मिट्टी-पत्थर से 40+ इमारत बना चुकीं हैं ये आर्किटेक्ट, 2000+ छात्रों को भी किया प्रशिक्षित

Woman Architects

बेंगलुरू स्थित आर्किटेक्चर फर्म ‘मेसन्स इंक’ के संस्थापक रोजी पॉल और श्रीदेवी चंगाली, अपनी संस्था के तहत हेरिटेज कंजर्वेशन, अर्थेन स्ट्रक्चर और सस्टेनेबिलिटी को बढ़ावा देने के साथ-साथ सामान्य लोगों को इसके महत्व को लेकर जागरूक की दिशा में वर्षों से प्रयासरत हैं।

कंस्ट्रक्शन एक उभरता क्षेत्र है, लेकिन इसमें हमेशा से ही पुरुषों का ही प्रभुत्व रहा है। कंस्ट्रक्शन साइटों पर आपको मजदूरी करने वाले लोगों को छोड़ कर, ठेकेदारों से लेकर राजमिस्त्री तक पुरुष ही मिलेंगे। लेकिन, आज हम आपको ऐसी महिलाओं (Woman Architects) से मिलाने जा रहे हैं, जिन्होंने इन रूढ़ियों को तोड़कर सस्टेनेबल आर्किटेक्चर के क्षेत्र में एक मिसाल कायम की है।

यह कहानी है बेंगलुरू स्थित आर्किटेक्चर फर्म ‘मेसन्स इंक’ के संस्थापक रोजी पॉल और श्रीदेवी चंगाली की, जो अपनी संस्था के तहत देश की वास्तुकला शैलियों और विरासतों की रक्षा के लिए वर्षों से प्रयासरत हैं।

Woman Architects
श्रीदेवी चंगाली और रोजी पॉल

यॉर्क यूनिवर्सिटी, यूके से आर्किटेक्चर में मास्टर्स श्रीदेवी ने द बेटर इंडिया को बताया, “मैंने और रोजी ने मिलकर मेसन्स इंक को साल 2013 में शुरू किया। इसके तहत हमारा उद्देश्य हेरिटेज कंजर्वेशन, अर्थेन स्ट्रक्चर और सस्टेनेबिलिटी को बढ़ावा देने के साथ-साथ सामान्य लोगों को इसके महत्व को लेकर जागरूक भी करना है।”

वह बताती हैं, “हमने अभी तक करीब 40 प्रोजेक्ट किए हैं। खास बात यह है कि इन परियोजनाओं को हमने स्थानीय संसाधनों से बनाया है, जिस वजह से कार्बन फूटप्रिंट को कम करने में भी मदद मिली।”

इसके अलावा, उन्होंने लोगों को सतत वास्तुकला से जोड़ने के लिए कई वर्कशॉप और एग्जीबिशन का भी आयोजन किया है। 

Woman Architects
स्कूल छात्रों को सतत वास्तुकला के बारे में जानकारी देते श्रीदेवी और रोजी

श्रीदेवी बताती हैं, “मैंने अभी तक 2000 से अधिक लोगों को सस्टेनेबल आर्किटेक्चर की ट्रेनिंग दी है। हमारा उद्देश्य है कि हम लोगों को सिर्फ किताबी जानकारी न देते हुए, उन्हें व्यावहारिक ज्ञान भी दें, ताकि उन्हें इससे एक जुड़ाव महसूस हो।”

मेसन्स इंक के कुछ उल्लेखनीय प्रोजेक्ट की जानकारी निम्न है:

द कोर्टयार्ड, कोच्चि, केरल

श्रीदेवी बताती हैं, “इस परियोजना को मिट्टी से अंजाम दिया गया था। यह एक वर्किंग स्पेस है, जिसे केरल की परंपरागत वास्तुकला पर बनाया गया है। इसे इस तरीके से बनाया गया है कि उपलब्ध जगह का पूरा इस्तेमाल हो। इसमें मिट्टी को दो तरीके से इस्तेमाल किया गया है – सीएसईबी और रैम्ड अर्थ। इस परियोजना में स्थानीय स्तर पर उपलब्ध लकड़ी और पत्थर का भी काफी इस्तेमाल किया गया है। जिससे कार्बन फूट प्रिंट को कम करने में मदद मिली। वैकल्पिक छतों के लिए स्लोप रूफ का इस्तेमाल किया है। इसके सेमिनार हॉल को न्युबियन तकनीक के तर्ज पर, मुड ब्लॉक से गुंबददार बनाया गया है।

Woman Architects
प्रोजेक्ट द कोर्टयार्ड

श्रीदेवी कहतीं हैं, “पूरे संरचना में ऑक्साइड फ़्लोरिंग के कई शेड हैं। वहीं, रिसेप्शन में इस मोनोटोनी को तोड़ने के लिए पीतल के इनले का उपयोग किया गया है। जबकि, आर्ट स्टूडियो में अथंगुडी टाइलों का इस्तेमाल किया गया है।”

