आजकल ज्यादा से ज्यादा लोग प्रकृति से जुड़कर, पर्यावरण अनुकूल वस्तुएं बनाने का प्रयास कर रहे हैं। प्राकृतिक वस्तुओं का इस्तेमाल करके ऑर्गेनिक कपड़े भी बाज़ार में खूब बनते हैं, जिसमें जुट, बनाना फाइबर और रेशम आदि का उपयोग होता है। लेकिन इसके अलावा भी प्रकृति में कई ऐसी चीजें हैं, जिसका उपयोग कर कपड़े बनाए जा सकते हैं। ऐसी ही एक संभावना को खोज निकाला है, गुजरात की टेक्सटाइल टेक्नोलॉजी की छात्रा, सुमी हलदर ने।
27 वर्षीया सुमी ने कमल के फूल की डंडी से फाइबर तैयार किया है। मूल रूप से कोलकाता से ताल्लुक रखने वाली सुमी के माता पिता नौकरी के सिलसिले में कच्छ में रहते हैं। वहीं सुमी वडोदरा की एम.एस यूनिवर्सिटी में पढ़ाई कर रही हैं।
द बेटर इंडिया से बात करते हुए वह कहती हैं, “मुझे नए-नए फाइबर के बारे में पता लगाना और प्रकृति से जुड़ी चीजों को उपयोग करने में काफी रूचि है। आजकल दुनियाभर में ईको-फ्रेंडली फैब्रिक की काफी डिमांड है। इसी मांग को ध्यान में रखकर ही मैंने यह रिसर्च किया था, जो काफी सफल भी रहा।”
जब वह 2018 में मास्टर्स कर रहीं थीं तभी फाइनल ईयर के प्रोजेक्ट के लिए उन्होंने इस विषय पर रिसर्च करना शुरू कर दिया था। इस दौरान उन्हें उनके कॉलेज की प्रोफेसर मधु शरण ने गाइड किया था।
उन्होंने बताया, “इस तरह का फैब्रिक म्यांमार में छोटे स्तर पर बनता है। दरअसल इस काम में समय और खर्च ज्यादा लगता है इसलिए बहुत कम लोग यह काम करते हैं। लेकिन मैं चाहती थी कि इसे व्यवसायिक दृष्टि से विकसित किया जाए। इसी सोच के साथ मैंने इसके लिए मशीन बनाने की शुरुआत की है।”
सुमी ने आगे बताया, ” फिलहाल मैंने मैन्युअली कमल की डंडी से फाइबर तैयार किया है। इसमें हम कॉटन या रेशम के साथ मिलाकर भी फाइबर तैयार कर सकते हैं। क्योंकि पूरी तरह से कमल की डंडी से बना फाइबर बाजार की मांग को पूरा नहीं कर सकता। इसलिए हम कॉटन ब्लेंड के साथ भी इसे बनाते हैं। वहीं हाथों से इसे बनाने में समय काफी लगता है, जिससे इसकी कीमत भी बढ़ जाती है। इसलिए मैं मशीन पर काम कर रही हूं।”
NGO की मदद से शुरू किया पायलट प्रोजेक्ट
सुमी चाहती थीं कि यह प्रोजेक्ट एक कम्युनिटी प्रोजेक्ट बने और इससे लोग जुड़ें। दरअसल इस काम में उन्हें फंड और कुछ लोगों की भी जरूरत थी। इसी सोच के साथ वह वडोदरा के ‘हैप्पी फेसेस वडोदरा’ नाम के एनजीओ के पास पहुंची।
इसके बारे में एनजीओ से जुड़े पियूष खारे कहते हैं, “हमें सुमी का प्रोजेक्ट काफी अच्छा लगा। उन्हें कुछ महिलाओं को जरूरत थी, जो उनके साथ काम कर सकें। हम लंबे समय से बच्चों और महिलाओं के लिए काम कर रहे हैं। कोरोना के कारण कई महिलाओं के पास काम की कमी थी, इसलिए हमने उन्हें सुमी के साथ जोड़ने का फैसला किया।”
इसके बाद सुमी ने पायलट प्रोजेक्ट पर काम करना शुरू कर दिया। जिसका नाम उन्होंने ‘प्रोजेक्ट सुलभा’ रखा। सुलभा ‘हैप्पी फेसेस वडोदरा’ एनजीओ से जुड़ी एक दिव्यांग सदस्य थीं, जिनका निधन कोरोना काल में हो गया था।
यह एनजीओ शहर के स्लम एरिया में बच्चों के लिए स्कूल चलाता है। इसलिए वहां पढ़ने आए बच्चों की माताओं को ही इस काम में शामिल किया गया। इस तरह कुल आठ महिलाओं को सुमी ने धागे बनाने का काम सिखाया।
इन महिलाओं को ‘हैप्पी फेसेस वडोदरा’ की ओर से दिन की 150 से 200 रुपये मजदूरी भी मिलती है।
महिलाओं को कमल की डंडी सुमी ही लाकर देती हैं। सुमी कहती हैं, “किसी धार्मिक समारोह में कमल के फूलों का उपयोग करके लोग इसकी डंडी फेंक देते हैं। वहीं इसकी खेती करने वाले किसान डंडी फेंकते ही हैं। इसलिए हमारे लिए कच्चे माल को जमा करना कोई बड़ी समस्या नहीं थीं।”
कमल की डंडी से बना ऑर्गेनिक कपड़ा
सुमी इन दिनों कमल की डंडी से तैयार धागों से स्टॉल बनाने का काम कर रहीं हैं। जिसके लिए उन्होंने कच्छ के कारीगरों से मदद ली है। इसके बारे में ‘हैप्पी फेसेस वडोदरा’ के पियूष कहते हैं, “कमल की डंडी से बने कपड़े की स्टॉल को हम जनवरी तक तैयार कर लेंगे। जिसके बाद इसे अलग-अलग प्रदर्शनियों में पेश भी किया जाएगा।”
वहीं सुमी आने वाले समय में इस काम को और आसान बनाने के लिए एक मशीन डिज़ाइन कर रही हैं। ताकि इस तरह तैयार कपड़े को ज्यादा से ज्यादा लोगों तक पहुंचाया जा सके। वह अधिक संख्या में महिलाओं को रोजगार से जोड़ना चाहती हैं।
वहीं पियूष भी मानते हैं कि इस तरह के काम से लोगों को ऑर्गेनिक कपड़ा देने के साथ-साथ कई महिलाओं को आत्मनिर्भर भी बनाया जा सकता है। एक बार कपड़ा बनने का काम पूरा होने पर वह इसकी मार्केटिंग पर ध्यान देने वाले हैं।
सुमी इस सेक्टर में आगे भी रिसर्च करना चाहतीं हैं। वह कहती हैं, “टेक्सटाइल का दायरा काफी बड़ा है। मैं बस फैब्रिक बनाकर नहीं रुकना चाहती। इसका उपयोग मेडिकल टेक्सटाइल, जियोटेक्सटाइल जैसे क्षेत्र में भी हो सकता है। इसके लिए रिसर्च की जरूरत है।”
सुमी और ‘हैप्पी फेसेस वडोदरा’ जिस तरह से काम कर रहे हैं, इससे आशा है कि हम जल्द ही बाजार में कमल की डंडी से बना कपड़ा खरीद पाएंगे।
संपादन- जी एन झा
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