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हमें बचपन में ही यह पढ़ाया जाता है कि पेड़-पौधों में भी जीवन होता है। वे भी सांस लेते हैं और उन्हें भी इंसानों की तरह दर्द और ख़ुशी महसूस होती है। पर हम में से कितने लोग इस बात को याद रखते हैं!
आज हालात ऐसे बन गए हैं कि देश में पेड़-पौधों की संख्या लगातार कम होती जा रही है। औद्योगिकीकरण, शहरीकरण और विकास के नाम पर लगातार पेड़ काटे जा रहे हैं। इससे जंगलों और पहाड़ों का अस्तित्व ख़तरे में पड़ गया है। यह बहुत ही चिंता की बात है, लेकिन सबसे बड़ी समस्या यह है कि इस पर किसी का ध्यान नहीं है।
वैसे, इस विषय पर चर्चा और बहस तो बहुत होती है। मौसम में आ रहे बदलाव और बढ़ते प्रदूषण को लेकर काफी लिखा-पढ़ा जा रहा है, लेकिन जब बात कुछ करने की आती है तो ज़्यादातर लोग सिर्फ़ सरकार और प्रशासन की खामियां गिना कर समझ लेते हैं कि उनकी ज़िम्मेदारी पूरी हो गई। चंद ही ऐसे लोग हैं जो खुद पहल कर पर्यावरण की रक्षा के लिए कुछ करने का जज़्बा रखते हैं।
ऐसे ही कुछ हिम्मती लोगों में हैं बीकानेर के प्रोफेसर श्याम सुंदर ज्याणी, हरियाणा के ट्री-मैन देवेंदर सूरा, बिहार के टीचर राजेश कुमार सुमन आदि। इन सबके बारे में आप द बेटर इंडिया-हिंदी पर पढ़ सकते हैं।
इसी कड़ी में आज हम पर्यावरण के संरक्षण के लिए काम कर रहे क्षितिज पळसुले के बारे में बताने जा रहे हैं। मूल रूप से मुंबई के निवासी क्षितिज अपने परिवार के साथ साल 1992 से अहमदाबाद में रह रहे हैं। द बेटर इंडिया से बात करते हुए उन्होंने बताया कि बचपन से ही उनका प्रकृति से गहरा लगाव रहा है। पिछले कई सालों से वे हर रविवार को अपने घर के बाहर, सोसाइटी में, फुटपाथ पर और यहाँ तक कि अहमदाबाद नगर निगम के पार्कों में भी जाकर पेड़ लगा रहे हैं।
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क्षितिज पळसुले कहते हैं, "पेड़ लगाने के साथ-साथ मेरा ध्यान इस बात पर होता है कि इन सभी पेड़ों की देखभाल भी होती रहे। इसलिए मैंने अब तक जितने भी और जहाँ भी पेड़ लगाए हैं, मैं वहाँ जाकर पानी देता हूँ और इस बात का ख्याल रखता हूँ कि किसी भी वजह से पौधे मर न जाएं।"
नानी से मिली प्रेरणा
लारेनॉन हेल्थकेयर प्राइवेट लिमिटेड के मार्केटिंग विभाग में कार्यरत क्षितिज को प्रकृति से यह लगाव और संवेदनशीलता अपनी नानी से मिली। वे बताते हैं कि उन्होंने अपनी नानी के घर में हमेशा तरह-तरह के पेड़-पौधे देखे। उनकी नानी घर के बच्चों की तरह ही पेड़-पौधों का ख्याल रखती थीं। जैसे नानी घर में बच्चों को खाना-पानी देतीं, उनके साथ खेलतीं और बातें करतीं, वैसे ही वे पेड़-पौधों के साथ भी बातें करती थीं। वे घंटों उनके साथ बिताती थीं।
"नानी तो अक्सर उनके पास गीत भी गाया करती थीं। मैं उनसे पूछता भी था कि आप तो इनसे बातें करती हैं, पर क्या ये पेड़ भी आपसे बातें करते हैं, क्या ये आपको जवाब देते हैं? इस पर मुस्कुरा कर वे बस यही कहतीं कि ये पेड़ आपसे बातें करें, आपको जवाब दें, इसके लिए उनसे बहुत गहरा रिश्ता बनाना पड़ता है और यह रिश्ता दो-चार दिन उनमें पानी देने से नहीं बनता, बल्कि हर रोज़ उनकी देखभाल करते हुए उनसे बातें करने से बनता है। पेड़ों में भी इंसानों की तरह ही एहसास होते हैं," क्षितिज ने याद करते हुए बताया।
