चाँद जैसी दिखती है वह, टेस्ट है उसका लाजवाब, होली की शान है, ‘गुजिया’ है उसका नाम! भारत में लगभग हर गांव से लेकर शहर तक, अमीर हो या ग़रीब सब अपने हिसाब से बनाते हैं, लेकिन होली पर गुजिया बनाने और खिलाने की परंपरा सदियों से चली आ रही है।
इसे बनाना भी एक कला है और बिना टीम वर्क के यह काम पूरा करना शायद मुमकिन नहीं है। मीठे के शौक़ीन लोग तो मानो पूरे साल गुजिया खाने के लिए इस होली का इंतज़ार करते हैं और रंगों में सराबोर होने के साथ गुजिया का लुत्फ़ उठाते हैं।
खोए और मैदे से बनी यह ख़ास मिठाई जब प्लेट में सर्व की जाती है तब मुंह में पानी आ जाता है और इसका स्वाद लेने से कोई भी खुद को रोक नहीं पाता, आख़िर हर घर की गुजिया का स्वाद भी तो एक दूसरे से थोड़ा अलग होता है।
इसे खाते हुए बहुत लोगों के मन में यह ख़्याल आया होगा कि यह स्वादिष्ट मिठाई आख़िर पहली बार कहां बनी होगी? इसकी रेसिपी सबसे पहले किसके दिमाग में आयी होगी? किसने इस मिठाई का नाम गुजिया रखा और फिर यह होली की विशेषता कैसे बन गई होगी?
आज की गुजिया से अलग थी प्राचीन गुजिया, इस शहर से है कनेक्शन..
गुजिया की शुरुआत काफ़ी पुरानी है। यह एक मध्यकालीन व्यंजन है, जो मुगल काल से पनपा और फिर त्योहारों की स्पेशल मिठाई बन गया। इसका सबसे पहला ज़िक्र तेरहवीं शताब्दी में एक ऐसे पकवान के रूप में सामने आता है, जिसे गुड़ और आटे से तैयार किया गया था।
ऐसा माना जाता है कि पहली बार आटे के पतले खोल में गुड़ और शहद को भरकर धूप में सुखाकर बनाया गया था और यह प्राचीन काल की एक स्वादिष्ट मिठाई थी। लेकिन जब आधुनिक गुजिया की बात आती है तब मानते हैं कि इसे 17वीं सदी में पहली बार बनाया गया था।
इतिहासकार मानते हैं कि इसे उत्तर प्रदेश के बुंदेलखंड क्षेत्र में बनाया गया था और वहीं से यह राजस्थान, मध्य प्रदेश, बिहार और अन्य प्रदेशों में प्रचलित हो गई। कई जगह इस बात का ज़िक्र भी मिलता है कि भारत में समोसे की शुरुआत के साथ ही गुजिया भी भारत आई और यहां के ख़ास व्यंजनों में से एक बन गई।
हमारी गुजिया और गुझिया में है अंतर
अक्सर लोग इस मिठाई के दो नाम जानते हैं, गुजिया और गुझिया! क्योंकि ये दोनों ही मिठाइयां अलग तरह से बनाई जाती हैं। वैसे तो दोनों ही मैदे के अंदर खोए या सूजी और ड्राई फ्रूट्स की फिलिंग करके बनाए जाते हैं, लेकिन इनका स्वाद थोड़ा अलग होता है।
दरअसल, जब गुजिया की बात करते हैं तब इसे मैदे के अंदर खोया भरकर बनाया जाता है, लेकिन जब गुझिया के बारे में बताते हैं तब इसमें मैदे की कोटिंग के ऊपर चीनी की चाशनी भी डाली जाती है। दोनों ही मिठाइयां अपने-अपने स्वाद के अनुसार पसंद की जाती हैं।
लेकिन कुछ और जगहों पर इसे अलग ढंग से भी बनाया जाता है। कहीं इस पर चाशनी की परत चढ़ाई जाती है, तो कुछ जगहों पर गुजिया में ऊपर से रबड़ी मिलाकर भी खाई जाती है।
संपादन- अर्चना दुबे
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