Powered by

Home प्रेरक किसान विदेशी किसानी में लगाया देसी तड़का, रिसर्च साइंटिस्ट बन गया मेहनती किसान!

विदेशी किसानी में लगाया देसी तड़का, रिसर्च साइंटिस्ट बन गया मेहनती किसान!

इस देश की मिट्टी की ख़ुशबू का जादू कुछ ऐसा था कि विदेशी रुतबा, चकाचौंध और मोटी तनख्वाह भी उन्हें यहाँ लौटने से न रोक सकी!

New Update
विदेशी किसानी में लगाया देसी तड़का, रिसर्च साइंटिस्ट बन गया मेहनती किसान!

हुत कम लोग होते हैं जो शिखर पर पहुंच कर भी नीचे अपनी जड़ों को मजबूत करते हैं। आज हम बात करेंगे छत्तीसगढ़ के एक छोटे से पहाड़ी जिले जशपुरनगर के समर्थ जैन की।

publive-image
Samarth Jain

वैदिक वाटिका की शुरुआत

समर्थ ने नोएडा में एमिटी यूनिवर्सिटी से एमटेक किया। उसके बाद यूरोपीय देश बेल्जियम में बतौर रिसर्च साइंटिस्ट शानदार नौकरी की। ये रुतबा, चकाचौंध और मोटी तनख्वाह उन्हें ज्यादा दिन लुभा नहीं पाया। ये सब छोड़कर समर्थ अपने देश भारत वापस लौट आए और अपने गृहनगर जशपुरनगर में अपने पुरखों की लंबी-चौड़ी खाली पड़ी जमीन पर नए तरीके से किसानी करने लगे। उन्होंने अपने इस खेत का नाम भी रखा - वैदिक वाटिका। जैविक खेती के लिए नई तकनीक का इस्तेमाल कर वह आगे बढ़े। समर्थ के दादा-परदादा भी इसी जमीन पर खेती करते आए थे। बस फर्क ये था कि उनके पूर्वज घर की आपूर्ति के लिए फसलें उगाते थे वहीं समर्थ ने जैविक खेती से किसानी को क्रान्ति बना दिया।

publive-image

बेल्जियम में किसानी के अलग तौर तरीकों ने किया प्रभावित
द बेटर इंडिया से बातचीत के दौरान समर्थ बताते हैं कि जब वह बेल्जियम में थे तो वहां के किसानों के खेती करने की प्रक्रिया को देखा करते थे और सोचते थे कि क्यों न इस प्रक्रिया को भारत लाया जाए। उनका ऐसा सोचना लाज़मी भी था क्योंकि वह खुद एक किसान परिवार से थे। भारतीय किसानों की जद्दोजहद को बखूबी जानते थे। यही सोचकर उन्होंने भारत लौटने का फैसला कर लिया।
समर्थ जब बेल्जियम में नौकरी करते थे तो वहां के लोगों को बड़ा मन लगाकर खेती करते हुए देखते थे। वहां के लोग न केवल नई-नई तकनीक के लिए सजग थे बल्कि इसे एक व्यवसाय की तरह देखते थे। साथ ही उन्होंने अवलोकन किया कि वह लोग बड़े ही गर्व के साथ अपने बच्चों को भी किसानी के गुर सिखाते थे। जबकि भारत के कम ही किसान चाहते हैं कि उनके बच्चे भी किसान रह जाएं।
publive-image
समर्थ बताते हैं कि इसकी कई सारी वजह हैं। भारत में खेती करना ज्यादातर किसानों के लिए एक घाटे का सौदा रहता है। उनकी फसलों को कई बार सही दाम नहीं मिल पाता। जोकि एक दुखदायी अवस्था है।

"मुझे बेल्जियम में रहते हुए यह अहसास हुआ कि अगर हम लोग भी सब कुछ जान समझकर खेती से किनारा कर लेंगे तो दुर्भाग्य की बात होगी। युवाओं को खेती के लिए आगे आना पड़ेगा। मैंने निश्चय किया कि वापस अपनी मिट्टी में लौटकर उन्नतशील तरीके से खेती करना शुरू करूंगा। आस पास के गाँव के किसानों को भी परम्परा से जुड़े रहने और जरूरी आधुनिक तरीकों को अपनाने के लिए तैयार करूंगा। अब ये सब सिर्फ प्रवचन देने से तो होगा नहीं, इसलिए मैं खुद कुदाल लेकर जुट गया।"- समर्थ

