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अहमदाबाद से तक़रीबन 40 किलोमीटर दूर बसा है, 125 एकड़ में फैला और सात किलोमीटर लंबी, खूबसूरत बोगनवेलिया की बॉउंड्री से घिरा हुआ, सरदार पटेल फार्म (Sardar Patel Farm)।
कार्डियोलॉजिस्ट, डॉ. दिनेश पटेल का यह फार्म, जैव विविधता और प्राकृतिक सुंदरता का, एक सूंदर उदाहरण है। इस फार्म में तक़रीबन एक हजार मोर और 50 से ज़्यादा प्रजातियों के पक्षी बसते हैं।
द बेटर इंडिया से बात करते हुए डॉ. दिनेश बताते हैं, "ये सभी पक्षी और कई करोड़ जीव, हमारे फार्म में रहते भी हैं और खेती में योगदान भी देते हैं। ये सभी अपना-अपना काम करते हैं और शुद्ध भोजन खाते हैं। साथ ही, प्राकृतिक तरीके से हमें खेती में फायदा भी पहुंचाते हैं।"
डॉ. दिनेश पटेल पिछले 30 सालों से मेडिकल प्रैक्टिस करने के साथ-साथ, खेती भी कर रहे हैं। इस खेत के अंदर ही फसलों में वैल्यू एडिशन करके, तक़रीबन 100 से ज्यादा बाय प्रोडक्ट्स तैयार किये जाते हैं। इन प्रोडक्ट्स को, वह अपने आर्गेनिक ब्रांड नाम ECOVITALS के तहत बेचते हैं। डॉ. दिनेश ने बताया कि वह कई टन गेहूं, चावल, दालें और सब्जियां बिना मंडी में ले जाए, खुद अपनी निर्धरित कीमत पर खेत से ही बेच देते हैं।
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बचपन में रोपा गया प्राकृतिक खेती का बीज
डॉ. दिनेश के पिता, डॉ.जी.ए.पटेल Kenya के एक गांव में डॉक्टर थे। उनकी खेती में बेहद दिलचस्पी थी, इसलिए वह अपने आस-पास कुछ न कुछ उगाते रहते थे। डॉ.दिनेश जब थोड़े बड़े हुए, तब इनका पूरा परिवार, भारत (अहमदाबाद) आ गया। उनके पिता को खेती का इतना शौक था कि उन्होंने जमीन खरीदी और मेडिकल प्रैक्टिस छोड़कर, खेती करने लगे।
डॉ. दिनेश के मुताबिक पहले उनके पिता ने व्यवसायिक खेती शुरू की थी, जिसमें केमिकल वाले खाद और कीटनाशक का इस्तेमाल किया जाता था। लेकिन, चूँकि वह Kenya में ऑर्गेनिक तरीके से खेती करते थे, इसलिए वह ऐसी खेती से खुश नहीं थे।
फिर, तक़रीबन 30 साल पहले एक दिन उन्होंने अपनी खेती के तरीके में बदलाव लाने का फैसला किया। उन्होंने फार्म में मौजूद सारे केमिकल खाद को खेत से बाहर रखा और आस-पास के गांव के किसानों से कहा, ‘जिसे भी चाहिए वह ये खाद ले जा सकता है।’
शुरुआत में सब हैरान थे कि ये लोग क्या कर रहे हैं। सभी को लगा उन्होंने खेती छोड़ने का मन बना लिया। लेकिन बाद में उन्हें पता चला कि वे नए तरीके से खेती कर रहे हैं।
अपनी डॉक्टरी की पढ़ाई पूरी करने के बाद, डॉ. दिनेश ने भी, घर के पास ही रहकर प्रैक्टिस करने का फैसला किया।
वह बताते हैं, "मैंने देखा कि खाने की हर एक चीज़ को केमिकल डालकर बनाया जा रहा है, इसलिए लोगों को दवाईयां देने से बेहतर है कि उन्हें सेहतमंद खाना दिया जाए।"
खेत में बनाया एक माइक्रो क्लामेट
इनका पूरा खेत किसी सीमेंट या मेटल के तारों से बनी बाउंड्री से नहीं, बल्कि बोगनवेलिया के सूंदर फूलों से घिरा है।
