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12वीं पास किसान के बनाए 'ममी-मॉडल' से अब अंतिम संस्कार में लगती हैं 4 गुना कम लकड़ियां!

एक बीघा में 60 टन लकड़ी होती है, इसके हिसाब से स्वर्गारोहण में अग्नि संस्कार करने पर 100 बीघा तक जंगल बचाया जा सकता है।

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12वीं पास किसान के बनाए 'ममी-मॉडल' से अब अंतिम संस्कार में लगती हैं 4 गुना कम लकड़ियां!

मारे देश में हमेशा से पेड़, नदी तथा पर्यावरण सरंक्षण को लेकर आवाज़ बुलंद की जाती रही है। फिर वह चिपको आंदोलन हो या जोधपुर का अमृतादेवी बिश्नोई प्रसंग, ये सभी इस बात के गवाह हैं कि वृक्षों के सरंक्षण के लिए यहाँ लोग जान तक की बाज़ी लगाने से पीछे नहीं हटते। शायद ये सभी जानते थे कि हम सबका इस पृथ्वी पर मौजूद सुविधाओं से सहअस्तित्व जुड़ा हुआ है और हमारे जिंदा रहने के लिए जंगलों का बचा रहना भी बेहद ज़रूरी है।

एक अनुमानित आंकड़े के अनुसार भारत में रोज़ाना 26,789 लोगों की मौत हो जाती है। इनमें से 80 प्रतिशत यानी 21,431 अग्नि संस्कार का उपयोग करते हैं। एक शरीर के अग्नि संस्कार में 400 किलो लकड़ी लगती है।

क्या आज तक यह बात किसी के दिमाग में आई कि दाह संस्कार में कम से कम लकड़ी का इस्तेमाल करें तो रोज़ की कितनी लकड़ियां बचाई जा सकती हैं?

गुजरात, जूनागढ़ के केशोद में रहने वाले महज़ बारहवीं पास किसान अर्जुन भाई पघडार के दिमाग में आज से कुछ 40 साल पहले ही यह बात आ गयी थी।

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अर्जुन भाई पघडार

कैसे हुई शुरुआत 

“बात यही कोई 40 साल पहले की है। मेरे मामाजी की मृत्यु हो गई थी, तब मैं भी अंतिम संस्कार में गया था। उस वक़्त मेरी उम्र 14 साल थी, मैंने देखा कि अंतिम संस्कार में 400 किलो से ज्यादा लकड़ियों का इस्तेमाल किया गया। यहीं से मुझे इसे कम करने का विचार आया," द बेटर इंडिया से बात करते हुए अर्जुन भाई बताते हैं।

आज अर्जुन भाई 54 साल के हो गए हैं। वह कहते हैं, "समय के साथ जिंदगी की उलझनों में उलझा रहा पर कम लकड़ी में शव का अंतिम संस्कार कैसे हो, इसके बारे में मैंने सोचना कभी बंद नहीं किया।"

2015 में एक दिन अचानक उनके मन में यह विचार आया कि शवदाह गृह को ममी के आकार का होना चाहिए, जिससे लकड़ी की खपत कम होगी।

"एक दिन मैं दोनों हथेलियों को जोड़कर चुल्लू बनाकर नल से पानी पी रहा था, तभी दिमाग में यह आईडिया कौंधा कि शवदाह गृह को भी कुछ इसी तरह ममी के आकार का होना चाहिए," अर्जुन भाई याद करते हुए कहते हैं।

पैसे की कमी के बावजूद उन्होंने इस आईडिया पर आधारित प्रोटोटाइप तैयार करना शुरू किया और लगातार 2 साल तक इस पर काम करते रहे। आखिर 2017 में इसका मॉडल बनकर तैयार था। 2017 में ही पहली बार इसका इस्तेमाल जूनागढ़ के शवदाह गृह में किया गया। जूनागढ़ के तत्कालीन कमिश्नर विजय राजपूत ने उस वक़्त इस काम में उनकी पूरी मदद की।

अर्जुन भाई बताते हैं,“मैंने ऐसा शवदाह गृह बनाया, जिसका इस्तेमाल करने पर अंतिम संस्कार में मात्र 70 से 100 किलो लकड़ी ही लगेगी। मेरा दावा है कि मेरे द्वारा बनाए गए इस शवदाह गृह के इस्तेमाल से देश में रोज़ाना कम से कम 40 एकड़ जंगल बचाया जा सकता है।"

अर्जुन भाई ने अंतिम संस्कार की इस भट्टी को नाम दिया ‛स्वर्गारोहण’। जब यह मॉडल कामयाब रहा तो इसे प्रमोट करने के लिए ‛गुजरात एनर्जी डेवलपमेंट एजेंसी’ से उन्हें फंडिंग भी मिल गयी।

कैसे काम करता है 'स्वर्गारोहण’

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अपने बनाये मॉडल के साथ अर्जुन भाई