यश फार्म्स, चंदापुर, बेंगलुरू

श्रीदेवी ने यश फार्म्स के बारे में बताया, “यह एक ऑर्गेनिक फार्म है। इस प्रोजेक्ट को सोलर पैसिव तकनीक के जरिए बनाया गया है, ताकि ऊर्जा की जरूरतों को कम करने में मदद मिले। इसमें रेन वाटर हार्वेस्टिंग, वेस्ट मैनेजमेंट, बायोगैस और सोलर एनर्जी की भी सुविधा विकसित की गई है। संरचना को बनाने में कंप्रेस्ड स्टेबलाइज्ड अर्थ ब्लॉक्स (CSEB), रेम्ड अर्थ, प्राकृतिक पत्थर और लकड़ी का इस्तेमाल किया गया है।”

Woman Architects
प्रोजेक्ट यश फार्म्स

वह आगे बताती हैं, “1.2-एकड़ के दायरे में बने इस संरचना का इस्तेमाल कई वर्कशॉप के आयोजन के लिए भी किया जाता है। कुल मिलाकर, यह मिट्टी से बने एक फार्म हाउस से कहीं अधिक है।”

स्नेहादान, बेंगलुरू

श्रीदेवी कहती हैं, “हमने इस परियोजना को साल 2018 में पूरा किया था। यह एक वोकेशनल ट्रेनिंग सेंटर है, जिसे एचआईवी एड्स से पीड़ित लोगों के लिए बनाया गया था। इस सेंटर को अर्थ ब्लॉक से बनाया गया था और इसमें जनभागीदारी भी सुनिश्चित की गई थी, ताकि लोगों को इससे एक जुड़ाव महसूस हो।”

प्रोजेक्ट स्नेहादान

वह बताती हैं, “इस परियोजना को महज 20 लाख रुपए में पूरा किया गया था। यह एक 10 एकड़ के प्लाट पर बना था, जहाँ कई तरह के पेड़-पौधे थे। इसलिए सेंटर को बनाने के दौरान, इसका पूरा ध्यान रखा गया। सेंटर में पर्याप्त रोशनी और हवा के लिए इसके अंदर आँगन बनाए गए और बड़े दरवाजों को रखा गया। जिससे बिजली की खपत भी कम हुई।”

सतत वास्तुकला से कैसे जुड़ी

श्रीदेवी बताती हैं, “मैं और मेरी दोस्त रोजी, को 2010 में ऑरोविले अर्थ इंस्टीट्यूट, पुडुचेरी में ट्रेनिंग करने का मौका मिला। इसके बाद दिनोंदिन हमारा रुझान सतत वास्तुकला की ओर बढ़ने लगा और साल 2013 में मास्टर्स करने के बाद, मैंने रोजी के साथ मिलकर इस दिशा में अपना कुछ शुरू करने का फैसला किया, तब वह ऑरोविले फर्म की हेड आर्किटेक्ट थीं।”

अपनी टीम के साथ रोजी और श्रीदेवी

भारतीय वास्तुकला को लेकर क्या मानना है?

श्रीदेवी कहती हैं, “हर युग की अपनी स्थानीय वास्तुकला शैली रही है। लेकिन, आज सूचना तकनीक काफी विकसित हो चुकी है, जिस वजह से वैश्विक स्तर पर बदलाव देखने को मिल रहा है। एक तरफ, इससे युवा पेशेवरों के लिए आँकड़ों तक पहुँच आसान हो गई है। लेकिन, दूसरी तरफ, हम अपनी शैलियों को भूलते जा रहे हैं। देश में पश्चिमी शैली को अपनाने से कोई समस्या नहीं है, लेकिन हमें विचार करना होगा कि क्या वह हमारे लिए अनुकूल है। यह विमर्श सीधे तौर स्थिरता से जुड़ी हुई है।”

आप मेसन्स इंक से यहाँ संपर्क कर सकते हैं।

संपादन – जी. एन झा

यह भी पढ़ें – 28 डिग्री में रह सकते हैं, तो AC की क्या ज़रुरत? ऐसे कई सवाल सुलझा रहे हैं यह आर्किटेक्ट

यदि आपको इस कहानी से प्रेरणा मिली है, या आप अपने किसी अनुभव को हमारे साथ साझा करना चाहते हो, तो हमें hindi@thebetterindia.com पर लिखें, या Facebook और Twitter पर संपर्क करें।
Woman Architects, Woman Architects,Woman Architects,Woman Architects,

We at The Better India want to showcase everything that is working in this country. By using the power of constructive journalism, we want to change India – one story at a time. If you read us, like us and want this positive movement to grow, then do consider supporting us via the following buttons:

Let us know how you felt

  • love
  • like
  • inspired
  • support
  • appreciate
X