"मैं जैविक को हर एक गली-मोहल्ले तक पहुँचाना चाहता हूँ। यह तभी संभव है जब किसान भी जागरूक हों और ग्राहक भी। मैं अपनी तरफ से यही कर सकता हूँ कि अगर किसी किसान भाई को हमारी ज़रूरत है तो हम उनकी यथा संभव मदद करने के लिए तैयार हैं। आप मुझे फेसबुक या फिर सीधा मेरे नंबर पर संपर्क कर सकते हैं।"- भंवर सिंह
विदेशी बाज़ार में हल्दी, अदरक, कसावा की विशेष मांग है जिसे वहाँ सामान्यतः उगाया नहीं जाता लेकिन इस किसान के खेतों में ये सब प्रचुर मात्रा में होते हैं।
पाटिल ने जब बांस की खेती करना शुरू किया तब उनके सिर पर दस लाख रुपये का कर्ज था, लेकिन बांस की खेती ने न सिर्फ उन्हें कर्जमुक्त किया बल्कि आज पूरे देश में उनकी एक अलग पहचान है!
थमैया ने दो नारियल के पेड़ों के बीच एक चीकू का पेड़ लगाया। नारियल और चीकू के बीच उन्होंने एक केले का पेड़ लगाया। नारियल के पेड़ों के नीचे, उन्होंने सुपारी और काली मिर्च लगाए और बीच में उन्होंने मसालों के पौधे लगाए। जमीन के नीचे भी उन्होंने हल्दी, अदरक, गाजर, और आलू उगाए और इस तरह के कई प्रयोगों और पेड़-पौधों की उपज से आज वह एक सफल किसान हैं।
रिटायरमेंट के बाद मनोहरण ने जैविक खेती को लक्ष्य बनाकर दूसरे किसानों को ट्रेनिंग देना शुरू किया। उनके फार्म में 70 से ज्यादा तरह के पेड़ हैं, और वह खुद जैविक खाद और हर्बल पेस्टीसाइड बनाते हैं। साथ ही वह अपने संगठन के जरिए कई किसानों को रासायनिक खेती से निजात दिला रहें हैं।
आज करीब 80 स्थानीय किसान राकेश महंती से जुड़ कर 50 एकड़ ज़मीन पर काम कर रहे हैं। इन किसानों को हर माह निश्चित वेतन के साथ ही लाभ का 10 प्रतिशत दिया जाता है।