अक्टूबर-नवंबर आते ही प्रदुषण से दिल्ली शहर की क्या हालत हो जाती है, यह किसी से छिपा नहीं है। हर तरफ धुएं के कारण धुंध की परत, लोगों को घरों में रहने के लिए मजबूर कर देती है। जहरीले धुएं की यह धुंध, इतनी घनी होती है कि बाहरी अंतरिक्ष से भी इसे देखा जा सकता है। यह धुआं खतरनाक होता है और सेहत से जुड़ी ना जाने कितनी बीमारियों का कारण बनता है।
दिल्ली के रहनेवाले 29 साल के विद्युत मोहन भी इस प्रदूषण को लेकर खासा परेशान चल रहे थे। वह इसके लिए कुछ करना चाहते थे। उन्हें पता था कि प्रदूषण के इस खतरनाक स्तर तक बढ़ने की एक वजह पराली भी है। उन्होंने 2018 में पराली को जलाने से रोकने के उपायों पर काम करना शुरू कर दिया। दरअसल, वह एक ऐसा उपकरण बनाना चाहते थे, जिससे पराली जलाने की समस्या से तो छुटकारा मिले ही साथ ही से किसानों की आमदनी भी बढ़ जाए। विद्युत एक सामाजिक उद्यम ताकाचर के संस्थापक हैं।
बनाई कमाल की पोर्टेबल डिवाइस
एक इंटरव्यू में विद्युत ने कहा, “पराली जलाने के मौसम में दिल्ली में वायु प्रदुषण का स्तर सुरक्षित सीमा से 14 गुना अधिक हो जाता है। मैं इस स्थिति को बदलना चाहता था। मुझे हमेशा से एनर्जी के क्षेत्र में काम करना और गरीब समुदाय के लोगों के लिए आय के अवसर पैदा करने का जुनून रहा है। मेरा मानना है कि विकासशील देशों में जलवायु परिवर्तन को कम करने के लिए यह एक आदर्श दृष्टिकोण है।”

इस दिशा में काफी काम करने के बाद, उन्होंने एक छोटे से उपकरण को डिजाइन करना शुरू कर दिया। यह उपकरण उच्च तापमान पर खेती के कचरे को जलाने में सक्षम था और पराली को चारकोल, खाद और ऐक्टिवेटेड कार्बन में भी बदल रहा था। वॉटर फिल्टरेशन में एक्टिवेटेड कार्बन का इस्तेमाल किया जाता है।
विद्युत बताते हैं, “यह कम लागत वाला उपकरण रासायनिक प्रक्रिया पर काम करता है, जिसे ऑक्सीजन-लीन टॉरफेक्शन के रूप में जाना जाता है। इसके लिए किसी बाहरी ऊर्जा स्रोत की जरूरत नहीं होती। यह, कटाई के बाद खेतों में फसल के बचे ठुंठ से निकलने वाली हीट पर चलता है।”
पुरस्कार राशि के तौर पर मिले 1.2 मिलियन पाउंड
प्रोटोटाइप बनाने के बाद उन्होंने और कंपनी के सह-संस्थापक केविन कंग ने मिलकर 4500 किसानों से संपर्क साधा। डिवाइस को उन सभी किसानों के ट्रकों के पीछे बांध दिया गया और दूर-दराज़ के कई ग्रामीण इलाकों में ले जाया गया। इससे उन्होंने खेती के कचरे, मसलन नारियल के छिलके, चावल की भूसी और भूसा इकट्ठा किया। इस सब को जलाने से बचाकर उन्होंने जलवायु परिवर्तन को बढ़ने से रोकने की दिशा में कामयाबी प्राप्त की है।
अपने इस उपकरण से, विद्युत अब तक 3000 टन से ज्यादा खेती के कचरे को मार्केटेबल प्रोडक्ट्स में बदल चुके हैं। साल 2020 में उनके प्रयास को संयुक्त राष्ट्र पर्यावरण ने मान्यता दी और उन्हें ‘यंग चैंपियन ऑफ द अर्थ’ के लिए नामित किया गया। हाल ही में उनके ‘ताकाचर’ को प्रिंस विलियम के इनॉग्रल अर्थ शॉट पुरस्कार से नवाजा गया है। इसे इको ऑस्कर के रूप में भी जाना जाता है। पुरस्कार राशि के तौर पर उन्हें 1.2 मिलियन पाउंड मिले हैं। अन्य पांच विजेताओं के साथ उन्होंने “क्लीन आवर एयर” पुरस्कार भी जीता है।
मूल लेखः रोशिनी मुथुकुमार
संपादनः अर्चना दुबे
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