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बुनकरों के ज़ख्म देख बनाई सोलर सिल्क मशीन, 12000+ महिलाओं को दी नई उम्मीद

Silk Production

मूल रूप से दिल्ली के रहने वाले कुणाल वैद पहले टेक्सटाइल इंडस्ट्री में काम करते थे, लेकिन 2011 में झारखंड दौरे के दौरान महिला बुनकरों को हाथ से रेशम का धागा बनाते देख, उन्हें कुछ अलग करने की प्रेरणा मिली।

रेशम उत्पादन (Silk Production) के मामले में भारत चीन के बाद दूसरे स्थान पर है। यहां हर किस्म का रेशम पैदा होता है। इस क्षेत्र में 85 लाख से अधिक लोगों को रोजगार मिलता है। इस तरह, समझा जा सकता है कि रेशम उत्पादन (Silk Production) के क्षेत्र में संभावनाओं की कोई कमी नहीं है। 

आज हम आपको रेशम उद्योग से जुड़े एक ऐसे ही शख्स की कहानी बताने जा रहे हैं, जिन्होंने अपनी कोशिशों से हजारों ग्रामीण महिलाओं के अलावा सैकड़ों किसानों को आमदनी का एक बेहतर जरिया दिया है।

यह कहानी मूल रूप से दिल्ली के रहने वाले कुनाल वैद की है। कुनाल गुड़गांव के एक कॉलेज से साल 2000 में एमबीए करने के बाद टेक्सटाइल से संबंधित अपने फैमिली बिजनेस से जुड़ गए।

कुनाल ने द बेटर इंडिया को बताया, “मैंने यहां एक दशक से भी अधिक समय तक काम किया। इसी दौरान एक प्रोजेक्ट के सिलसिले में, 2011 में मेरा झारखंड जाना हुआ। मैंने वहां के ग्रामीण इलाकों में देखा कि महिलाएं हाथों से ही तसर सिल्क के धागे बना रही हैं और उनके हाथ-पैर जख्म से भरे हुए हैं। यह वास्तव में कुछ ऐसा था, जिसके बारे में कोई सोच भी नहीं सकता था कि आज के जमाने में कोई ऐसे काम कर रहा है।”

Resham Sutra Founder Kunal Vaid Promoting Silk Production in Rural Area
कुनाल वैद

वह बताते हैं कि ये महिलाएं एक दिन में करीब 30 से 40 ग्राम धागा बना पाती थीं, जिससे उन्हें दिनभर में 30-40 रुपए की ही कमाई होती थी। इससे कुनाल को इन महिलाओं के जीवन में एक बदलाव लाने की प्रेरणा मिली। 

बनाया अनोखा मशीन

वह कहते हैं, “आज हर सेक्टर में तेजी से तकनीकी विकास हो रहा है। हमने भी इन महिलाओं को अधिक सक्षम बनाने और उनकी आमदनी को बढ़ावा देने के लिए कुछ करने का फैसला किया और एक-डेढ़ वर्षों के बाद एक ऐसे मशीन को बनाया, जिससे एक दिन में कई गुना ज्यादा धागा बनाया जा सकता था।”

वह बताते हैं, “मशीन बनाने के बाद, हम फिर से उन महिलाओं के पास गए और देखा कि यह जमीनी स्तर पर कितना कामयाब है। हमें इसके काफी अच्छे नतीजे देखने को भी मिले और अब वे एक दिन में 250-300 ग्राम धागा आसानी से बना सकती थीं।”

फिर, कुनाल ने अपने दायरे को बढ़ाने के लिए 2015 में ‘रेशम सूत्र’ कंपनी की शुरुआत की। इसके तहत उनका उद्देश्य रेशम उत्पादकों और बुनकरों को तकनीकी मजबूती देते हुए, उन्हें आत्मनिर्भर बनाना है। 

क्या खास है मशीन में

कुनाल ने धागा बनाने वाली इस मशीन को ‘उन्नति’ नाम दिया है। वह कहते हैं, “धागा बनाने वाली ये महिलाएं काफी पिछड़े इलाके में रहती हैं और वहां बिजली की काफी समस्या होती है। इसलिए हमने अपने मशीन को 30 वाट के सोलर पैनल से लैस किया है, ताकि वे पूरे दिन बिना किसी दिक्कत के धागा बना सकें। यह मशीन सिर्फ कम्प्यूटर के प्रिंटर जितनी बड़ी है और इसे कहीं भी आसानी से लगाया जा सकता है।”

