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जिनेन्द्र पारख

जिनेन्द्र पारख ने हिदायतुल्लाह राष्ट्रीय विधि विश्वविद्यालय, रायपुर से वकालत की पढ़ाई की है। जिनेन्द्र, छत्तीसगढ़ के राजनांदगांव शहर से आते है। इनकी रुचियों में शुमार हैं- समकालीन विषयों को पढ़ना, विश्लेषण लिखना, इतिहास पढ़ना और जीवन के हर हिस्से को सकारात्मक रूप से देखना।

बस्तर: 40 सरकारी स्कूलों में अब है स्मार्ट क्लास, एलेक्सा बना बच्चों का 'गुरूजी'!

इस वॉयस असिस्टेंट के उपयोग से बच्चे अपनी पढ़ाई के साथ साथ अन्य जानकारियों को भी सुनते और समझते हैं। सिर्फ छात्रों की आवाज पर ही यह मशीन देश-विदेश, भूगोल, आदि सभी की जानकारी बेहद सरल तरीके से उपलब्ध करवाती है।

गाली सुनकर भी आपा नहीं खोया, सुनिए सेवा के प्रति समर्पित एक आईपीएस अधिकारी की कहानी

नवादा के 8 मजदूर सूरत, गुजरात में फंसे हुए थे और 3 तीन दिन से भूखे थे। उन्होंने यह सोच कर गाली दी कि इसके बाद उन्हें जेल भेज दिया जायेगा और वहां दो वक़्त का भोजन तो मिलेगा।

रायपुर में जरूरतमंदों तक भोजन पहुंचाने का काम करती है संस्था

अब तक संस्था ने 5450 फ़ूड पैकेट्स जरूरतमंद तक पहुंचाने का कार्य किया है। इसके साथ ही 400 परिवार तक सूखा राशन भी पहुंचा चुकी है।

दूसरे राज्य से आए श्रमिकों को अतिथि कहते हैं ये कलेक्टर, साथ बैठकर करते हैं भोजन

कोरोना वायरस संक्रमण रोकथाम एवं बचाव हेतु अन्य राज्यों से रूके श्रमिकों के लिए सूरजपुर ज़िले में कुल 31 स्थलों पर सुविधायुक्त व्यवस्था की गई है।

फंसे श्रमिकों को चंद घंटों में मिली राशन और चेकअप की सुविधा, प्रशासन का सराहनीय कदम

छत्तीसगढ़ के कांकेर जिले में श्रमिक दूसरे जिले से परिवार के साथ काम करने आए थे। इनका राशन खत्म हो गया था और छोटे-छोटे बच्चे बीमार थे। इस बीच इनको समझ नहीं आ रहा था कि कहाँ जाए और क्या करें?

अब तक 1000 मास्क बनाकर ज़रूरतमंदों में मुफ्त वितरित कर चूका है रायपुर का यह परिवार!

जहाँ सुरेंद्र और उनकी टोली लोगों के पास जाकर कोरोना वायरस से बचाव के लिए मास्क का वितरण कर रही है, वही उनकी पत्नी, आशा दिन-रात सिलाई मशीन पर मास्क बनाने का कार्य करतीं हैं।

शराब के लिए बदनाम महुआ से बनाये पौष्टिक लड्डू, विदेश पहुंचाकर किया बस्तर का नाम रौशन

कुपोषण से लड़ाई और महिलाओं को रोजगार के लक्ष्य को पूरा करती बस्तर की रज़िया शेख

ट्रेन हादसे में खोए दोनों पैर, आज हाफ ह्यूमन रोबो के नाम से प्रसिद्ध है यह जाबांज!

वर्तमान में चित्रसेन दिव्यांग साथियों की आजीविका सुनिश्चित करवाने के साथ ही लोगों को डिप्रेशन से बाहर निकालने में मदद करते हैं।

हर माह वेतन से 30% देकर अब तक 100 दिव्यांग बच्चों का जीवन संवार चुकी हैं यह युवती!

यह गीतू की मेहनत का ही फल है कि आज 100 बच्चे शिक्षा प्राप्त कर जॉब कर रहे हैं और कुछ जॉब के लिए तैयारी कर रहे हैं।

'नेकी की दिवार' - जिसके पास ज़्यादा हो वह देकर जाए, जिसे ज़रूरत हो वह लेकर जाए!

निगम की इस पहल के बाद रायपुर शहर के लोग अब खुद ही अपने आस-पास की दीवारों को खुद से रंग कर सजा रहे हैं और शहर के अलग-अलग स्थानों पर छोटी-छोटी 'नेकी की दीवार' बन गई हैं।