रवि के छोटे भाई अक्षय शर्मा भी एक निजी यूनिवर्सिटी में जाॅब कर रहे थे। पर रवि की सफलता को देखते हुए अब उन्होंने भी नौकरी छोड़कर भाई का साथ देने का फैसला लिया है।
ये बुजुर्ग इन बच्चों की स्कूल फीस से लेकर उनकी किताबों और ड्रेस के साथ ट्यूशन फीस का भी खर्च उठा रहे हैं। साथ ही उनको स्वरोजगार का प्रशिक्षण और लोन दिलाने में भी मदद करते हैं।
जो बच्चे कभी रेलवे स्टेशन पर घूमते हुए भीख मांगते नजर आते थे। नशावृति और बाल अपराधों में जकड़े हुए थे, वे आज सबसे पहले ईश्वर की प्रार्थना करते हैं। किताबों में अपने सपनों के रंग भरते हैं।
विद्यालय में मेरे प्रवेश के साथ ही शिक्षकगण इस बात का फैसला कर चुके थे कि वे मुझे अधिकाधिक कार्य सिखाएंगे और इसी विद्यालय में माध्यमिक परीक्षा के बाद मुझे नौकरी भी देंगे ताकि परिवार का भरण-पोषण हो सके। - शिवनाथ झा
जब हम अनंत सत्यार्थी के पूर्णिया स्थित घर पर पहुँचे तो वहाँ के माहौल ने हमारा मन मोह लिया। अनंत सत्यार्थी की नर्सरी में पेड़-पौधे बहुत ही करीने से लगे हुए हैं।
अब तक किसान लकड़ी से बने हल प्रयोग कर रहे थे। इसके लिए वे पूरे पेड़ को ही काट देते थे क्योंकि पेड़ के नीचे वाले हिस्से का उपयोग वे हल की फाल यानी खेत में खुदाई करने वाले हिस्से को बनाने के लिए करते थे। ऐसे में हर साल बड़ी संख्या में पेड़ हल की फाल बनाने के नाम पर मज़बूरी में काट दिए जाते थे। राज्य के 11 पहाड़ी जिलों में 6 लाख 45 हज़ार किसानों के द्वारा हर साल ढाई लाख पेड़ काटे जा रहे हैं।
2015 में शुरू हुए इस सफ़र में लोधी कॉलोनी में पिछले साल (2018) में तकरीबन 30 नई दीवारों पर काम हुआ था। इस साल मार्च के अंत तक स्ट्रीट आर्ट फेस्टिवल, 2019 के खत्म होने तक 50 नई रंग-बिरंगी दीवारें कुछ और घरों का हिस्सा बन चुकी होंगी।