दीवारें और सरहदें केवल इंसानों के लिए होती हैं, कला और स्वाद को ये नहीं रोक सकतीं! यह बात हम यूँ ही नहीं कह रहे, बल्कि इसे साबित करती है प्रसिद्ध भारतीय व्यंजनों में से एक ‘दाल मखनी’ की खूबसूरत कहानी। वैसे तो दाल की कई किस्में काफ़ी फेमस हैं, लेकिन जब बात दाल मखनी की आती है, तो मुंह में पानी आना तो लाज़मी है।
काली दाल और राजमा में क्रीमी मक्खन का स्वाद किसी के भी दिल में तुरंत जगह बना लेता है। नान हो, पराठा हो, तंदूरी रोटी हो या चावल, हर चीज़ के साथ इसकी जोड़ी हिट है। लेकिन क्या आप जानते हैं कि दाल मखनी का यह बेहतरीन स्वाद आख़िर आपकी थाली में आया कहां से?
दिल्ली की गली से निकलकर पहुंची दुनियाभर में

दाल मखनी, माँ की दाल यानी साबुत उड़द, राजमा, मक्खन और कई तरह के मसालों से तैयार की जाती है। इसे बनाने के लिए थोड़े सब्र की ज़रूरत होती है, क्योंकि इसे तैयार होने में थोड़ा ज़्यादा समय लगता है। वैसे तो मुख्य रूप से यह दिल्ली और पंजाब का व्यंजन है, लेकिन अब पूरी दुनिया में अपनी जगह बना चुकी है।
यही नहीं, दिल्ली में कई ऐसे रेस्टोरेंट भी हैं, जो सिर्फ़ दाल मखनी के स्वाद के लिए ही जाने जाते हैं। और हो भी क्यों न? दिल्ली शहर से इस डिश का ख़ास नाता है। दरअसल, सबसे पहले यह ख़ास दाल इसी जगह बनाई गई थी।
पंजाब के पेशावर शहर में कुछ ढाबे वाले थे, जो अपने ग्राहकों को काली उड़द की दाल बनाकर रोटी या नान के साथ सर्व करते थे और लोगों को यह बेहद पसंद आती थी। हालांकि यह दाल मखनी नहीं थी और इसमें पड़ने वाली चीज़ें भी अलग थीं, पर इसे दाल मखनी की बेस दाल कहा जा सकता है।
सरहद पार से आई पेशावरी दाल से बनी भारतीय दाल मखनी
बटवारे के बाद, सन् 1947 में कुंदनलाल जग्गी पकिस्तान से दिल्ली आ गए, जो एक बेहतरीन शेफ़ थे। उन्होंने दरियागंज में ‘मोती महल’ नाम का रेस्टोरेन्ट खोला। यह क़िस्सा प्रसिद्ध है कि कुंदनलाल जब तंदूरी चिकन बनाते थे, तो कुछ समय के बाद वह बाहर से ड्राई हो जाता था।
बहुत खोज-बीन के बाद उन्होंने एक मखनी ग्रेवी बनाई जिसमें टमाटर, मक्खन और क्रीम का ऐसा कॉम्बिनेशन था, जो चिकन को क्रीमी फ़्लेवर देता और उसे ड्राई भी नहीं होने देता था। जब इसे सर्व किया गया, तो ग्राहकों को इसका स्वाद बेहद पसंद आया। अब जग्गी को शाकाहारियों के लिए भी कोई ऑप्शन चाहिए था, तो उन्होंने काली उड़द की दाल के साथ एक प्रयोग किया।
क्रीमी टेक्स्चर के लिए उसमें थोड़ा राजमा डाला, गाढ़ेपन के लिए थोड़ी-सी चना दाल और धीमी-धीमी आंच पर लम्बे समय तक उसे पकाया। फिर उनमें टमाटर और कुछ मसालों के साथ ढेर सारा क्रीम और मक्खन डाला गया, जिसने इसके ज़ायके को कई गुना बढ़ा दिया।
अब जग्गी के रेस्टोरेन्ट में जितने चाहने वाले बटर चिकन के आते, उतने ही लोग दाल मखनी को भी पसंद करने लगे। दाल में शाही फ़्लेवर का ये एक्सपेरिमेंट बहुत सफल भी हुआ और इतना ज़्यादा लोकप्रिय भी कि आज मोती महल चेन भारत ही नहीं, दुनिया के कई देशों तक पहुँच चुकी है और इस तरह भारत की दाल मखनी के दीवाने भी हर जगह मिल जाते हैं।
संपादन- अर्चना दुबे
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