भारतीय शासन में भ्रष्टाचार किस हद तक अपनी पैठ बना चुका है यह किसी से छिपा नहीं है। लेकिन अगर सिस्टम में कुछ अधिकारी भ्रष्ट हैं, तो कुछ ऐसे अधिकारी भी हैं, जो तमाम बाधाओं के बावजूद अपने आदर्शों पर टिके हुए, बड़ी ईमानदारी से (Anti corruption Day Heroes) अपना काम करते रहे हैं। वे न तो राजनेताओं या उनकी पैरवी करने वाले रसूखों की धमकियों से डरते हैं और ना ही बेवजह होने वाले तबादलों से।
वे जानते हैं कि अगर आप ईमानदार हैं, तो आपका कोई कुछ नहीं बिगाड़ सकता। आज हम आपको ऐसे ही पांच नौकरशाहों से रू-ब-रू करा रहे हैं, जो बिना डरे, अन्याय और भ्रष्टाचार से लड़ते रहे (Most Honest Indian Officers) और इनका अब तक सिस्टम में होना बताता है कि कुछ गिने-चुने अच्छे अधिकारी भी देश में बदलाव ला सकते हैं।

1.पूनम मालाकोंडैया, आंध्र प्रदेश
पूनम मालाकोंडैया एक असाधारण आईएएस अधिकारी हैं, जिन्होंने भाई-भतीजावाद, कट्टरवाद और उदासीन व्यवस्था के खिलाफ अपने तरीके से लड़ाई लड़ी। साल 1988 बैच की एक लो-प्रोफाइल आईएएस अधिकारी पूनम उन राजनेताओं, व्यापारियों और उनकी पैरवी करने वालों के लिए एक सख्त अधिकारी साबित हुईं, जो अधिकारियों से दबाव में काम कराने के आदि हो चुके थे।

छह साल में सात तबादले भी उन्हें रोकने में नाकाम रहे। उन्होंने कृषि से लेकर परिवहन, शिक्षा, नागरिक आपूर्ति तक, हर विभाग में भ्रष्ट्राचार के खिलाफ लड़ाई लड़ी। साफ शब्दों में अपनी बात रखने वाली पूनम, एक अक्खड़ और जोशिली आधिकारी रही हैं। उन्होंने कृषि आयुक्त के पद पर रहते हुए बहुराष्ट्रीय बीज कंपनी, मोनसेंटो को एमआरटीपी आयोग में घसीटा और बीटी कपास के बीज की कीमत कम करने के लिए मजबूर कर दिया था।
2. मनोज नाथ, बिहार

मनोज नाथ का चयन महज़ 20 साल की उम्र में भारतीय पुलिस सेवा (IPS) के लिए हो गया था। उन्होंने साल 1973 में परीक्षा दी थी, जिसमें उन्होंने देश में तीसरा और बिहार में पहला स्थान प्राप्त किया था। 39 साल बाद, जब यह टॉपर 2012 में बिहार पुलिस से सेवानिवृत्त हुए, तो वह सबसे लंबे समय तक सेवा देने वाले उन IPS अधिकारियों में से एक थे, जिन्हें अपने पूरे करियर में कभी भी कोई महत्वपूर्ण पद नहीं दिया गया।
जब बात पुलिस महानिदेशक (डीजीपी) की नियुक्ति की हुई, तो यह ईमानदार अफसर (Most Honest Indian Officers) किसी भी राजनैतिक विचारधारा में फिट नहीं बैठा। साल 1980 में बोकारो एसपी के रूप में उन्होंने तत्कालीन बोकारो स्टील एमडी को भ्रष्टाचार के एक मामले में गिरफ्तार किया था। उस कार्यालय में आए हुए उन्हें अभी सिर्फ चार महीने ही हुए थे, लेकिन घटना के 24 घंटों के अंदर ही उनका ट्रांसफर कर दिया गया। राजनेताओं के इशारों पर काम न करने की वजह से, उन्हें अपने 39 साल के लंबे करियर में 40 से ज्यादा बार तबादलों का सामना करने पड़ा था।
3. जी आर खैरनार, महाराष्ट्र

