अस्पताल ने दिया भारी भरकम बिल तो कंज्यूमर फोरम से माँगी मदद, मिला 3 लाख रुपये का मुआवजा

यदि आप जानना चाहते हैं कि उपभोक्ता फोरम में शिकायत कैसे दर्ज की जाती है और अपने केस को बिना वकील की सेवाएं लिए कैसे लड़ा जा सकता है, पढ़ें यह लेख!

2011 में दिनेश जोशी अपनी पीठ में दर्द की समस्या लेकर एक डॉक्टर के पास गए। लेकिन जिस इलाज की उन्हें ज़रूरत थी वह उन्हें वहाँ नहीं मिला। न्याय पाने के लिए उन्हें कंज्यूमर कोर्ट का दरवाजा खटखटाना पड़ा। फैसला आने में थोड़ा समय लगा और आखिरकार 2019 में कंज्यूमर कोर्ट से दिनेश को न्याय मिला।

जनवरी 2019 मे  दिनेश जोशी बनाम डॉ. गीता जिंदल आरोग्य एंड एएनआर के मामले में राष्ट्रीय उपभोक्ता विवाद निवारण आयोग (एनसीडीआरसी) द्वारा अनफेयर ट्रेड प्रैक्टिस के लिए दिनेश जोशी (शिकायतकर्ता) को मुआवजे के रूप में 3,00,000 रुपये दिए गए।

एनसीडीआरसी ने यह भी कहा कि डॉक्टर न सिर्फ रोगी के इलाज में लापरवाही बरती, बल्कि रोगी को इलाज के नाम पर झूठा और भारी भरकम बिल भी पकड़ाया था। यह पूरी तरह से अनुचित व्यापार व्यवहार (अनफेयर ट्रेड प्रैक्टिस) है।

आइए जानते हैं यह सब कैसे हुआ : 

केस से जुड़े तथ्य

-4 अक्टूबर 2011 को, शिकायतकर्ता को पीठ में गंभीर दर्द हुआ और वह एक डॉक्टर के पास गए। जाँच के बाद, उन्हें कुछ दवाएँ दी गईं और कहा गया कि वह फिशर से पीड़ित हैं। जब दवाएँ काम करना शुरू कर देंगी तो दर्द कम हो जाएगा।

-दो दिन बाद 6 अक्टूबर 2011 को, शिकायतकर्ता डॉक्टर के पास दोबारा गए और कहा कि वह अभी भी दर्द से परेशान है। चूंकि इलाज करने वाला डॉक्टर उस वक़्त शहर में नहीं थे, इसलिए शिकायतकर्ता देर रात को ही डॉक्टर से बात कर सके।

-7 अक्टूबर 2011 की सुबह शिकायतकर्ता इलाज करने वाले डॉक्टर के पास गए और उन्हें भर्ती कराया गया। आरोप है कि डॉक्टर अस्पताल में भर्ती रहने के दौरान केवल एक या दो बार ही शिकायतकर्ता के पास आए।

-अस्पताल में भर्ती करते समय शिकायतकर्ता को आश्वासन दिया गया था कि इलाज में  6,000 से 7,000 रुपये से अधिक का खर्च नहीं आएगा।

-इस आश्वासन के बावजूद शिकायतकर्ता से 36,450 रुपये लिए गए।

-अपनी याचिका में शिकायतकर्ता द्वारा प्रस्तुत विवरणों के अनुसार, वह 12 अक्टूबर 2011 को अस्पताल से डिस्चार्ज हुए थे और HV/TLC.DLC टेस्ट के लिए 1850 रुपये फीस ली गई। जबकि किसी भी लैब में इस टेस्ट की फीस केवल 250 रुपये है।

-हॉस्पिटल से डिस्चार्ज होने के बाद शिकायतकर्ता ने एक अल्ट्रासाउंड सेंटर में अपनी जांच कराई। जांच में पाया गया कि वहाँ लोकेलाइज्ड फ्लुइड जमा हो गया था।

-इसके बाद, 13 अक्टूबर 2011 को, शिकायतकर्ता को मवाद निकालने के लिए भर्ती कराया गया और इसके बाद वह बहुत बेहतर महसूस करने लगे।

