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बेंगलुरु में 'बिल्डिंग रिसोर्स हब' के नाम से अपनी आर्किटेक्चरल फर्म चलाने वाले आशीष भुवन मूल रूप से ओडिशा से हैं। उन्होंने नेशनल इंस्टिट्यूट ऑफ़ टेक्नोलॉजी, त्रिची से अपनी आर्किटेक्चर की डिग्री पूरी की। इसके बाद, उन्हें कई अच्छे प्रोजेक्ट्स पर काम करने का मौका मिला। वह बताते हैं कि उन्होंने अलग-अलग फर्म के साथ काम किया और एक प्रोजेक्ट के दौरान, उन्हें सस्टेनेबल डिज़ाइन और ग्रीन बिल्डिंग कॉन्सेप्ट पर काम करने का मौका मिला।
यहीं से साल 2010 में सस्टेनेबल आर्किटेक्चर की तरफ उनका सफ़र शुरू हुआ। आशीष बताते हैं कि पिछले 10 सालों से वह सस्टेनेबिलिटी और प्रकृति को ध्यान में रखकर ही प्रोजेक्ट्स पर काम कर रहे हैं। अपनी खुद की फर्म शुरू करने से पहले वह एक ऐसी ही फर्म के साथ काम कर रहे थे, जो इको-फ्रेंडली घर, ऑफिस या दूसरी इमारतें बनाते हैं। लेकिन एक वक़्त के बाद उन्हें अहसास हुआ कि सस्टेनेबल घरों का कॉन्सेप्ट सिर्फ कुछ लोगों तक सीमित नहीं रहना चाहिए बल्कि आम से आम लोगों तक भी पहुँचना चाहिए।
"मैं चाहता था कि जो लोकल मिस्त्री होते हैं, उन्हें प्रकृति के अनुकूल घर बनाने की समझ आए। लोग इस पर काम करें क्योंकि ज़्यादातर लोगों के घर ये स्थानीय मिस्त्री बनाते हैं। हर कोई किसी आर्किटेक्चरल फर्म के पास अपना घर बनवाने नहीं आता है। इसलिए अगर इन्हें सिखाया जाए तो कोई बात बनें," उन्होंने आगे बताया।
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बिल्डिंग रिसोर्स हब:
साल 2018 में उन्होंने अपनी फर्म, बिल्डिंग रिसोर्स हब की शुरुआत की। इसके ज़रिए उनके दो उद्देश्य रहे, एक तो सस्टेनेबल घरों का निर्माण और दूसरा, स्थानीय लोगों को सिखाना। उनके काम में अलग-अलग लोग उनका साथ दे रहे हैं जैसे उनकी साथी आर्किटेक्ट श्रुति मोराबाद। श्रुति कहती हैं कि वह आशीष के साथ पिछले 4 सालों से जुड़ी हुई हैं। इससे पहले वह बेंगलुरु की ही एक दूसरी आर्किटेक्चर फर्म में काम कर रही थी।
"एक प्रोजेक्ट पर हमारा काम चल रहा था और उसी साईट के पास आशीष और उनकी टीम भी एक प्रोजेक्ट कर रहे थे। मैं बस ऐसे ही एक बार देखने गई लेकिन जब मैंने उनकी तकनीक को समझा तो मुझे बहुत अच्छा लगा। इस बारे में मैंने और पढ़ा और फिर ठान लिया की मुझे भी सस्टेनेबल आर्किटेक्चर पर ही काम करना है," उन्होंने कहा।
श्रुति और आशीष अब तक साथ में 15 से भी ज्यादा प्रोजेक्ट्स पर काम कर चुके हैं। उनके निर्माण की ख़ास बात यह है कि वह घर के निर्माण से लेकर अंदर के इंटीरियर डिजाइनिंग तक, सभी कुछ में इको-फ्रेंडली एप्रोच रखते हैं।
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"हमारे पास दोनों तरह के क्लाइंट आते हैं, एक जिन्हें सस्टेनेबल आर्किटेक्चर का ज्ञान है और दूसरे ऐसे, जिन्हें ज्यादा कुछ नहीं पता और उन्हें सिर्फ अपना घर बनवाना होता है। जिन लोगों को इसके बारे में नहीं पता उन्हें हम सबसे पहले समझाते हैं और उनके सभी संदेह दूर करते हैं," श्रुति ने कहा।