वह बताते हैं, "इस तरह की ग्रीन बाउंड्री बनाने से, हमें बेहद फायदा हुआ। यह कई किस्मों के पक्षियों और मधुमखियों का घर बन गया। इनमें से ज्यादातर पक्षी, कीड़े खाते हैं। चूँकि हम अपने खेत में किसी तरह के कीटनाशक का इस्तेमाल नहीं करते, इसलिए पक्षियों को अपना भोजन यहां आसानी से मिल जाता है। साथ ही, फसल को नुकसान पहुंचानेवाले कीड़े, बिना दवाइयों के खत्म हो जाते हैं। वहीं मधुमखियां परागण में मदद करती हैं, जिससे 15 से 20 प्रतिशत तक उत्पादकता में इज़ाफ़ा हुआ है।
इस तरह के ग्रीन वॉल से खेत में तापमान एक समान रहता है और पेड़ पौधों में नमी बनी रहती है।
डॉ. दिनेश मानते हैं कि जब आप प्राकृतिक तरीके से खेती करते हैं, तब प्रकृति में मौजूद सभी तत्वों का योगदान जरूरी होता है। एक समय पर जिस जमीन पर कोई जीव, पक्षी, कीड़े आदि नहीं थे, वहीं आज यह खेत एक हजार से ज्यादा मोर और कई और जीव-जंतुओं का घर बन गया है।
वह कहते हैं, "खेतों में केंचुएं खुद ही वर्मी कम्पोस्ट बना देते हैं। हमें कुछ करने की जरूरत नहीं पड़ती। दीमक और केंचुएं मिट्टी के अंदर छेद करते हैं, जिससे बारिश का पानी ऊपर-ऊपर रहने की बजाए, सीधा जमीन के अंदर चला जाता है। उनका कहना है, "हमारे खेतों में मिट्टी की नमी बनाए रखने में, ये सभी कीट हमारी मदद करते हैं।"
कैसे बने एक सफल किसान
डॉ. दिनेश बताते हैं, "हमने पिछले 20 सालों से किसी भी फसल के बीज, बाजार से नहीं खरीदे। अगर आप एक लाख रुपये सालाना बीज का खर्चा माने, तो हमने 20 साल में 20 लाख की बचत की है।"
वह हर किसान को ‘मेरा बीज मेरा हक़’ का मंत्र देते हैं।
डॉ. दिनेश के खेत में ही चावल, चावल के टुकड़े और चावल से बने पोहे और मुरमुरे भी बनाये जाते हैं और बेचते हैं। इसके अलावा, वह अपने खेत में एक नर्सरी भी चलाते हैं।
उनका कहना है कि किसानों को अपनी फसलों में वैल्यू एडिशन करना चाहिए।
उन्होंने बताया, “मैं अपने फार्म से ही कई टन अनाज बेचता हूँ, जिसके लिए हमने कोई मार्केटिंग भी नहीं की है। तक़रीबन 20 सालों से हम खेत पर ही प्रोडक्ट्स भी बना रहे हैं। आज हमारे पास 100 से ज्यादा प्रोडक्ट्स मौजूद हैं।”
67 की उम्र में भी हैं फिट!
67 वर्षीय डॉ. दिनेश, सुबह 4 बजे से 10 बजे तक, आपको खेत में काम करते दिख जाएंगे। 10 बजे वह अपने क्लिनिक जाते थे। हालांकि कोरोना के बाद, उन्होंने क्लीनक जाना छोड़ दिया है। अपने खेती के प्रति लगाव ने ही, उन्हें एक प्रगतिशील किसान बनाया है। उनके फार्म को गुजरात सरकार की ओर से मॉडल फार्म घोषित किया गया है। इसके अलावा उन्हें सरदार पटेल कृषि अवार्ड, सहित कई अवार्ड मिल चुके हैं।
अब तक कई हजार किसान उनके खेत पर प्राकृतिक खेती सीखने आ चुके हैं। इसके साथ ही IIM, CEPT जैसे कई कॉलेज के बच्चे भी यहां टूर पर आते रहते हैं। इन सभी को डॉ. दिनेश बड़े उत्साह से अपना खेत दिखते हैं व खेती सिखाते हैं।
अंत में वह कहते हैं, "अगर किसान प्रकृति से सीखकर और उससे जुड़कर खेती करेगा, तो उसे जरूर फायदा होगा। हमारे आस-पास जितने भी जीव हैं, उन सबका अपना अलग अलग रोल है। इसलिए मैं मानता हूँ कि सबको जीने दो और जियो।"
आप सरदार पटेल फार्म के बारे में ज्यादा जानने और उनके प्रोडक्ट्स ऑर्डर करने के लिए, उनके फेसबुक पेज और उनकी वेबसाइट पर संपर्क कर सकते हैं।
संपादन - मानबी कटोच
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