‛स्वर्गारोहण’ भट्टी वायु एवं अग्नि के संयोजन से काम करती है। एक हॉर्स पॉवर के ब्लोअर से आग लगने के बाद भट्टी में तेज हवा चलती है, जिससे तेजी से पूरी भट्टी की लकड़ियां एवं शव जलने लगता है। लकड़ी और शव को रखने के लिए अलग-अलग जाली लगाई गई है, ताकि अग्नि को जलने में आसानी रहे। नीचे वाली जाली के ऊपर लकड़ी रखी जाती है, लकड़ी के ऊपर भी जाली होती है। उसके ऊपर शव रखने के लिए जाली लगायी गई हैI लोहे से बने ऊपरी कवर का अंदरूनी हिस्सा सेरा-वूल से भरा हुआ है, जो ज्यादा तापमान को बर्दाश्त कर सकता है। इसमें ब्लोअर और नॉजल भी दिए गए हैं, ताकि अंतिम संस्कार के दौरान हवा अन्दर-बाहर आ-जा सके।  भट्टी के अंदर की गर्मी 700 डिग्री सेल्सियस से 1000 डिग्री सेल्सियस तक हो जाती है। इसमें एक सेंसर आधारित टेम्प्रेचर मीटर भी है, जिससे लोगों को अंदर के तापमान का पता चलता रहता है।

भट्टी के अंदर की गर्मी वातावरण में न जाए, इसके लिए फायर ब्रिक्स मेटेरियल से ममी के आकार का साँचा बनाया गया है। हिन्दू धर्म के रीति-रिवाजों के अनुसार दो दरवाजों का भी इस्तेमाल किया गया है - एक मुख्य द्वार और दूसरा अंतिम द्वार। 80 किलो तक के शव के संस्कार के लिए इसमें 70-100 किलो लकड़ी लगती है और समय भी डेढ़ से 2 घंटा लगता है।

अर्जुन भाई इस समय को भी ज्यादा मानते हैं जिसे भविष्य में और कम करने के साथ ही वह लकड़ियों की लागत भी कम करने के लिए प्रयासरत हैं।

कुछ इस तरह होती है पर्यावरण की रक्षा

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पूर्व राष्ट्रपति डॉ. कलाम को अपना मॉडल दिखाते हुए अर्जुन भाई

अर्जुन भाई कहते हैं, "स्वर्गारोहण से अग्नि संस्कार करने पर एक बार में लगभग 300 किलो लकड़ी बचेगी। 21,431 में से 20,000 लोगों का ही अंतिम संस्कार यदि ‛स्वर्गारोहण’ के माध्यम से किया जाए तो 60 लाख किलो लकड़ी की बचत रोज़ाना की जा सकती है।"

एक बीघा में 60 टन लकड़ी होती है, इसके हिसाब से स्वर्गारोहण में अग्नि संस्कार करने पर 100 बीघा तक जंगल बचाया जा सकता है। दूसरी तरफ एक किलो लकड़ी जलाने पर जहाँ 1.650 किलो से 1.800 किलो Co2 वातावरण में फैलती है, वही स्वर्गारोहण से अग्नि संस्कार करने पर रोज 99 लाख से एक करोड़ किलो तक Co2 वातावरण से कम हो जाएगी।इसके अलावा, संस्कार में अभी जो समय लगता है, उससे भी कम समय में अग्नि संस्कार इस भट्टी में होता है और तकरीबन 50 प्रतिशत तक समय की बचत भी होती है।

अर्जुनभाई द्वारा निर्मित ‛स्वर्गारोहण’ बामनासा (घेड) तालुका केशोद, जिला जूनागढ़ में शुरू किया जा चूका है, जिसमें अब तक 12 देहों का अग्नि संस्कार हुआ है। संस्कार के बाद अस्थियां एक ट्रे में आ जाती हैं।

राष्ट्रपति द्वारा सम्मानित हो चुके हैं अर्जुन भाई 

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पूर्व राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी ने किया सम्मानित

पर्यावरण को ही सब कुछ मानने वाले अर्जुन भाई जैविक खेती करके अपना गुज़ारा करते हैं, पर खेती के साथ-साथ अपनी सीमित आय में भी कोई न कोई आविष्कार करने की कोशिश में लगे रहते है। 2010 में उन्होंने पहली बार फ्लाई ऐश से ईंट बनाने की मशीन बनाई थी, जिसके लिए उन्हें साल 2015 में राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी के हाथों ग्रासरूट इनोवेटर अवार्ड से सम्मानित किया गया था।

अपनी व्यस्त दिनचर्या से समय निकालकर अर्जुन भाई हर साल पक्षियों के लिए प्लास्टिक की बेकार पड़ी बोतलों और प्लेट्स का इस्तेमाल करके  मोबाइल चबूतरा (बर्ड फीडर) बनाकर निःशुल्क बांटते हैं।

आज जहाँ हर कोई पैसों के पीछे भाग रहा है और अपने स्तर पर भी कोई बदलाव नहीं करना चाहता, वहीं अर्जुन भाई जैसे लोग अपनी सीमित आय में भी पर्यावरण के लिए हर कदम पर अपनी कोशिशों से बदलाव ला रहे हैं। इनके इस निःस्वार्थ सेवाभाव और जज़्बे को सलाम!

अर्जुन भाई के आविष्कारों तथा काम के बारे में अधिक जानने के लिए आप उन्हें 09904119954 पर कॉल कर सकते हैं या [email protected] पर ईमेल भी कर सकते हैं।

संपादन - मानबी कटोच 


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