वह आगे कहती हैं कि अक्सर लोगों को यह नाम सुनकर लगता है कि यह काफी महंगा होगा या फिर बहुत ज्यादा घर की लागत आएगी। लेकिन ऐसा नहीं है, सस्टेनेबल तरीकों से घर बनाने की लागत लगभग उतनी ही आती है, जितनी कि बाकी प्रोजेक्ट्स में। बल्कि कभी-कभी तो इसमें कम लागत लगती है।
मिट्टी और पत्थर से बनाते हैं घर:
आशीष और श्रुति अपने क्लाइंट्स की ज़रूरत को समझते हैं और साथ ही, जहाँ निर्माण करना है, वहाँ के तापमान, जलवायु आदि को ध्यान में रखकर आगे बढ़ते हैं। वह क्लाइंट की ज़रूरत के हिसाब से एक डिज़ाइन तैयार करते हैं लेकिन जैसे-जैसे काम बढ़ता है तो वह साधनों की उपलब्धता के आधार पर भी डिज़ाइन में थोड़ी फेर-बदल करते हैं। अलग-अलग प्रोजेक्ट्स के लिए वह अलग-अलग तकनीक इस्तेमाल करते हैं।
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अपने कई प्रोजेक्ट्स में उन्होंने CSEB ब्लॉक्स और फ्लाई एश ब्रिक्स का भी इस्तेमाल किया है। लेकिन एक बात तय है कि वह जो भी एप्रोच लें लेकिन सभी मटेरियल साईट पर ही तैयार किया जाता है। श्रुति कहती हैं कि प्रोजेक्ट साईट से निकलने वाली मिट्टी से ही बिल्डिंग के लिए ईंटें बनाई जाती हैं। अगर कभी मिट्टी कम पड़े तो लोग आस-पास के इलाके से ही मिट्टी ले लेते हैं या फिर अर्दन बैग भरने के लिए पुराने टूटे मकानों का मलवा भी वह इस्तेमाल करते हैं।
अपने हर प्रोजेक्ट में वह कम से कम सीमेंट का इस्तेमाल करने की कोशिश करते हैं। इसके अलावा, फ्लोर के लिए प्राकृतिक पत्थर चुनते हैं और छत के लिए भी इको-फ्रेंडली तकनीक अपनाते हैं। इस पूरी प्रक्रिया में उनका एक उद्देश्य यह भी रहता है कि उनके साथ जो लोग काम कर रहे हैं, उन्हें ये सब तकनीक समझाई जाती है ताकि वह आगे जहाँ भी काम करें, वहाँ इसे इस्तेमाल कर सकें।
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Brick and Vault House, Bengaluru
उन्होंने बेंगलुरु में ही अपने एक प्रोजेक्ट, 'ब्रिक एंड वॉल्ट हाउस' के बारे में बताया। इस घर को उन्होंने अपने क्लाइंट के कहे अनुसार काफी खुला-खुला और एक सीमित बजट में तैयार किया है। घर के निर्माण के लिए CSEB ब्लॉक इस्तेमाल हुए हैं।
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इस पर अलग से कोई प्लास्टर या पुट्टी का इस्तेमाल नहीं किया गया और नेचुरल स्टोन से फ्लोरिंग की गई है। इस घर में सामान्य से 20% कम सीमेंट का इस्तेमाल हुआ है और छत में फिलर स्लैब का उपयोग करके लोहे और स्टील के इस्तेमाल को भी कम किया गया।
"इस घर का तापमान बाहर के तापमान से कम रहता है और आपको एसी आदि की ज़रूरत नहीं पड़ती। इसके अलावा, घर में खिड़कियों और दरवाजे ऐसी जगहों पर लगाए गए हैं कि घर में प्राकृतिक उजाला ज्यादा आए और दिन में लाइट आदि की ज़रूरत न पड़े। घर में जो भी लकड़ी का काम हुआ है, उसके लिए कोई नयी लकड़ी नहीं खरीदी गई बल्कि पुराने दरवाजे या खिड़कियाँ खरीदकर, उन्हें अपसाइकिल किया जाता है। लोहे के लिए भी हम यही एप्रोच अपनाते हैं कि हम किसी पुराने-टूटे घर से गेट या ग्रिल आदि लेकर उसे फिर से नया रूप दें," उन्होंने कहा।