गोविंद राघो खैरनार बृहन्मुंबई नगर निगम (BMC) के एक पूर्व अधिकारी हैं, जो राजनीतिक विरोध के बावजूद अपने कर्तव्यों का पालन करते रहे। आज उन्हें उनकी ईमानदारी और निडरता (Most Honest Indian Officers) के लिए जाना जाता है। डिप्टी म्युन्सिपल कमिश्नर के पद पर रहते हुए उन्होंने बड़े ही व्यवस्थित ढंग से, शहर भर में अवैध अतिक्रमणों को निशाना बनाया, जिसके चलते उन्हें निलंबित भी कर दिया गया। आदेशों की अवहेलना और ज्यादती करने का आरोप लगाते हुए उन पर मुकदमा चलाया गया।
लेकिन उच्च न्यायालय ने उन्हें इन आरोपों से मुक्त करते हुए उपायुक्त के पद पर बहाल करने के आदेश दिए थे। खैरनार ने इसके बाद भी भू-माफियाओं के खिलाफ अपनी लड़ाई जारी रखी और सार्वजनिक भूमि को अतिक्रमण से मुक्त कराया। ऐसा करते हुए उन्हें कई बार चोटें भी लगीं, पर उन्होंने हिम्मत नहीं हारी। स्थानीय लोगों ने उन्हें ‘वन मैन डिमोलिशन आर्मी’ के खिताब से नवाजा। BMC से निलंबन के दौरान उन्होंने मराठी में अपनी आत्मकथा ‘एकाकी जुंज’ (द लोनली फाइट) भी लिखी।
4. समित शर्मा, राजस्थान

साल 2009 में, जब समित शर्मा का तबादला किया गया तो राजस्थान के चित्तौड़गढ़ जिले में 12,000 से ज्यादा सरकारी कर्मचारी एक आदेश के विरोध में सामूहिक अवकाश पर चले गए थे। इस घटना से सुमित की ईमानदारी (Most Honest Indian Officers) और काम करने के ढंग का अंदाजा आसानी से लगाया जा सकता है। जिला कलेक्टर समित शर्मा को पद से हटाने का कारण बस इतना भर था कि उन्होंने एक LDC (जूनियर डिविजनल क्लर्क) को बर्खास्त करने से इनकार कर दिया था (जैसा कि एक आधिकारिक परिपत्र ने आदेश दिया था)।
दरअसल, यह क्लर्क एक स्थानीय विधायक के कार्यालय में आने पर उसके सम्मान में खड़ा नहीं हुआ था। विरोध के बावजूद, समित शर्मा का तबादला कर दिया गया, लेकिन यह तबादला भी उन्हें इस अच्छे काम को करने से नहीं रोक पाया। आईएएस परीक्षा देने से पहले समित एक डॉक्टर थे और पांच साल तक उन्होंने प्रैक्टिस भी की थी। डॉक्टर शर्मा ने राजस्थान में जेनेरिक दवा परियोजना (जो गरीबों को सस्ती स्वास्थ्य देखभाल, दवा और सर्जिकल आइटम प्रदान करती है) को आगे बढ़ाने के लिए अपने अनुभव का इस्तेमाल किया।
5. रजनी सेकरी सिब्बल, हरियाणा

हरियाणा कैडर की एक आईएएस अधिकारी रजनी सेकरी सिब्बल को 1999-2000 में 3200 जूनियर बेसिक ट्रेनिंग (जेबीटी) शिक्षकों के परिणामों को बदलने के लिए राजनीतिक शक्तियों ने रिश्वत देने की कोशिश की थी। रजनी ने न केवल रिश्वत लेने से इंकार कर दिया, बल्कि मजबूती से इसके खिलाफ खड़ी भी हुईं। फिर, जब उनके तबादले का आदेश दिया गया, तो उन्होंने स्टील की अलमारी को जिसके अंदर परिणामों की वास्तविक सूची रखी गई थी, चार मीटर लंबे कपड़े और पट्टियों के साथ लपेट दिया। जिससे किसी के लिए भी अलमारी खोलना और सूची के साथ छेड़छाड़ करना असंभव हो गया।
इसके बाद पांच अधिकारियों से अलग-अलग जगहों पर पट्टी पर हस्ताक्षर करने के लिए कहा। एक लिफाफे में चाबी को रखकर उसे सील कर दिया और फिर छिपा दिया गया। इसकी वजह से सूची के साथ कोई छेड़छाड़ नहीं की जा सकी। सबका ध्यान अपनी ओर खींचने वाले इस बड़े घोटाले (अब जेबीटी भर्ती घोटाला के रूप में जाना जाता है) की जांच का काम सीबीआई को सौंपा गया। राजनीति जगत के कई बड़े नाम इससे जुड़े हुए थे।
मूल लेखः संचारी पाल
संपादनः अर्चना दुबे
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