अपनी नानी की सभी बातें क्षितिज की यादों में बिल्कुल वैसे ही तरो-ताजा हैं, जैसे वो कल की ही हों। उन्होंने अपनी नानी से सीखा कि कैसे पेड़ों का ख्याल रखा जाता है। छोटे-बड़े घरेलू नुस्खे जैसे कि अगर पेड़ों पर कीड़े लग जाएं तो मिर्ची और हल्दी पानी में मिलाकर उन पर स्प्रे करें, उन्हें नानी ने ही बताया।
एक गुलमोहर से हुई शुरुआत
जैसे-जैसे पढ़ाई की ज़िम्मेदारी बढ़ी, वैसे-वैसे क्षितिज का पेड़-पौधों के प्रति ध्यान थोड़ा कम होता गया। कभी किसी प्रोजेक्ट, कोई एग्जाम आदि के चलते वे अपने इन दोस्तों से कुछ दूर हो गए और फिर कॉलेज की पढ़ाई के लिए मुंबई चले गए।
साल 2012 में क्षितिज फिर से अपने परिवार के पास अहमदाबाद आ गए और उन्हें यहीं पर जॉब भी मिल गई। उस साल गुजरात में बहुत ही भयंकर गर्मी पड़ी थी। एकदम सूखा जैसे हालात थे। “मुझे आज भी याद है कि वह 14 जुलाई का दिन था और उस दिन मैंने अपने घर के बाहर एक गुलमोहर का पेड़ लगाया। पता नहीं क्यों, उस गर्मी के मौसम में सब जहाँ बेचैन थे और हर जगह बढ़ते तापमान पर बातें हो रही थीं, गुलमोहर का वह एक पौधा मुझे सुकून दे रहा था,“ उन्होंने हंसते हुए कहा।
उस दिन वह एक पौधा लगाने के बाद उन्हें जो ख़ुशी मिली, उसके बाद ही उन्हें ख्याल आया कि सिर्फ़ एक ही क्यों, मैं तो और भी पौधे लगा सकता हूँ। जब एक पौधा मुझे इतनी ख़ुशी दे रहा है तो फिर अगर मैं हर रविवार को पौधारोपण करूँ, तो कितना अच्छा लगेगा।
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और उस दिन से लेकर आज तक यह सिलसिला जारी है। हर रविवार या फिर जब भी उन्हें किसी दिन छुट्टी मिलती है, वे अपने घर से निकल पड़ते हैं पौधे और एक बैग में पानी की बोतलें लेकर, ताकि पौधे लगाने के साथ जहाँ भी पहले उन्होंने पौधे लगाए हैं, उन्हें पानी दे सकें।
सबसे पहले उन्होंने अपने घर के पास ही सड़क के बीच डिवाइडर पर पेड़ लगाना शुरू किया। ये वो जगहें थीं, जहाँ नगर निगम ने कभी पेड़ लगाए थे, लेकिन देखभाल नहीं होने के चलते वे पेड़ मर चुके थे। पौधारोपण के साथ-साथ उन्होंने उनका भरपूर ख्याल भी रखा। उनके पास पहले जब कोई वाहन नहीं था, तब वे पानी की बोतलों से भरे बैग लेकर जाते और घंटों पैदल चलकर सभी पेड़ों में पानी देकर आते।
इसके बाद उन्होंने अहमदाबाद नगर निगम के प्रशासनिक अधिकारियों से अनुमति लेकर नगर निगम के पार्कों में भी पेड़ लगाना शुरू किया। अब तक वे 511 पेड़ लगा चुके हैं और ये सभी पेड़ एकदम तंदुरुस्त हैं।
'वन मैन आर्मी'
क्षितिज को अपने इस अभियान में कभी भी किसी का साथ नहीं मिला। बहुत ही कम ऐसा हुआ कि और भी लोग उनके साथ आकर पेड़ लगाएं या फिर पेड़ों की देखभाल करें। हर रविवार सुबह 6:30 बजे से लेकर 9: 30 बजे तक वे अपना पूरा समय पेड़-पौधों को देते हैं। हर बार वे सोशल मीडिया पर पोस्ट भी डालते हैं कि यदि कोई उनके साथ पौधारोपण करना चाहे तो आ सकता है, लेकिन ऐसा बहुत ही कम हुआ है कि उन्हें किसी का साथ मिला हो।
वे कहते हैं कि आजकल की दुनिया दिखावे की हो गई है। लोगों को पर्यावरण के लिए कुछ नहीं करना, वे तो बस किसी निश्चित दिन जाकर एक-दो पेड़ लगाकर और फिर उसके साथ सेल्फी लेकर आ जाते हैं। इसके बाद उन पेड़ों का क्या हुआ, इसके बारे में बहुत कम लोग ही सोचते हैं।
