टेराकोटा कला से जुड़े कुछ ग्रामीण कारीगर काफी समय से अपने हाथों से मिट्टी के बर्तनों को गढ़ते आ रहे हैं। लेकिन दिखने में बेहद खूबसूरत नजर आनेवाले इन बर्तनों को बनाना आसान नहीं है। पहले मिट्टी को बारीकी से छाना जाता है और फिर पानी के साथ इसे मथा जाता है। उसके बाद, इन्हें कोई भी रूप या आकार देकर सूखने के लिए छोड़ दिया जाता है। फिर बारी आती है इन्हें भट्टी में पकाने की। इन बर्तनों को भट्टी में 600 से 1000 डिग्री तक के तापमान पर पकाते हैं।
लेकिन इतनी मेहनत करने के बाद भी, इन कलाकारों को उनकी कला का सही मोल नहीं मिल पा रहा। उनकी इस स्थिति का एक बड़ा कारण मार्किट में मौजूद बिचौलिए हैं, जो उनकी जेब तक पूरा पैसा नहीं पहुंचने देते। वहीं, दूसरी वजह मार्केटिंग के लिए सही प्लेटफार्म न मिल पाना है। इन बिचौलियों को बीच से हटाने और कारीगरों को एक प्लेटफार्म देने के लिए 20 साल के दो छात्रों- अभिनव और मेघा ने स्टार्टअप ‘MITTIHUB’ की शुरुआत की है।
दरअसल, राजस्थान के गुलाबी शहर जयपुर के रहनेवाले अभिनव अग्रवाल और मेघा जोशी का ‘मिट्टीहब’ एक ऑनलाइन स्टोर है, जो कारीगरों को सीधे खरीदारों से मिलाता है। यहां, वे बिना किसी बिचौलिए के अपने प्रोडक्ट्स ग्राहकों को बेचते हैं। इस स्टार्टअप की यही खासियत है।
फिलहाल, इस स्टार्टअप से 25 कारीगर जुड़े हैं और आज वे 40 हजार रुपये महीना कमा रहे हैं। मशीनों के बीच कहीं गुम होती जा रही इस कला और कलाकारों को बचाने का यह एक बेहतर प्रयास है।
कला को बचाने का एक प्रयास

ग्लोबल सेंटर फॉर आन्त्रप्रेन्योर एंड कॉमर्स (GCEC) के छात्र अभिनव ने द बेटर इंडिया को बताया, “इसकी शुरुआत साल 2020 में हुई थी। हमें कॉलेज में ई-कॉमर्स प्लेटफॉर्म बनाने का एक प्रोजेक्ट मिला था।
चूंकि मैं बचपन से ही अपने घर में मिट्टी के बर्तन बनानेवाले कारीगरों की परेशानियों और कैसे धीरे-धीरे यह कला खत्म होती जा रही है, इसके बारे में सुनता आ रहा था। तब मुझे लगा कि क्यों ना इस कला को बचाने के लिए कुछ किया जाए और फिर हमने तय किया कि उनके प्रोडेक्ट की मार्केटिंग के लिए हम एक ऑनलाइन प्लेटफार्म डेवलप करेंगे।”
देश के ग्रामीण हिस्सों में बसे ये कारीगर हाथ से तैयार की गई इस कला का दोहरा भार अपने कंधों पर उठा रहे हैं। विरासत को बचाने की जिम्मेदारी भी इन्हीं की और अपनी आजीविका चलाने की भी। लेकिन जिन परिस्थितियों में वह काम कर रहे हैं, उसमें दोनों को ही बचा पाना मुश्किल हो गया है। वैसे भी लोग अब मशीन से बने सामान की ओर रुख करने लगे हैं। लेकिन जो बात हाथ से बने बर्तनों में है वह मशीन से तैयार होने वाले बर्तनों में नहीं मिलती।
सिर्फ पचास हजार से शुरु किया स्टार्टअप
अभिनव कहते हैं, “इन स्थितियों में भी ये लोग जितना कमाते हैं, उसमें से आधा तो बिचौलियों के पास चला जाता है।” वैसे आज शहरों में मिट्टी के बर्तनों की खासी डिमांड है। असल दिक्कत इनकी मार्केटिंग को लेकर है। इन लोगों को ऐसा प्लेटफार्म नहीं मिल पाता जहां वे अपना सामान बेच सकें और न ही ग्राहक इन्हें आसानी से ढूंढ पाते हैं।
इन दोनों छात्रों ने सबसे पहले जमीनी स्तर पर काम किया। उन्होंने अलग-अलग समुदाय के कुम्हारों के साथ बातचीत कर सारी जानकारी इकट्ठा की। अपने इस स्टार्टअप में वे सात अंडर ग्रेजुएट लोगों की टीम के साथ उतरे। अब उन्हें टेराकोटा उत्पाद के लिए नए ग्राहकों को तलाशना था। शुरू में उनके साथ पांच कारीगर थे, जो प्रोडक्ट्स बना रहे थे।
वह कहते हैं, “कुछ सेविंग हमारे पास थी और कुछ हमने दोस्तों और परिवार से उधार लिया। इस तरह से 50 हजार रुपये का निवेश कर हम इस बिज़नेस में उतर गए।“शिपिंग के लिए एग्रीगेटर डिलीवरी सेवाओं को शुरू किया गया, वेबसाइट तैयार की गई और कलाकारों को बेहतर तरीके से उत्पाद को डिलीवरी करने की तकनीक सिखाई गई। कुछ ही दिनों के अंदर उनके स्टार्टअप को अटल इन्क्यूबेशन सेंटर के लिए भी शार्टलिस्ट कर दिया गया।
