आज आपको बहुत से ऐसे लोगों की कहानी सुनने को मिलेगी, जो नौकरी छोड़कर खेती-किसानी की दुनिया में शामिल हो रहे हैं। द बेटर इंडिया आपको समय-समय पर इस तरह की सकारात्मक खबरों से रू-ब-रू करवाता आ रहा है। आज हम आपको एक ऐसे ही सफल किसान (Farmer) की कहानी सुनाने जा रहे हैं, जिनका संबंध गुजरात से है।
यह प्रेरक कहानी गुजरात के देवपुरा गाँव के चिंतन शाह की है, जो जैविक तरीके से खेती कर रहे हैं। साल 2015 में उन्होंने 10 एकड़ ज़मीन खरीदी थी और साल 2020 तक उन्होंने न सिर्फ इसे उपजाऊ बनाया बल्कि उस जमीन पर अदरक, हल्दी और गेहूँ भी उगा रहे हैं।
गुजरात का यह इलाका तम्बाकू की खेती के लिए जाना जाता है। लेकिन चिंतन ने एकदम ही अलग फसलें उगाकर मिसाल कायम की है। साल 2011 में 33 वर्षीय चिंतन ने मुंबई से अपनी MBA की डिग्री पूरी की और टेक्सटाइल के पारिवारिक व्यवसाय में शामिल हो गए। हालांकि, उन्होंने एक वक़्त के बाद व्यवसाय छोड़कर खेती में हाथ आजमाने का फैसला किया।
चिंतन ने द बेटर इंडिया को बताया, “कपड़ा व्यवसाय उम्मीद के मुताबिक नहीं पनपा, इसलिए मैंने बाजार में जैविक खेती की बढ़ती मांग को देखते हुए प्रयोग करने का फैसला किया। मेरे छोटे भाई, पार्थ, नीदरलैंड में खेती कर रहे हैं, और उन्होंने मुझे बताया कि वह मुझे इस क्षेत्र के अन्य किसानों के साथ जुड़ने में मदद करेंगे।”
अपने छोटे भाई पार्थ की मदद से चिंतन ने फोन पर जैविक किसानों से बात की और कभी-कभी उनसे मिलने जाने लगे, या सोशल मीडिया समूहों से जुड़कर अधिक से अधिक जानकारी लेने की कोशिश करने लगे।
तकनीकी विशेषज्ञता और विधि की बेहतर समझ हासिल करने के लिए वह जैविक खेती समूहों से भी जुड़े। हालाँकि, इस सबके के बावजूद, चिंतन के लिए अपनी ज़मीन को कृषि के लिए उपयुक्त बनाना आसान नहीं था। उन्होंने कहा, “मैंने एक साल में 7.5 एकड़ जमीन को समतल किया। दरअसल वहाँ 20-फुट ऊँची पहाड़ियाँ थीं और कई जगह गहरे-गहरे गड्ढे थे। इसके अलावा, इस प्रक्रिया में, जो कुछ भी उपजाऊ ज़मीन थी वह भी नीचे चली गई।”
मुश्किल था सफर
चिंतन का कहना है कि उन्होंने मिट्टी की उर्वरता बढ़ाने के लिए गाय के गोबर, जैविक खाद और जीवामृत का भरपूर इस्तेमाल किया। उन्होंने केले, हरी सब्जी, बाजरा और हल्दी उगाने से शुरुआत की, लेकिन सफलता काफी कम थी। उन्होंने कहा, “इस क्षेत्र में तंबाकू, सब्जियां, चावल और बाजरा ज़्यादा बोया जाता है। कुछ किसानों ने संदेह भी जताया कि केले यहाँ होंगे भी या नहीं, लेकिन मैं अपने प्रयासों में सफल रहा, और औसतन 25 किलोग्राम उपज तक पहुँच गया। बाजरा और सब्जियों का उत्पादन मेरी उम्मीदों पर खरा नहीं उतरा, लेकिन आगे बढ़ने का आत्मविश्वास मिला।”
हल्दी उगाने के सफल प्रयोग के दो साल बाद, चिंतन ने अदरक और गेहूँ का उत्पादन करने का फैसला किया। लेकिन इस प्रक्रिया में लंबा समय लगा, क्योंकि उनके साथ-साथ उनके खेत पर काम करने वाले मजदूरों को भी जैविक खेती का कोई पेशेवर अनुभव नहीं था। यदि क्षेत्र में काम करने वाले जैविक तरीकों का उपयोग करके नई फसलें उगाते हैं तो मजदूरों को संदेह होता है। “मिट्टी में बहुत अधिक कार्बनिक पदार्थों का उपयोग करने से खरपतवार ज़्यादा उगती हैं। जैविक खेती में रसायनों का उपयोग नहीं कर सकते है। इसलिए हमने खुद अपनी खाद बनाने के लिए चार महीने तक काम किया, जिससे खरपतवार 60% तक कम हो गए,” उन्होंने आगे बताया।
