सदियों से भारत में बन रहे हैं Sustainable Homes, गुजरात के ये पारंपरिक घर हैं गवाह

पढ़ें कैसे बनाये जाते थे गुजरात के ये हेरिटेज होम (Traditional Homes), जो Sustainable Homes का हैं बेहरतीन नमूना।

Traditional Homes and Houses In Gujarat

गुजरात में सबसे पहले हड़प्पा संस्कृति ने अपनी छाप विकसित की थी। उसके बाद इस राज्य में धोलावीरा और लोथल सहित कई वास्तुकलाओं में हड़प्पा संस्कृति की कुछ निशानियां नजर आती रहती हैं। मुगल काल में गुजरात में इस्लामी वास्तुकला का विकास हुआ। वहीं ब्रिटिश काल के दौरान गोथिक और नियोक्लासिकल सहित यूरोपियन स्टाइल में इमारतें बनाई गई। इस दौरान राज्य में इंडो-सरसेनिक आर्किटेक्चर भी विकसित हुआ। लेकिन 1947 के बाद, गुजरात में लोग आधुनिक वास्तुकला पर जोर देने लगे। 

गुजरात घूमने आए हर इंसान पर यहां की संस्कृति का गहरा प्रभाव पड़ता है। यह एक ऐसा राज्य है, जहां की जीवन शैली और इतिहास की विरासत से प्रेरणा ली जा सकती है। गुजरात, जीवंत रंगों और सुंदर संस्कृति का राज्य है। यहां की पारंपरिक गुजराती घरों की सजावट हर किसी को अपनी ओर खींच लेती है।

गुजरात के पुराने घरों के इंटीरियर में आपको राज्य के समृद्ध इतिहास की खूबसूरती दिखेगी। गुजराती घरों की दीवारों, छतों और पर्दो पर बनी सुन्दर डिज़ाइन से ही आप यहां के लोगों के मिजाज का अनुमान लगा सकते हैं।

यहां के घरों की मुख्य विशेषताओं में से एक है कि यहां के फर्नीचर। इन फर्नीचरों में स्थानीय कला की छाप मिलती है। यहां न केवल लकड़ी में, बल्कि पत्थर में भी नक्काशी कर साज-सज्जा के सामान बनाए जाते हैं। साथ ही, फर्नीचर में भी अलग-अलग प्रकार की पेंटिंग की जाती हैं। 

गुजरात का अपना एक समृद्ध इतिहास रहा है, जिसमें  हिंदू, जैन और मुसलमानों के साथ-साथ राजपूताना, मराठा और वैष्णव कुलों की विविध संस्कृतियों का समावेश है। इसलिए यहां के पुराने घरों की डिजाइन और पैटर्न में हिंदू और मुस्लिम संस्कृति का एक सुंदर और सुरुचिपूर्ण मिश्रण देखने को मिलता है। 

यदि आप किसी गुजराती घर में जाते हैं, तो आपको कुछ पारंपरिक भाषा और स्थानीय शब्दावली में घर की सजावट और डिजाइन को नजदीक से समझने का मौका मिलता है। 

traditional homes in gujarat
पारंपरिक गुजराती घर

पारंपरिक गुजराती घर

जैसे ही, आप पारंपरिक गुजराती घर में प्रवेश करते हैं, मुख्य प्रवेश द्वार पर तोरण से आपका स्वागत किया जाता है। घर के बाहर एक सुंदर चबूतरा बना होता है, जिसे पारंपरिक भाषा में ‘ओटाला’ कहा जाता है। ओटाला एक ऐसी जगह है, जिसका उपयोग सामाजिक समारोहों के दौरान या शाम को परिवार के सदस्य इकट्ठा होने के लिए करते हैं।  

फिर आती है आंगन की जगह। यह जगह घर की एंट्री और अंदर के बरामदे के बीच बफर जोन का काम करता है। इसका उपयोग कभी-कभी घर में आए मेहमानों को बिठाने के लिए भी किया जाता है। यहां ऐसे मेहमानों को बैठाया जाता है, जिसे घर के अंदर ले जाने की जरूरत नहीं होती। रोज आने वाले दोस्तों की बैठकी भी यहीं सजती है। यहां लकड़ी पर सुन्दर शिल्पकारी करके फर्नीचर बनवाए जाते हैं। 

