HIV+ बच्चों को गोद लेने की वजह से लोगों को लगता था कि महेश खुद HIV+ हैं। इसलिए वह जहाँ भी जाते उनके साथ दुर्व्यवहार किया जाता। लेकिन जब महेश को उनके काम के लिए राष्ट्रीय पुरस्कार मिला तो वही लोग उनके स्वागत में रेलवे स्टेशन पर पहुंचे।
लद्दाख के सुमदा चेंमो गाँव में जब पारस लूम्बा और उनकी टीम ने बिजली लगाई तो जलते हुए बल्ब को देखकर एक बुजुर्ग की आँखों में आंसू आ गए। उन्होंने कहा, "मैंने कभी सपने में भी नहीं सोचा था कि मेरा घर रात में भी रौशन हो सकता है।"
इस चलते-फिरते लैब के ज़रिए सरकारी स्कूलों के बच्चे अब ईमेल अकाउंट बनाना, सोशल मीडिया का इस्तेमाल करना और डिजिटल कैश ट्रांजेक्शन करने जैसी ज़रूरी चीज़ें सीख रहे हैं!
68 वर्षीय महेश चूरी के इस ब्रांड की फ्रेंचाइजी लेने के लिए कतार लगी है लेकिन महेश के लिए ज़्यादा महत्वपूर्ण है किसानों को अतिरिक्त आय का साधन और आदिवासी महिलाओं को रोज़गार देना।
इन युवाओं ने गाँव में पॉलिथीन के इस्तेमाल पर रोक लगाने, महिलाओं के लिए खेल प्रतियोगिता आयोजित करने और बच्चों को प्रोत्साहित करने के लिए स्कॉलरशिप देने की भी शुरुआत की है!