कचरे से खाद, बारिश के पानी से बगीचा और बिजली बिल में लाखों की बचत हो रही है यहाँ!

साल 2017 में सोसाइटी ने आपूर्ति के बाद बची सोलर एनर्जी को एक बिजली वितरण कंपनी को बेचकर बिल में 2.6 लाख रुपये की बचत की!

मुंबई के कांदिवली ईस्ट इलाके में 19 माले की बिल्डिंग, भूमि आर्केड के निवासी जो हर दिन इको-फ्रेंडली और सस्टेनेबल लाइफस्टाइल के लिए कदम उठा रहे हैं, वह वाकई काबिल-ए-तारीफ हैं। बिल्डिंग पर लगे सोलर पैनल धूप में यहाँ सूर्य की ऊर्जा संचित करते हैं, तो बसंत ऋतू में ख़ूब पेड़-पौधे लगाए जाते हैं और बारिश का मतलब है ख़ूब सारा वर्षा-जल संचयन। यहाँ हर मौसम में ये लोग पर्यावरण के प्रति अपनी ज़िम्मेदारी पूरी करते हैं।

साल 2010 में सोसाइटी के सेक्रेटरी हरीश शंकर कते के नेतृत्व में यहां रहने वाले 76 परिवारों ने पर्यावरण संरक्षण का संकल्प लिया था। उनका यह संकल्प रेनवॉटर हार्वेस्टिंग के साथ शुरू हुआ, फिर वेस्ट मैनेजमेंट और कुछ साल बाद स्वच्छ उर्जा इस्तेमाल करने तक पहुँच गया।

“हमेशा से ही मेरा झुकाव हरित क़दमों की तरफ रहा है। जब सरकार ने रेनवॉटर हार्वेस्टिंग और वेस्ट मैनेजमेंट की पॉलिसी शुरू की, बस तभी मैंने ठान लिया कि ये सब मैं अपनी बिल्डिंग में भी करूँगा। मुझे बस इसके फायदों के प्रति लोगों की आँखे खोलनी थी और फिर वे भी साथ हो गए,” हरीश ने द बेटर इंडिया से बात करते हुए बताया।

सोसाइटी की सस्टेनेबल प्रैक्टिस

रेनवॉटर हार्वेस्टिंग

साल 2010 से ही सोसाइटी में बारिश का पानी इकट्ठा किया जा रहा है। बारिश के पानी को टेरेस पर इकट्ठा किया जाता है और फिर पाइप के ज़रिए इसे छत पर लगे टैंक में भेजा जाता है। इस टैंक से सभी घरों में टॉयलेट के लिए पानी सप्लाई किया जाता है।

“अगर पूरे मानसून सीजन में, 10 मिमी की सामान्य बारिश हो, तब भी ऊपर बने टैंक में 13, 000 लीटर पानी इकट्ठा होता है। इसके अलावा, फ्लश टैंक की सालाना ज़रुरत पूरी करने के बाद बचा पानी 68 दिनों तक निवासियों की अन्य ज़रुरतों के लिए पर्याप्त है,” उन्होंने कहा।

सभी घरों के नलों पर वॉटर एयरेटर लगाए गए हैं, जो कि पानी के फ्लो को कंट्रोल करते हैं। इससे लगभग 60% तक पानी की बर्बादी को बचाया जा सकता है। बाकी भविष्य में सोसाइटी खुद गंदे पानी को साफ़ करने के मैकेनिज्म पर काम करने के बारे में भी सोच रही है।

कचरा-प्रबंधन

कचरे को अलग-अलग इकट्ठा करने की तकनीक शुरू करने से पहले उन्होंने सोसाइटी में लोगों को जागरुक करने के लिए कचरा-प्रबंधन के एक्सपर्ट्स को बुलाया। उन्होंने बताया कि लोगों को यह समझाना ज़रूरी था कि कचरे को अलग-अलग करना क्यों ज़रूरी है। अगर वे गीले और सूखे कचरे को अलग-अलग इकट्ठा करेंगे तो यह पर्यावरण के लिए उपयोगी है।

