्य गाँव’, जिसके विकास को देखने आते हैं देश-विदेश से लोग!

इस सोलर कुकर में दाल, चावल, सब्जी, ढोकला, हांडवा, केक आदि आसानी से पकाया जा सकता है। यदि आपको 5-6 लोगों के लिए खाना बनाना है, तो सोलर कुकर में आपको 2 से 3 घंटे लगेंगें। हालांकि, इस दौरान आप कोई भी काम कर सकते हैं। गैस या फिर मिट्टी के चूल्हे की तरह आपको लगातार ध्यान देने की ज़रूरत नहीं है।

publive-image
अलग-अलग गांवों में जाकर अब तक हजारों औरतों को ट्रेनिंग दे चुके हैं

ग्रामीण महिलाएँ दिन का खाना इसमें आसानी से पका सकती हैं।

"सुबह नौ-दस बजे जब वे खेतों में काम करने के लिए निकलती हैं, तो एक सोलर कुकर में वे दाल पकने के लिए रख देती हैं और एक में चावल चढ़ा देती हैं। जब दोपहर में उनके खाने का समय होता है; तब तक उनका खाना तैयार हो चुका होता है। ये महिलाएँ खेतों पर ही सोलर कुकर में अपना खाना पका लेती हैं," सैयद ने बताया।

हालांकि, सैयद के इस मॉडल की कुछ सीमाएं हैं। जैसे कि सिर्फ़ दिन में ही इसमें खाना बनाया जा सकता है और सर्दियों में खाना पकाने के लिए समय थोड़ा ज़्यादा समय लगेगा। इसके अलावा, बारिश के मौसम में भी इसे इस्तेमाल नहीं किया जा सकता है।

यह भी पढ़ें: शोर्ट-सर्किट अलार्म से लेकर मौसम का हाल बताने वाले स्टेशन तक, ग्रामीणों के लिए किये इनोवेशन!

इसके बारे में सैयद का कहना है, "हमारे मॉडल का उद्देश्य ग्रामीण महिलाओं की समस्याओं को थोड़ा कम करना है। पिछले दो सालों में गुजरात और महाराष्ट्र के बहुत से इलाकों में महिलाएँ आज इस सोलर कुकर को इस्तेमाल कर रही हैं और बहुत हद तक उन्हें इससे मदद मिल रही है।"

सोलर कुकिंग अभियान

सौराष्ट्र के कुछ गांवों में जब सैयद की पहल सफल रही, तो उन्होंने भारत के ग्रामीण इलाकों में 'सोलर कुकिंग अभियान' शुरू किया। इस अभियान के अंतर्गत सैयद और वीरेंद्र ग्रामीण व आदिवासी महिलाओं, पुरुषों, युवाओं तथा विद्यार्थियों को सौर कुकर बनाने का प्रशिक्षण दे रहे हैं। और ज़्यादा से ज़्यादा लोगों को सौर उर्जा का सही इस्तेमाल करने के लिए प्रेरित कर रहे हैं। वीरेंद्र की मदद से उन्होंने गुजरात के पंचमहाल, नर्मदा, जामनगर, जेतपुर जैसे इलाकों में भी जाकर ग्रामीणों को सोलर कुकर का यह मॉडल दिखाया और उन्हें सौर उर्जा से खाना पकाने के लिए प्रोत्साहित किया।

यह भी पढ़ें: 60 वर्षीय दिव्यांग ने ई-वेस्ट का इस्तेमाल कर बनाई ई-बाइक, मथुरा का ‘देसी जुगाड़’ बना प्रेरणा!

"अब तक हम 100 से भी ज़्यादा गांवों में 'सौर कुकर कार्यशाला' का आयोजन कर चुके हैं। न सिर्फ़ गुजरात, बल्कि महाराष्ट्र और कर्नाटक तक हमारी पहल पहुंच चुकी है। इन गांवों में बहुत से परिवार सौर कुकर का इस्तेमाल सफलतापूर्वक कर रहे हैं। जल्द ही, हम महाराष्ट्र के पालघर जिले में स्थित आदिवासी गाँव कासा में एक सौर कुकर प्रयोगशाला स्थापित करने पर काम कर रहे हैं," सैयद ने कहा।

publive-image
बच्चों और युवाओं को इस पहल से जोड़ने की है कोशिश

इस प्रयोगशाला को स्थापित करने के पीछे उनका उद्देश्य अधिक शोध कार्य करके इस सोलर कुकर को और भी बेहतर बनाना है। साथ ही, वे लोगों में सौर उर्जा के प्रति जागरूकता लाना चाहते हैं ताकि इस अभियान को ग्रामीण अर्थव्यवस्था से जोड़ा जाये और ज़्यादा से ज़्यादा युवा इस तरह के अभियानों के लिए आगे आएं।

यह भी पढ़ें: सतत विकास की और बढ़ते कदम: 15 ऐसे गाँव जिन्हें देखकर आपका मन करेगा अपना शहर छोड़ यहाँ बस जाने को!

सोलर कुकर अभियान के लिए अल्ज़ुबैर सैयद को अंतर्राष्ट्रीय स्वयंसेवक दिवस के मौके पर 'यूएन वी पुरस्कार' से सम्मानित किया गया। और अब उनकी पहल को न सिर्फ़ भारत में बल्कि अन्य देशों में भी पहचान मिल रही है। हाल ही में, उन्हें "गाँधी ग्लोबल सोलर यात्रा (GGSY)" में "सोलर एंजल (दूत)" के रूप में भी चुना गया।

publive-image
उन्हें इस अभियान के लिए सम्मानित भी किया गया

अब अलज़ुबैर सैयद सोलर कुकर के विभिन्न स्वरूपों पर काम कर रहे हैं। यदि आपको लगता है कि उनकी यह पहल भारत के किसी भी ग्रामीण इलाके में कारगर साबित हो सकती है, तो आप बेहिचक उन्हें संपर्क करके अपने यहाँ वर्कशॉप के लिए बुला सकते हैं। यदि आप उनकी इस पहल में किसी भी तरह से उनकी मदद करना चाहते हैं, तो उन्हें 9558350506 पर संपर्क कर सकते हैं!

संपादन - मानबी कटोच 


यदि आपको इस कहानी से प्रेरणा मिली है या आप अपने किसी अनुभव को हमारे साथ बांटना चाहते हो तो हमें hindi@thebetterindia.com पर लिखे, या Facebook और Twitter पर संपर्क करे। आप हमें किसी भी प्रेरणात्मक ख़बर का वीडियो 7337854222 पर भेज सकते हैं।

Related Articles
Here are a few more articles:
Read the Next Article
Subscribe