ट्रिब्यूनल ने क्या कहा?

consumer protection
चिकित्सकीय लापरवाही उपभोक्ता सुरक्षा कानून के अंतर्गत आती है

अपने आदेश में ट्रिब्यूनल ने कहा, “वर्तमान मामले में मरीज की कोई सर्जरी नहीं की गई थी और ऐसी दवाओं / सर्जिकल वस्तुओं का भी बिल जोड़ा गया जिनका इस्तेमाल नहीं किया गया था। रिकॉर्ड में इस बात का कोई सबूत नहीं है कि मरीज को कभी आईसीयू में रखा गया था। ”

आगे कहा गया, “वास्तव में यह इलाज करने वाले डॉक्टर से जुड़ा मामला है। जब मरीज की सर्जरी करने की आवश्यकता नहीं थी तो उसे आईसीयू में रखने का सवाल ही नहीं उठता था। इसलिए मरीज को आईसीयू में रखने के नाम पर गलत तरीके से 12,500 रुपये का बिल बनाया गया था। इस तरह से गलत बिल बनाना अनफेयर ट्रेड प्रैक्टिस माना जाता है। ”

इस तरह से दिनेश की समस्या का हल निकला और उन्हें मुआवजा मिला। यह हम सभी के लिए एक सबक है। हमें इस बात पर नज़र रखना चाहिए कि अस्पतालों में हमारे साथ कैसा व्यवहार किया जाता है। दर्द या घबराहट के दौरान किसी चीज का ध्यान न रहना स्वाभाविक है, लेकिन इस बात का ध्यान रखें कि क्या आपका सही इलाज किया जा रहा है और क्या आपसे उचित फीस ली जा रही है।

चिकित्सकीय लापरवाही (मेडिकल नेग्लिजेंस) क्या है

बहुत से उपभोक्ता मामलों का निपटारा करने वाले एडवोकेट जहाँगीर गाई ने मेडिकल नेग्लिजेंस केस के बारे में द बेटर इंडिया को बताया,  “मैं यह सलाह देना चाहूंगा कि सभी रोगी अस्पताल / डॉक्टर से लिखित में पीरियॉडिक अपडेट मांगें। याद रखें कि एक बार कुछ लापरवाही हो जाने पर डॉक्टर सारे दस्तावेजों के साथ हेरफेर कर सकता है। इसलिए संभलकर रहें और रिकॉर्ड हासिल करें।”

समय-समय पर आपका मेडिकल रिकॉर्ड मांगना एक व्यक्ति का अधिकार है। कोई भी डॉक्टर या हॉस्पिटल इसे देने से इनकार नहीं कर सकता है। वास्तव में, अगर सत्तर घंटों के भीतर मरीज को रिकॉर्ड नहीं सौंपा जाता है, तो अस्पताल और डॉक्टर द्वारा नैतिकता का उल्लंघन माना जाएगा।

जहाँगीर गाई कहते हैं कि यह भी सलाह दी जाती है कि किसी भी तरह की प्रक्रिया या सर्जरी से पहले मरीजों को दोबारा राय ले लेनी चाहिए। “किसी भी प्रक्रिया से सहमत होने से पहले हमेशा अपने डॉक्टर के साथ इलाज के विभिन्न विकल्पों पर गहराई से चर्चा करनी चाहिए,” उन्होंने कहा।

यदि आप जानना चाहते हैं कि उपभोक्ता की शिकायत कैसे दर्ज की जाती है और अपने केस को बिना वकील की सेवाएं लिए कैसे लड़ सकते हैं, तो आप इसके बारे में पढ़ने के लिए यहां क्लिक कर सकते हैं। कंज्यूमर फोरम द्वारा दिए गए ऐसे ही कुछ अन्य फैसलों को आप यहां पढ़ सकते हैं। मेडिकल नेग्लिजेंस क्या है और आप अपनी सुरक्षा कैसे कर सकते हैं, इसके बारे में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें।

मूल लेख- VIDYA RAJA 

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