वह कहते हैं, “मैंने कई गलतियाँ की, जिससे मुझे कई बार आर्थिक परेशानी हुई, लेकिन मैंने इस प्रक्रिया को सीखा। 2019 तक, मैं 1 टन हल्दी, 300 किलो अदरक और 2.5 टन गेहूँ का उत्पादन कर चुका हूँ।”
अपनी उपज की मार्केटिंग करने के लिए, चिंतन ने ग्राहकों को हल्दी और अदरक के फ्री सैंपल इस्तेमाल को दिये। उन्होंने कहा, “जैविक खेती में प्रमाण पत्र के बिना, उन्हें समझाना मुश्किल था। इस परेशानी को दूर करने के लिए, मैंने करीबी दोस्तों और रिश्तेदारों को भेजने के लिए सैंपल तैयार किया। मैंने उनसे अनुरोध किया कि अगर उन्हें यह पसंद आया है तो वह मुझसे उत्पाद खरीद लें। अब, वही मुझे और ग्राहकों से जोड़ रहे हैं।”
हासिल की सफलता
ग्राहकों की संख्या बढ़ने के साथ, चिंतन ने हल्दी को बढ़ावा देने के लिए अपना ब्रांड ‘राधे कृष्णा फार्म’ बनाया। इस हल्दी किसान का कहना है कि पिछले दो वर्षों में उन्होंने अपनी उपज आनंद, वडोदरा, सूरत और मुंबई जैसे शहरों में बेची है। उनके मुताबिक, “ज्यादातर उपज बिक गई। ग्राहक छोटी मात्रा में खरीदारी करना पसंद करते हैं न कि पारंपरिक सोच की तरह थोक में खरीदते हैं। कुछ नए ग्राहक भी पहले सैंपल ट्राई करते हैं इसलिए कुछ न कुछ हमेशा तैयार होना ज़रूरी होता है।”
इस उद्यम से वह प्रति वर्ष 7 लाख रुपये कमाते हैं, लेकिन चिंतन का कहना है कि अधिक मुनाफा कमाने से पहले उन्हें और अधिक काम करना होगा।
चिंतन कहते हैं कि आगे उन्हें मिट्टी की उर्वरता में सुधार करना है, और शेष भूमि को समतल करने की आवश्यकता है। उन्होंने बताया, “मैं एक जैविक किसान के रूप में प्रमाणित होने की प्रक्रिया में हूँ। मैं 3.5 टन की औसत के मुकाबले 1 टन हल्दी का उत्पादन करता हूँ। मुझे प्रॉफिट के लिए पहले इतना उत्पादन करना होगा। अभी के लिए, मैं अपनी लागत निकाल पा रहा हूँ और एक अच्छी आजीविका कमाने में सक्षम हूँ। लेकिन इस उद्यम को सफल बनाने में अभी और वक़्त लगेगा।”
चिंतन ने कहा कि वह अपने गेहूँ में वैल्यू एडिशन करके, इसे बेहतर मूल्य पर बेचने के बारे में भी सोच रहे है। “मैंने कीटों को नियंत्रित करने और जैव विविधता को बढ़ावा देने के लिए खेत की परिधि के आसपास औषधीय पौधे लगाए हैं। मुझे उम्मीद है कि पक्षी मेरे खेत की रक्षा के लिए कीटों और कीड़ों को खाएं, और आने वाले वर्षों में, औषधीय पौधे मुझे अतिरिक्त आय देने में सक्षम रहें,” उन्होंने कहा।
आगे वह बताते हैं कि क्षेत्र के लगभग पाँच किसानों ने उनसे प्रेरणा ली है और हल्दी उगाना शुरू किया है। चिंतन कहते हैं, “मैं उन्हें सलाह देता हूँ कि इसके बारे में कैसे आगे बढ़ा जाए जैसा कि मैंने अन्य जैविक किसानों से सीखा। लेकिन मैं उनसे यह खरीदकर अपने ब्रांड नाम के साथ नहीं बेचना चाहता हूँ। मैं चाहता हूँ कि वह स्वतंत्र हों और अपने खुद के ब्रांड बनाएं।”
अंत में वह कहते हैं कि किसी भी किसान के लिए बाजार में अपनी जगह बनाना और पहले से स्थापित बड़े नामों को टक्कर देना काफी मुश्किल है लेकिन किसानों को आगे बढ़ने के लिए कुछ अलग जरूर करना चाहिए।
मूल लेख: हिमांशु निंतावरे
संपादन – जी. एन झा
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