 Silk Production Machine Unnati
उन्नति मशीन

वह बताते हैं, “पहले धागा बनाने वाले मशीनें काफी बड़ी होती थीं और इसे चलाने के लिए 300-400 वाट बिजली की जरूरत होती थी। लेकिन इस मशीन में सिर्फ 10-15 वाट बिजली की जरूरत होती है। इसे चलाना आसान है और पावर ग्रिड पर कोई निर्भरता भी नहीं।”

कई गुना अधिक हुई आमदनी

वह कहते हैं, “हमने अपने प्रभावों को आंकने के लिए एक सर्वे किया। पहले सिर्फ घर की उम्रदराज महिलाएं ही, रेशम का धागा बनाती थीं। लेकिन मशीन लगने के बाद इस काम में पूरा परिवार जुट गया और कई बच्चे भी स्कूल-कॉलेज से आने के बाद इसमें हाथ बंटाने लगे। इस तरह, एक दिन में 10-12 घंटे काम होने लगा और जहां पहले हर दिन सिर्फ 30 रुपए कमाई होती थी, अब 250-300 होने लगा।”

वह बताते हैं, “आज पूरे देश में रेशम के व्यापार में सबसे बड़ी समस्या यह है कि कपड़ा बनाने में जो रेशम के ताने का इस्तेमाल होता है, उसे बाहर से मंगाया जाता है। लेकिन हमारी मशीनों से बनने वाले धागे का इस्तेमाल ताने के रूप में भी किया जा सकता है।”

मशीन की कीमत

कुनाल बताते हैं, “धागा बनाने के लिए मेरे पास फिलहाल आठ तरह की मशीनें हैं, जिसकी कीम 12 हजार से लेकर 25 हजार के बीच है। हम जरूरतमंदों को बैंक से लोन दिलाने की भी कोशिश करते हैं। हमें काउंसिल ऑन एनर्जी, एनवायरनमेंट एंड वाटर (CEEW) और विलग्रो इनोवेशन फाउंडेशन (Villgro) के संयुक्त कार्यक्रम  – पॉवरिंग लाइवलीहुड से मदद मिल रही है और हम महिलाओं के लिए और अधिक वित्तीय विकल्प पर काम कर रहे हैं।”

दायरा

‘रेशम सूत्र’ का दायरा आज झारखंड के अलावा बिहार, आंध्रप्रदेश, छत्तीसगढ़, असम जैसे 14 राज्यों में फैल चुका है। उनके साथ फिलहाल 12000 से अधिक महिला जुड़ी हुई हैं।

ऐसी ही एक महिला हैं, छत्तीसगढ़ के बिलासपुर जिले के गड़हट गांव की रहने वाली प्रीति केंदाकर।

22 साल की प्रीति कहती हैं, “चार साल पहले महिलाओं को ट्रेनिंग देने के लिए रेशम सूत्र की टीम हमारे गांव आई थी। मैंने उनसे काम सीखा और फिर उन्हीं के साथ काम करने लगी। पहले हमारी कमाई कोई निश्चित नहीं थी, लेकिन आज हर महीने 7000-8000 रुपए की स्थिर कमाई है। मैं दूसरी महिलाओं को भी ट्रेनिंग देती हूं।”

How Delhi Based Startup Promoting Silk Production by Using Technology
मशीनों से धागा बनाती महिलाएं

वहीं, कुनाल कहते हैं, “हमने देखा कि जहां मशीनें जाती हैं, वहां मार्केटिंग और प्रोडक्शन को लेकर जरूरतें बढ़ जाती है। इसलिए हमने ऐसे मॉडल को विकसित किया, जहां ये महिलाएं किसी पर निर्भर न हों और हमारे बाद भी उनका काम चलता रहे।”

वह बताते हैं कि उन्होंने अपना काम मशीनों को बनाने से शुरू किया था, लेकिन धीरे-धीरे उन्होंने रेशम की खेती को बढ़ावा देने के लिए, किसानों को प्रोत्साहित करना शुरू कर दिया।