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लेकिन क्षितिज को इस बात से कोई फर्क नहीं पड़ता कि कोई उनका साथ दे या न दे, उन्हें तो बस अपना काम करना है। उनका कहना है कि ये सब कुछ वे किसी और के लिए नहीं कर रहे, बल्कि अपने लिए कर रहे हैं। पेड़ों की वजह से ही हमारी सांसें चल रही हैं, तो पेड़ों को बचाना सिर्फ़ सरकार और प्रशासन की ज़िम्मेदारी नहीं है। प्रकृति की रक्षा करना हम सबकी ज़िम्मेदारी है।
क्षितिज कहते हैं, "यह कोई अभियान नहीं है कि इतने पेड़ लगाने हैं, बल्कि यह स्वाभाविक तौर पर किया जाने वाला काम है। जैसे हम अपनी ज़िंदगी की अन्य बातों जैसे पढ़ाई, नौकरी आदि को ज़िम्मेदारी की तरह लेते हैं, वैसे ही पर्यावरण का संरक्षण भी हमारी स्वाभाविक ज़िम्मेदारी है।"
छोटे पर अहम कदम
आज जिस तरह का लाइफस्टाइल हो गया है हमारा, उसमें बदलाव करना बिल्कुल भी आसान नहीं है। एसी, फ्रिज, गाड़ी जैसी चीजों के बिना रहना बहुत ही मुश्किल है। पर क्षितिज का कहना है कि यदि हम अपने रहन-सहन में बदलाव नहीं कर सकते, तो कम से कम पर्यावरण के साथ बैलेंस बनाने के लिए छोटे-छोटे पर अहम कदम तो उठा ही सकते हैं। आप ज़्यादा से ज़्यादा पेड़ लगायें, 'बेस्ट आउट ऑफ़ वेस्ट' की तकनीक पर ध्यान दें, पानी बचाने के तरीकों को अपनाएं और साथ ही, जहाँ पर भी आप बदलाव का उदाहरण बन सकते हैं वहां ज़रूर बनें।
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क्षितिज ने अपनी शादी में कुछ ऐसा ही किया। उन्होंने एक ख़ास तरह के 'सीड पेपर' से अपनी शादी का निमंत्रण पत्र छपवाया। इस कागज़ की ख़ासियत यह है कि इसमें बीज लगे होते हैं और अगर कोई इस कागज़ को फेंक भी दे, तब भी यह अपने-आप उग सकते हैं। इस सीड पेपर को उन्होंने एक गमले का आकार दिया और उसमें तुलसी का पौधा लगाकर सबको आमंत्रित किया।
आगे की योजनाएं
क्षितिज कहते हैं कि उन्हें इस बात के लिए शोहरत पाने की इच्छा नहीं है। वे तो बस पर आने वाली पीढ़ी के लिए कुछ धरोहर छोड़कर जाना चाहते हैं। इसलिए जब भी उनकी सोसाइटी के बच्चे उन्हें पेड़-पौधों की देखभाल करते हुए देखते हैं और पूछते हैं कि अंकल, ये सब करने से क्या होगा, तो वे बस मुस्कुरा कर जवाब देते हैं, “मैं यह सब तुम्हारे कल के लिए कर रहा हूँ।“
वे कहते हैं, "बच्चे तो वही करते हैं, जो अपने घरों में देखते हैं। हो सकता है कि उनके माता-पिता मेरे काम को लेकर यही बातें करते होंगे कि यह सब करने से क्या होगा, इसलिए बच्चे ऐसे सवाल पूछते हैं।"
पेड़-पौधों के साथ-साथ अब क्षितिज 'कचरा प्रबंधन' को लेकर भी कुछ करना चाह रहे हैं। उनकी योजना है कि लोगों को इसे लेकर जागरूक करें, ताकि सभी घरों से सूखा और गीला कचरा अलग-अलग करके दिया जाए। इससे नगर निगम को कचरा-प्रबंधन में आसानी होगी।
अंत में क्षितिज कहते हैं, "मैं अपने जैसे युवाओं से कहना चाहूँगा कि सिर्फ़ बातें मत करें, बल्कि काम करें। किसी और से आशा रखने की जगह अपनी ज़िंदगी का बस 1% धरती माँ के लिए समर्पित करें। यदि हम छोटे-छोटे कदम उठाएंगे, तब भी बड़ा बदलाव आएगा।"
संपादन – मनोज झा
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