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बिहार का पहला खुला शौच-मुक्त गाँव अब है बेफ़िक्र-माहवारी गाँव भी; शिक्षकों ने बदली तस्वीर!

बिहार में केवल 15-25 साल की केवल 31 प्रतिशत महिलाएं ही सुरक्षित रूप से अपने माहवारी का प्रबंधन करती है। ऐसे में इस तरह के सकारात्मक पहल हमें एक नए भविष्य की उम्मीद दिलाते हैं, जहाँ किशोरियों को भी बिना किसी भेद-भाव के अपने अधिकार मिले और वे लड़कों के साथ कंधे से कन्धा मिला कर चल सकें!

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बिहार का पहला खुला शौच-मुक्त गाँव अब है बेफ़िक्र-माहवारी गाँव भी; शिक्षकों ने बदली तस्वीर!

टना से 150 किलोमीटर दूर नेपाल के सीमावर्ती जिले सीतामढ़ी के पुरानी बाज़ार में रहने वाली लक्ष्मी की माहवारी का आज दूसरा दिन है। लक्ष्मी स्कूल के लिए तैयार हो रही है। दलित परिवार से आने वाली लक्ष्मी दो भाई-बहनों में बड़ी है। इसके पिता ठेला चलाते हैं। माहवारी से परेशान होने के बजाय पूजा बेफ़िक्र होकर स्कूल जा रही है, क्योंकि उसके स्कूल में सेनेटरी पैड बैंक है। वहाँ से पूजा और स्कूल की सभी लड़कियों को मुफ़्त में सेनेटरी पैड मिलता है।

जी हाँ, हम बात कर रहे हैं बिहार के पहले खुले में शौच मुक्त जिला सीतामढ़ी की, जहाँ के लगभग सभी चयनित स्कूलों में सेनेटरी पैड बैंक और साबुन बैंक बनाया गया है।

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लक्ष्मी कुमारी अपने स्कूल में पैड-बैंक के साथ

अपने अनुभव साझा करते हुए राजकीय कन्या मध्य-विद्यालय, पुरानी बाज़ार की कक्षा 8 की छात्रा लक्ष्मी कुमारी कहती  है, “कुछ महीने पहले तक, जब मुझे पीरियड्स आते थे तो समझ में नहीं आता था कि क्या करूँ। मैं कपड़े का ही इस्तेमाल करती थी, लेकिन उससे कपड़े गंदे होने का डर रहता था। इस वजह से मैं 4-5 दिनों के लिए स्कूल नहीं जा पाती थी, लेकिन जब से हमारे स्कूल में सेनेटरी पैड बैंक बना है, मुझे माहवारी की कोई फ़िक्र नहीं है। अब मेरे स्कूल की सभी लड़कियां सेनेटरी पैड का इस्तेमाल करती हैं।“

माहवारी लड़कियों की स्कूल से अनुपस्थिति और ड्रॉप आउट का कारण बनती रही है। भारत सरकार के राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वेक्षण (NFHS-4)के आंकड़ों के अनुसार, भारत में 15 से 24 वर्ष की 57.6%महिलाएं ही माहवारी के दौरान स्वच्छता पर ध्यान देती हैं, जबकि बिहार में ऐसी महिलाओं की संख्या केवल 31% है। बिहार के शहरी क्षेत्रों में जहाँ 55.6 प्रतिशत महिलाएं माहवारी के दौरान सेनेटरी नैपकिन का इस्तेमाल करती हैं, वहीं ग्रामीण इलाकों में ऐसी महिलाओं की संख्या सिर्फ़ 27.3 प्रतिशत है।

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Girls explaining others about sanitary pad

इस पहल के बारे में बताते हुए प्रिंसिपल कुमारी उषा लता कहती हैं, "हमारी ज्यादातर छात्राएं कमजोर, वंचित और महादलित समुदाय से हैं। उन्हें माहवारी के दौरान किस तरह से रहना है, इसके बारे में ज्यादा जानकारी नहीं है। यूनिसेफ के सहयोग से शुरू हुई इस पहल में हमने लड़कियों के शौचालय को सेनेटरी पैड फ्रेंडली बनाया है। हर शौचालय में एक छोटा रैक और एक लिफ्ट डस्टबिन बनाया गया है। इसके अलावा, मेरे दफ्तर में भी 2 बॉक्स हैं, जिनमें से एक में साबुन और एक में सेनेटरी पैड रखा जाता है। रोज़ हर शौचालय में 10-10 पैड रखे जाते हैं। इनके ख़त्म हो जाने पर मेरे दफ्तर में आकर लड़कियां पैड लेती हैं।"