वह कहते हैं, “हमने आदिवासी किसानों को समझाना शुरू किया कि रेशम की खेती से उनकी आय परंपरागत फसलों के मुकाबले कई गुना ज्यादा हो सकती है। आज हमारे साथ 300 से अधिक किसान जुड़े हुए हैं।”

वह आगे कहते हैं, “हमारी योजना महिलाओं और किसानों को आत्मनिर्भर बनाने की है। इसलिए हम उनका उत्पाद खरीद कर कहीं बेचने के बजाय, उन्हें खुद ही बेचने के लिए सीखा रहे हैं। हम उन्हें बस खरीदारों से मिला देते हैं।”

राह नहीं थी आसान

कुनाल कहते हैं, “जब हमने अपनी मशीनें गांवों में देनी शुरू की, तो कुछ महीने के बाद कई शिकायतें आने लगी कि ये ठीक से चल नहीं रहा है। यह हमारे लिए चिंताजनक था। फिर हमने पता करना शुरू किया कि आखिर दिक्कत क्या है। हमने अपने टेक्नीशियन को उनके पास भेजा, तो हमें अहसास हुआ कि ये महिलाएं जीवन में पहली बार ऐसी मशीनें चला रही हैं। इसलिए उनके लिए रखरखाव का ध्यान रखना आसान नहीं था। फिर हमने स्थानीय युवाओं को ट्रेनिंग देना शुरू किया और उन्हें सर्विसिंग के लिए रखा। आज हमारे साथ ऐसे 60 से अधिक टेक्नीशियन हैं।”

रूरल एक्सपीरिएंस सेंटर की शुरुआत

कुनाल बताते हैं, “आज कई महिलाएं इस क्षेत्र में काम करना चाहती हैं। लेकिन जानकारी और ट्रेनिंग के अभाव में वह कुछ कर नहीं पाती हैं। इसलिए हमने कोरोना महामारी के दौरान गुवाहाटी और छत्तीसढ़ के जगदलपुर में अपने रूरल एक्सपीरिएंस सेंटर की शुरुआत की।”

मशीनों से धागा बनाने से कई गुना बढ़ी महिलाओं की कमाई

वह आगे बताते हैं, “इसके तहत हम महिलाओं को रेशम उत्पादन (Silk Production), धागा बनाने से लेकर मार्केटिंग तक की ट्रेनिंग देते हैं। हम अभी 300 से अधिक महिलाओं को ट्रेनिंग दे चुके हैं और हमारा मकसद इस मॉडल को दूसरे राज्यों में भी शुरू कर अधिक से अधिक महिलाओं से जुड़ना है।”

क्या है भविष्य की योजना

कुनाल कहते हैं, “आज बाजार की हालत ऐसी है कि यदि किसी रेशम की साड़ी की कीमत 3000 रुपए है, तो उसे उगाने वाले और धागा बनाने वाले को 1000 रुपए भी मिल जाएं, तो बहुत है। हम इस समीकरण को बदलना चाहते हैं। हमारा मकसद एक ऐसे ऑनलाइन प्लेटफॉर्म को शुरू करने है, जहां उनका सामान बिल्कुल पारदर्शी तरीके से बिके और उन्हें अधिक से अधिक फायदा हो। फिलहाल हम इस दिशा में काम कर रहे हैं।”

गांवों में इतने बड़े पैमाने पर लोगों की जिंदगी में बदलाव लाने के लिए रेशम सूत्र को एशडेन अवार्ड्स, आईएसएचओ अवार्ड्स जैसे अंतरराष्ट्रीय पुरस्कारों से सम्मानित किया जा चुका है। इतना ही नहीं, कंपनी को 2020 में भारत सरकार के राष्ट्रीय स्टार्टअप मिशन द्वारा ‘टॉप-10 एग्री-टेक स्टार्टअप’ में भी चुना गया।

द बेटर इंडिया रेशम बुनकरों के जीवन में बदलाव लाने के लिए कुनाल वैद के इस प्रयास की सराहना करता है।

आप रेशम सूत्र से यहां संपर्क कर सकते हैं।

संपादन- जी एन झा

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