पहले के मुकाबले आमदनी बढ़ी
अभिनव ने बताया, “हमने अपनी रणनीति कुछ इस तरीके से बनाई, जिससे शुरुआत से ही लाभ मिलना शुरू हो जाए। जब 2021 में मिट्टीहब को लॉन्च किया गया, तो उस समय हमारे पास 30 ऑर्डर थे।”
आज अलवर के रामगढ़, दिल्ली के उत्तमनगर, हरियाणा और आगरा के कुल 25 कारीगर इस सामाजिक उद्यम से जुड़ चुके हैं। उनकी आमदनी बढ़ गई है। ये सभी कलाकार अलग-अलग तरह के किचन सेट, बर्तन, टेबलवेयर, प्लांटर और होमडेकोर के प्रोडक्ट बना रहे हैं और वेबसाइट के जरिए इन्हें पूरे भारत में बेचा जा रहा है।
राजस्थान के ऐसे ही एक टेराकोटा कारीगर हैं तेज सिंह। इनकी उम्र महज 23 साल है। पहले ये समय-समय पर लगनेवाली आर्ट एग्जिबिशन पर ही निर्भर रहते थे। बस उम्मीद करते थे कि इस दौरान उनके उत्पाद अच्छे से बिक जाएं। लेकिन दस्तकारी नेचर बाजार में अभिनव से मिलने के बाद, उनकी जिंदगी बदल सी गई है। जहां पहले जेब में कुछ निश्चित राशि ही आती थी, आज वह अच्छी खासी कमाई कर रहे हैं। तेज सिहं कहते हैं, “पहले मैं महीने में लगभग 15 हजार रुपये ही कमा पाता था। आज मिट्टीहब से जुड़कर मेरी कमाई 40 हजार रुपये हो गई है।”
नई तकनीक से कारीगरों को जोड़ा
इन कारीगरों को मार्केटिंग की नई रणनीतियों के बारे में नहीं पता था और अगर जानते भी थे, तो उनपर काम करना नहीं आता था। बस छात्रों ने उनके इसी काम को आसान बनाया है। हालांकि इसके लिए उन्हें काफी मेहनत भी करनी पड़ी। लेकिन यह उनके लिए भी एक चुनौती थी कि नई तकनीक के साथ इन कारीगरों को कैसे जोड़ा जाए?
उन्होंने साइट से जुड़े हर कलाकार को वॉट्सऐप जैसे ऐप्लिकेशन चलाना सिखाया, ताकि वे आसानी से एक दूसरे से जुड़े रहें। पिछले छह महीने में वेबसाइट ने लगभग 3 लाख रुपये कमाए हैं। अभिनव कहते हैं, “साइट पर बिक्री का कुल 45 प्रतिशत हिस्सा कारीगरों के खाते में जाता है।”
डिमांड के मुताबिक उत्पाद बनवाना

इसके अलावा, बिज़नेस टु बिज़नेस ऑर्डर मिलने का मतलब है कि अपने ग्राहकों की डिमांड के मुताबिक प्रोडक्ट तैयार करवाना। अभिनव कहते हैं, “टीम के एक सदस्य श्रीकृष्ण इस तरह के डिजाइन के लिए थ्री डी मॉडल बनाते हैं। क्योंकि जब हम कारीगरों से इस बारे में बात करते हैं या उन्हें समझाते हैं, तो अक्सर कुछ बातें रह जाती हैं।”
बिज़नेस को बढ़ाने के लिए इन छात्रों ने जयपुर के कई रेस्टोरेंट और रिटेल स्टोर मसलन टपरी, जयपुर; मेगा स्टोर, दिल्ली; और बारबेक्यू कंपनी से साझेदारी की है। इन प्रोडक्ट्स की दो खेप लंदन और यूएस भी भेजी जा चुकी हैं। वहीं, भविष्य में और अधिक संभावनाओं को लेकर बातचीत चल रही है।
अभिनव, बिज़नेस में व्यस्त होने के कारण कॉलेज में ज्यादा समय नहीं दे पाते हैं। वह, इस बात को स्वीकार भी करते हैं और बड़े ही गर्व के साथ कहते हैं, “लेकिन बिज़नेस से जो कुछ भी मैं सीख रहा हूं, वह किताबों में कहीं नहीं मिलेगा।“
मिट्टीहब के बारे में और अधिक जानकारी के लिए उनकी वेबसाइट https://www.mittihub.com/ पर जाएं।
मूल लेखः रिया गुप्ता
संपादनः अर्चना दुबे
यह भी पढ़ेंः पैड वाली दादी: 62 की उम्र में खुद जाकर बांटती हैं पैड, रोज़ बनाती हैं 300 ज़रूरतमंदों का खाना
यदि आपको इस कहानी से प्रेरणा मिली है, या आप अपने किसी अनुभव को हमारे साथ साझा करना चाहते हो, तो हमें hindi@thebetterindia.com पर लिखें, या Facebook और Twitter पर संपर्क करें।
We at The Better India want to showcase everything that is working in this country. By using the power of constructive journalism, we want to change India – one story at a time. If you read us, like us and want this positive movement to grow, then do consider supporting us via the following buttons: