पहाड़ी इलाकों के किसानों तक पहुँचाए लोहे के हल, 14 हज़ार पेड़ों को कटने से बचाया!

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अब तक किसान लकड़ी से बने हल प्रयोग कर रहे थे। इसके लिए वे पूरे पेड़ को ही काट देते थे क्योंकि पेड़ के नीचे वाले हिस्से का उपयोग वे हल की फाल यानी खेत में खुदाई करने वाले हिस्से को बनाने के लिए करते थे। ऐसे में हर साल बड़ी संख्या में पेड़ हल की फाल बनाने के नाम पर मज़बूरी में काट दिए जाते थे। राज्य के 11 पहाड़ी जिलों में 6 लाख 45 हज़ार किसानों के द्वारा हर साल ढाई लाख पेड़ काटे जा रहे हैं।

त्तराखंड के पर्वतीय जिलों में लंबे समय से कृषि कार्यों के लिए लकड़ी से बने उपकरण हल, नहेड़, जुंआ, दनेला आदि का प्रयोग होता आया है। इन उपकरणों के बनाने के लिए पहाड़ का कल्पवृक्ष माने जाने वाला बांज, उतीस, फल्यांट, सानण आदि चौड़ी पत्ती प्रजाति के हरे पेड़ों का उपयोग किया जाता है। किसी भी प्रकार के उचित विकल्प के अभाव व मजबूरी में किसानों द्वारा हर वर्ष बड़ी संख्या में जल संरक्षण, जैवविविधता और पर्यावरण की दृष्टि से अत्यंत महत्वपूर्ण बांज, उतीस, फल्यांट, सानण आदि चौड़ी पत्तीदार पेड़ों को काटा जाता है। जिसके चलते इन पेड़ों की संख्या साल दर साल कम होती जा रही है।

चौड़ी पत्ती प्रजाति पेड़ों के कटान से जंगलों में मौजूद जल स्रोतों, जैवविविधता के ह्रास के रूप में सामने आ रहा है। वन्य जीवों के आहार और आवास पर भी इसका विपरीत असर पड़ रहा है। उत्तराखंड के पर्वतीय इलाकों की गैर हिमालयी नदियों, जल स्रोतों में पानी का स्तर साल दर साल कम होने के पीछे सबसे बड़ा कारण यह है कि इन नदियों के जल संभरण क्षेत्रों में चौड़े पत्तीदार पेड़ पहले की तुलना में काफी कम रह गए हैं।

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हल बनाने के लिए काटा गया पेड़।

इन पेड़ो से भरे मिश्रित जंगल, जिन्हें वर्षावन भी कहा जा सकता है, वर्षा जल को भूजल में बदलने की अद्भुत क्षमता रखते हैं। मानवीय आवश्यकताओं के लिए इन जंगलों का अनियंत्रित और अवैज्ञानिक दोहन होने से जंगलों की वर्षा जल को भूजल में बदलने की प्रक्रिया बाधित हो गई है, परिणाम स्वरूप जंगलों से निकलने वाले जल स्रोतों, नदियों में पानी का स्तर भी कम हो गया है।

कृषि उपकरणों के लिए ग्रामीणों की जंगलों पर निर्भरता कम करने के लिए राज्य के अलग-अलग हिस्सों में लंबे समय से प्रयास होते आ रहे हैं। लेकिन यह प्रयास स्थानीय स्तर तक ही सीमित होने और सफल नहीं होने से किसानों को इसका फायदा नहीं मिल पा रहा और पेड़ो की कटाई भी नहीं रुक रही।

ऐसे में स्याही देवी विकास समिति, शीतलाखेत ने 2012 में विवेकानंद पर्वतीय कृषि अनुसंधान संस्थान, अल्मोड़ा के साथ मिलकर वी.एल.स्याही लोह हल (विवेकानंद लैब स्याही हल) का निर्माण किया। समिति पिछले 12 साल से जंगल बचाओ-जीवन बचाओ अभियान चला रही है, जिसके तहत बांज व चौड़ी पत्ती वाली प्रजातियों को बचाने के लिए जोर दिया जा रहा है, क्योंकि यह पर्यावरण व जल संरक्षण में खासी भूमिका निभाते हैं।

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वीएल स्याही हल के साथ किसान।

 

समिति की पहल पर विवेकानंद पर्वतीय कृषि अनुसंधान संस्थान ने कुछ साल पहले वी.एल.स्याही लोह हल तैयार किया था। वी.एल.स्याही हल दूसरों से कुछ मायनों में अलग है। इसकी खासियत यह है कि इसे बैल की ऊंचाई के अनुरूप बढ़ाया-घटाया जा सकता है। खुदाई के अनुसार फाल की धार बदली जा सकती है। इसका वजन 12 किलो है।