कचरा-प्रबंधन यूनिट

हर एक फ्लैट को गीले और सूखे कचरे को इकट्ठा करने के लिए दो स्टेनलेस स्टील डस्टबिन दी गई हैं, सभी पर फ्लैट नंबर लिखे हुए हैं। रिसाइक्लेबल वेस्ट को फिर से प्लास्टिक, ग्लास, इलेक्ट्रॉनिक वेस्ट, पेपर आदि में अलग-अलग किया जाता है। हर दो हफ्ते में सूखे कचरे को स्थानीय कबाड़ वाले को बेच दिया जाता है।

इसी के साथ, सोसाइटी का कम्पोस्टिंग सिस्टम हर महीने 900 किलो गीले कचरे को डीकम्पोस्ट करके 150 किलो खाद तैयार करता है, जिसे यहाँ के बगीचे में डाला जाता है।

सोलर पैनल

बिल्डिंग पर 40 सोलर पैनल लगे हुए हैं, हर एक की क्षमता 12 किलोवाट की है और ये प्रतिदिन 55-60 यूनिट्स बिजली उत्पादन करते हैं। इस उर्जा का उपयोग कॉमन लाइट, पंखे, लिफ्ट और वॉटर पम्पिंग सिस्टम को चलाने के लिए किया जाता है।

गर्मियों में उर्जा का उत्पादन 500 यूनिट्स तक जाता है जबकि सोसाइटी की ज़रुरत सिर्फ़ 120 यूनिट्स की है।

सोलर पैनल

वे आगे बताते हैं कि बाकी बची हुई बिजली को बिजली वितरण करने वाली कंपनी को बेचा जाता है और इन यूनिट्स को हर महीने सोसाइटी के बिजली बिल में क्रेडिट कर दिया जाता है। हमने एक नेट मीटर भी इंस्टॉल किया है, यह चेक करने के लिए कि कितनी इलेक्ट्रिसिटी यूनिट्स को बिजली बिल में क्रेडिट किया गया है।

सोलर पैनल लगाने के एक साल बाद से ही सोसाइटी ने 2.6 लाख रुपए बचाए हैं। इसके अलावा, कॉरिडोर और लिफ्ट में सेंसर लाइट इस्तेमाल की जाती है।

इस प्रोजेक्ट को हर महीने जमा की गई रखरखाव राशि से फंड किया जा रहा है। निवासियों को अलग से कोई राशि देने की ज़रूरत नहीं पड़ती है। कम्पोस्टिंग यूनिट्स, टैंक और सोलर पैनल के रख-रखाव का सभी कार्य हाउसिंग स्टाफ द्वारा किया जाता है।

सोसाइटी में कचरा-प्रबंधन, प्लास्टिक बैन पर अलग-अलग वर्कशॉप होती हैं

इन सभी इको-फ्रेंडली पहलों के बीच, सोसाइटी में प्लास्टिक को छोड़ री-यूजेबल बैग के इस्तेमाल पर भी जोर है। “साल 2018 में महाराष्ट्र में प्लास्टिक बैन होने के बाद हमने 1000 री-यूजेबल बैग भी बांटे थे। सोसाइटी में पटाखे चलाना और कचरा जलाना भी बैन है।”

जगह और आर्थिक साधनों की कमी के बावजूद, जल-संरक्षण, कचरा प्रबंधन और अन्य इको-फ्रेंडली गतिविधियों के प्रति इस सोसाइटी के निवासियों में जो प्रतिबद्धता है, उससे हम सभी को प्रेरणा लेनी चाहिए।

संपादन: भगवती लाल तेली
मूल लेख: गोपी करेलिया


यदि आपको इस कहानी से प्रेरणा मिली है, या आप अपने किसी अनुभव को हमारे साथ साझा करना चाहते हो, तो हमें hindi@thebetterindia.com पर लिखें, या Facebook और Twitter पर संपर्क करें। आप हमें किसी भी प्रेरणात्मक ख़बर का वीडियो 7337854222 पर व्हाट्सएप कर सकते हैं।

We at The Better India want to showcase everything that is working in this country. By using the power of constructive journalism, we want to change India – one story at a time. If you read us, like us and want this positive movement to grow, then do consider supporting us via the following buttons:

X