यूनिसेफ के सहयोग से चलाया जा रहा यह सेनेटरी पैड बैंक एक शानदार पहल है। इससे ग्रामीण क्षेत्रों की छात्राओं में स्वास्थ्य और सेनिटरी नैपकिन के इस्तेमाल के महत्व के प्रति जागरूकता बढ़ेगी। इसमें बाल संसद और मीना मंच के सदस्य सक्रिय रूप से सहयोग कर रहे हैं।

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Meena Manch members putting Sanitary pad in girls toilet

मध्य विद्यालय, बेरवास के प्रधान शिक्षक मनोज कुमार यादव कहते हैं कि शुरुआत में हमने स्वयं कुछ पैसों से पैड खरीद कर इसकी शुरुआत की थी। इस बैंक को चलाने के लिए हम अभी हर छात्रा से प्रति माह 5 रुपए लेते हैं, लेकिन यह स्वैच्छिक है। छात्र, शिक्षक या कोई भी अभिभावक या तो पैसे से मदद कर सकते हैं, या सेनेटरी पैड खुद खरीद कर दान कर सकते हैं। हम लोगों, छात्रों और संकाय सदस्यों को साबुन या सेनेटरी पैड दान करने के लिए प्रेरित करते हैं। हम यह सुनिश्चित करेंगे कि यह सब ज़रूरतमंदों तक ही पहुँचे। हम अपने सहकर्मियों को लड़कियों के जन्मदिन पर इस पैड बैंक और सोप बैंक में सेनेटरी पैड और साबुन दान करने के लिए भी प्रोत्साहित करते हैं। इसकी निगरानी शिक्षक, मुख्य शिक्षक, बाल संसद और मीना मंच के सदस्यों के सहयोग से की जाती है।

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Girl using handwashing station

मध्य विद्यालय, बेरवास की स्वाति कुमारी कहती है, “हमें अपनी माहवारी के दौरान छुट्टियां लेनी पड़ती थी। स्कूल वापस आने पर हमें क्लास में बताना पड़ता था कि हम छुट्टी पर क्यों थे। यह बहुत असहज लगता था और ऐसा हर महीने होता था। इसमें कोई गोपनीयता नहीं रहती थी।

यूनिसेफ बिहार की संचार विशेषज्ञ निपुण गुप्ता बताती हैं कि माहवारी को लेकर वर्षों से समाज में प्रचलित सांस्कृतिक और सामाजिक धारणा ने महिलाओं को प्रभावित किया है। सही जानकारी नहीं होने के कारण कई बार महिलाएं और किशोरियां माहवारी के दौरान साफ़-सफ़ाई का ठीक से ध्यान नहीं रखतीं और कई बार अनजाने में गंदे कपड़े का इस्तेमाल कर लेती हैं। इससे कई तरह की बीमारियों के साथ उन्हें सर्वाइकल कैंसर होने का ख़तरा रहता है।

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Sanitary Pad Bank in Sitamarhi

एक आंकड़े के अनुसार, आज भी 50% से ज्यादा किशोरियां माहवारी के कारण स्कूल नहीं जाती हैं। महिलाओं को आज भी इस मुद्दे पर बात करने में झिझक होती है, वहीं कुछ का मानना है कि माहवारी मानो कोई अपराध है। आज भी माहवारी जैसी एक स्वाभाविक प्रक्रिया को एक गोपनीय मुद्दे के रूप में देखा जाता है, साथ ही इस दौरान कई इलाकों में किशोरियों-महिलाओं को अकेला छोड़ दिया जाता है। लेकिन इस सकारात्मक पहल और सबके सम्मिलित प्रयासों से उम्मीद है कि आने वाले दिनों में हम अपनी बेटियों के लिए स्वच्छ और स्वस्थ समाज बना पाएंगे।

संपादन: मनोज झा 


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