publive-image

किया प्राचीन और आधुनिक विज्ञान का समायोजन
वैदिक वाटिका में वह वर्मी कम्पोस्ट और वेस्ट से बने खाद का ही प्रयोग करते हैं। उन्होंने फसलों में विविधता भी रखी है। आपको यहाँ मटर, मूली के साथ में फलदार वृक्ष भी मिलेंगे। समर्थ आगे बताते हैं कि वैदिक वाटिका में उनकी कोशिश रहती है कि प्राचीन और आधुनिक विज्ञान के समायोजन से उन्नतशील खेती की जा सकती है। रासायनिक खाद और दवाएं किस तरह से पर्यावरण, जमीन, फसल और इंसानों को नुकसान पहुंचा रही हैं, इस बात से अब कोई अंजान नहीं है। लोग फिर भी रसायनों का इस्तेमाल करने पर मजबूर हैं क्योंकि उन्हें लगता है कि इसका कोई विकल्प नहीं है। वैदिक वाटिका के ज़रिए वह उन्हें दिखाना चाहते हैं कि जैविक खेती हर लिहाज से फायदेमंद है।
publive-image
6 किसानों के ग्रुप से की शुरुआत
शुरुआत में समर्थ के लिए किसानों को यह समझाना बहुत मुश्किल था कि वह अपनी खेती की पुरानी पद्धति को छोड़ नई पद्धति को अपनाएं। समर्थ ने  फिर भी उम्मीद नहीं छोड़ी। अपनी पुरखों की जमीन में उन्होंने नई पद्धति से खेती करके दिखाई। उनकी सफलता को देख किसान भी नई पद्धति को अपनाने लगे। पहले साल में केवल 6 किसान ही उनसे जुड़े थे। इसके बाद उनकी कड़ी मेहनत और उनके दृढ़ निश्चय की वजह से उनके साथ आज 800 किसान जुड़े चुके हैं। कई किसान तो सिर्फ वॉट्सअप के सहारे उनके साथ जुड़े हुए हैं। साल दर साल किसानों ने नई खेती की उनकी तकनीक को अपनाया। आस-पास के इलाकों में बड़ी तादाद में किसान अब जैविक खेती करते हैं।
publive-image
समर्थ के साथी किसान
वैदिक वाटिका में काम करने वाले गाँव गम्हरिया के प्रवीण कुमार बताते हैं कि उन्हें यहां बड़ा अच्छा लगता है। काफी साफ-सफाई रहती है। वह कहते हैं -
"समर्थ भैया हम लोगों को बताते रहते हैं कि केंचुआ खाद का ही इस्तेमाल करना चाहिए। दवाई डालकर मिट्टी बर्बाद हो जाता है। यहां पर काम करके हम लोगों को भी खेती करने का सलीका आ रहा है। वरना हम लोग तो एक ही फसल सारी जमीन पर उगाते थे। यहां आकर मालूम चला कि एक ही जमीन में कई सारी उपज लगाई जा सकती है।"
publive-image
वैदिक वाटिका में काम करने वाले किसान प्रवीण कुमार
पास के ही एक दूसरे गाँव भमरी के निवासी दुर्जन राम यादव भी वैदिक वाटिका के कर्मचारी हैं। उनका कहना है -  "हम यहां पर न सिर्फ खेती करते हैं बल्कि इन उत्पादों से अलग-अलग इस्तेमाल में आने वाली वस्तुएं भी बनाते हैं। हम एक छोटे से गाँव में रहते हैं। यहां काम करने से पहले हम छोटे-मोटे काम करते थे। वैदिक वाटिका हमारे लिए बहुत सारे मौके लेकर आया है।" 
publive-image
वैदिक वाटिका में काम करने वाले किसान दुर्जन राम यादव
समर्थ ने बातचीत के दौरान एक रोचक जानकारी भी दी। जशपुरनगर के ही सारूडीह और काँटाबेल इलाकों में सरकार की मदद से जैविक चाय बागान बनाया गया है। 15 एकड़ में फैला यह बगान बेहतरीन चाय से सराबोर है। समर्थ का मानना है कि यहाँ की चाय दार्जलिंग और असम की चाय से भी बेहतर है। इन सबके साथ ही समर्थ ने जैविक खेती से पैदा होने वाली फसलों से बने उत्पाद के लिए ऑनलाइन प्लेटफॉर्म भी तैयार किया है। जिससे देश-दुनिया तक जैविक उत्पाद को पहुंचाया जा सके।
publive-image
वैदिक वाटिका का एक प्रोडक्ट
समर्थ आज किसानी के साथ साथ कई किसानों को रोजगार भी प्रदान कर रहे हैं। हमारे कृषि प्रधान देश को समर्थ जैसे और युवाओं की जरूरत है। अगर आप भी समर्थ का साथ देना और उनसे जुड़ना चाहते हैं तो इस लिंक में क्लिक करें। आप उनसे मोबाइल नंबर 07763-223429 पर जुड़ सकते हैं और[email protected] पर भी लिख सकते हैं।

publive-image

संपादन - अर्चना गुप्ता

यदि आपको इस कहानी से प्रेरणा मिली है, या आप अपने किसी अनुभव को हमारे साथ साझा करना चाहते हो, तो हमें [email protected] पर लिखें, या Facebook और Twitter पर संपर्क करें। आप हमें किसी भी प्रेरणात्मक ख़बर का वीडियो 7337854222 पर व्हाट्सएप कर सकते हैं।