शुरुआत में इन हलों को दानदाताओं व संस्थाओं की मदद से किसानों को बांटा गया ताकि किसान इसका उपयोग करने की आदत डालें। पर्यावरणविद् चंडी प्रसाद भट्ट के प्रयासों से लगभग 500 हल चमोली जनपद में, ग्राम्या के उपनिदेशक बी.एस. बर्फाल के प्रयासों से लगभग 200 हल टिहरी गढ़वाल में , राष्ट्रीय बीज निगम के सहयोग से 40 हल पौड़ी जिला में, कृषि विभाग और ग्राम्या के सहयोग से लगभग 200 हल बागेश्वर जनपद में , कृषि विभाग के सहयोग से लगभग 100 हल पिथौरागढ़  में और कृषि विभाग, वन विभाग, भूमि संरक्षण विभाग, आजीविका, अमन, ईको पाथ, स्याही देवी विकास समिति के प्रयासों से अल्मोड़ा जनपद में लगभग 3,500 हल किसानों को बांटे गए।

 

इनमें से करीब 2 हजार हल निशुल्क वितरित किए गए थे और बाकी किसानों ने खुद खरीदे। हल की वर्तमान कीमत 1715 रुपए है, जिसमें राज्य सरकार पचास प्रतिशत सब्सिडी देती है।

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लकड़ी से बनाया गया हल।

समिति से जुड़े गजेन्द्र पाठक बताते हैं कि,  ”अब तक किसान लकड़ी से बने हल प्रयोग कर रहे थे। इसके लिए वे पूरे पेड़ को ही काट देते थे क्योंकि पेड़ के नीचे वाले हिस्से का उपयोग वे हल की फाल यानी खेत में खुदाई करने वाले हिस्से को बनाने के लिए करते थे। ऐसे में हर साल बड़ी संख्या में पेड़ हल की फाल बनाने के नाम पर मज़बूरी में काट दिए जाते थे। राज्य के 11 पहाड़ी जिलों में 6 लाख 45 हज़ार किसानों के द्वारा हर साल ढाई लाख पेड़ काटे जा रहे हैं। लेकिन लोहे का हल बांटने से इसमें सुधार आया है , अब तक करीब 14 हज़ार से ज्यादा पेड़ पिछले कुछ सालों में कटने से बचे हैं।”

लंबे अरसे से चौड़ी पत्ती प्रजाति पेड़ों के अनियंत्रित और अवैज्ञानिक दोहन और वनाग्नि के कारण गैर हिमानी नदियों, गधेरों, जल स्रोतों में पानी की मात्रा साल दर साल कम होने से राज्य के अधिकांश गाँव, शहर तेजी से जल संकट की ओर बढ़ रहे हैं।

जल स्रोतों के सूखने से चिंतित राज्य सरकार द्वारा रिस्पना और कोसी नदी के पुनर्जीवन के लिए अभियान चलाया जा रहा है जिसमें मुख्य रूप से चाल, खाल, गड्ढे बनाकर वर्षा जल को रोक कर भूजल में बदलने और पौधारोपण पर कार्य किया जा रहा है।

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ऐसे हो रही पेड़ों की कटाई।

स्याही देवी विकास समिति ने कोसी नदी पुनर्जीवन अभियान में ग्रामीणों की जंगलों पर निर्भरता खत्म करने के लिए कोसी नदी के जल संभरण क्षेत्र में मौजूद सभी गांवों के किसानों को वी.एल.स्याही हल देने और गैस कनेक्शन से वंचित परिवारों को गैस कनेक्शन देने का निर्णय लिया है। नदी पुनर्जीवन योजना में वी.एल. स्याही हल को शामिल करने से यह उम्मीद जगी है कि कोसी नदी के जल संभरण क्षेत्र में खेती से जुड़े लगभग 14,000 परिवारों को यह हल दिए जाने के बाद लकड़ी का हल बनाने के लिए काटे जा रहे हजारों पेड़ों की रक्षा हो पाएगी और सूख रहे जल स्रोतों को भी बचाने में मदद मिलेगी।

 

अगर आप भी वी.एल.स्याही हल के संबंध में कोई जानकारी लेना चाहते हैं तो 9690783211 नम्बर पर बात कर सकते हैं।

लेखक – गजेंद्र कुमार पाठक, शीतलाखेत, अल्मोडा़

 

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