आंगन के नजदीक ही पूजा घर, रसोई और पानी रखने की जगह बनाई जाती है। ये तीनों जगह गुजराती घरों का सबसे महत्वपूर्ण स्थान होता है। क्योंकि, पारंपरिक गुजराती घर में इन्हें पवित्र जगह माना जाता है। सुबह शाम यहां दीया भी जलाया जाता है। 

चूंकि अधिकांश गुजराती, बिजनेस से जुड़े होते हैं, इसलिए उनके कमरे में ही उनके काम की जगह भी होती है। इसलिए, इन्हें गोपनीयता रखते हुए, घर की ढलान वाली जगह पर डिजाइन किया जाता है।

पारंपरिक रूप से गुजराती घर, ग्रामीण संस्कृति पर आधारित होते हैं। इन घरों में आप खुद को प्रकृति के करीब महसूस कर सकते हैं। चूंकि यह राज्य एक शुष्क क्षेत्र है, इसलिए यहां के घरों में प्रकाश और वेंटिलेशन को अधिक महत्व दिया जाता है। यहां के लोग पूरी कोशिश करते हैं कि रंगों के चुनाव और जगह के अनुसार घर तैयार करके अंदर के माहौल को प्राकृतिक रूप से ठंडा रखा जाए। 

traditional style house

अहमदाबाद के पारंपरिक पोल वाले घरों में आज भी, मेश वर्क का उपयोग बहुत किया जाता है। जो गर्मी के दिनों में गर्म हवा को अंदर आने से रोकने का काम करता है। 

गुजराती घरों को बनाने और इसकी सजावट के लिए, मुख्य रूप से लकड़ी का इस्तेमाल किया जाता है। दरअसल लकड़ी से किसी भी संरचना को बनाना आसान है। साथ ही, यह पारंपरिक कलाकृतियों को तराशने के लिए भी सबसे अच्छा माध्यम है। इसके अलावा, गुजरात की शुष्क और गर्म जलवायु परिस्थितियों में भी लकड़ी सबसे अच्छा विकल्प है।

इसके साथ ही, हम यहां के मिट्टी के काम को नजरअंदाज नहीं कर सकते। घर में मिट्टी का काम हमारे देश में सिंधु घाटी संस्कृति से अस्तित्व में आई। अपनी मिट्टी से जुड़े रहना और घर की प्राकृतिक रूप से ठंडा रखने के लिए गुजरात में इसका इस्तेमाल खूब किया जाता है। कच्छ के मिट्टी के घरों में मिरर और लीपन आर्ट देश-विदेश तक प्रचलित है। 

आज के समय में, ऐसे पारंपरिक गुजराती घर उस समय के स्वर्णिम इतिहास के सुन्दर पृष्ठ की तरह है। लेकिन हमें भी प्रयास करना चाहिए कि इतिहास के ऐसे पृष्ठ कभी हमारे वर्तमान से गायब न हो सकें। 

इस लेख के माध्यम से हम ज्यादा से ज्यादा लोगों को यह संदेश देना चाहते हैं कि घर बनाते समय आधुनिकता के साथ-साथ  पारंपरिक तरीके और पर्यावरण की रक्षा पर भी ध्यान जरूर दें। इससे आपके पैसों की बचत तो होगी ही, साथ ही हमारी संस्कृति और धरोहर भी बची रहेगी। 

अगर आपने घर में पारंपरिक तकनीक का इस्तेमाल किया है, तो हमें जरूर बताएं। वहीं अगर आप आधुनिक डिज़ाइन के साथ, पारंपरिक शैली में घर बनाना चाहते हैं, तो इससे जुड़ी जानकारी के लिए यहां क्लिक करें।

मूल लेख- किशन दवे  

संपादन- जी एन झा

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