श्रुति कहती हैं कि इसके साथ ही, घर में सोलर पैनल और रेनवाटर हार्वेस्टिंग तकनीक भी लगाई गई है। हर साल, यह घर लगभग 1 लाख 35 हज़ार लीटर बारिश का पानी इकट्ठा करता है और बिजली की भी अपनी पूरी ज़रूरत सोलर से पूरी करता है। इसके अलावा, जो भी बिजली बचती है, वह ग्रिड को सप्लाई की जाती है।
Earth Bag Farm House, Tamilnadu
अर्थ बैग इस्तेमाल करके भी उन्होंने अपने बहुत से प्रोजेक्ट किए हैं। तमिलनाडु में उन्होंने एक फार्म हाउस बनाया है तो कर्नाटक में एक स्कूल इस तकनीक का इस्तेमाल करके बनाया है। तमिलनाडु में जो अर्थ बैग फार्म हाउस उन्होंने बनाया है, उसमें उन्होंने साईट पर पहले से उपलब्ध पत्थरों और मिट्टी के बैग बनाकर, इनका इस्तेमाल किया है।
उन्होंने निर्माण के लिए अर्थ बैग साईट पर ही तैयार कराए और जो पत्थर से, उन्हें घर के अंदर फर्नीचर का रूप दिया गया। जहां भी किसी रौशनदान की ज़रूरत थी, वहां पुरानी काँच की बोतलों को इस्तेमाल किया गया ताकि प्राकृतिक लाइट घर में आए।
श्रुति बताती हैं कि इस घर की छत के लिए उन्होंने 'छप्पर/थैचिंग' तकनीक का इस्तेमाल किया है। इसमें इको-फ्रेंडली मटेरियल जैसे बांस, लकडियाँ और फूस आदि का इस्तेमाल करके घरों के लिए छत बनाई जाती है। छत को वाटर-प्रूफ रखने के लिए उन्होंने फ्रेम के ऊपर त्रिपाल और मेटल शीट का इस्तेमाल किया है और फिर उस पर छप्पर डाला है।
यह कम-लागत की होने के साथ-साथ पूरी तरह से सस्टेनेबल भी है। घरों पर छत डालने का यह बहुत ही पारंपरिक तरीका है और आज भी बहुत से इलाकों में प्रचलित है।
अर्थ फार्म हाउस को प्लास्टर करने के लिए मिट्टी के गारे का इस्तेमाल किया गया है। इस घर को पूरी तरह से ग्रामीण परिवेश को ध्यान में रखकर बनाया गया ताकि जो भी यहाँ आए, वह उस अहसास को महसूस कर सके।
सस्टेनेबल हो इंटीरियर भी:
"इन सभी सस्टेनेबल तकनीकों के साथ-साथ हमारा खास ध्यान घर के इंटीरियर पर भी रहता है। अगर हमने किसी को सस्टेनेबल घर बनाकर दिया और वह अपने घर के इंटीरियर के लिए बिना प्रकृति के बारे में सोचे काम करे तो क्या फायदा? इसलिए हम यह सुनिश्चित करते हैं कि घर का इंटीरियर भी सस्टेनेबल हो," श्रुति ने आगे कहा। इसके लिए, वह ALT Lab innovator कंपनी के साथ मिलकर काम करते हैं।
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घर के अंदर जो भी फर्नीचर का काम होता है जैसे मेज, कुर्सी, बेड या फिर अलमारी आदि, सभी कुछ के लिए पुराने मटेरियल को इस्तेमाल किया जाता है। उनकी टीम पुरानी चीजों को अच्छे से ट्रीट करके नया रूप देती है और घर के हिसाब से इन्हें बनाया जाता है। श्रुति कहतीं हैं कि इसे तरह से वह लकड़ी के काम पर 70% तक लागत कम कर पाते हैं और साथ ही, बहुत से पेड़ों को कटने से बचाने में उन्होंने योगदान भी दिया है।
रहने के लिए घर बनाने से लेकर हाई-फाई रिसोर्ट बनाने तक, हर तरह के प्रोजेक्ट्स आशीष और श्रुति कर रहे हैं। उन्होंने बेंगलुरु, चेन्नई, सालेम आदि जगहों पर घर, दफ्तर, स्कूल आदि बनाने के छोटे-बड़े प्रोजेक्ट्स किए हैं और कई दूसरे प्रोजेक्ट पर अभी काम चल रहा है।
आशीष सिर्फ इतना कहते हैं कि उनका उद्देश्य सस्टेनेबल आर्किटेक्चर को सिर्फ कुछ लोगों तक सीमित न रखकर, इसे आम जन तक पहुँचाना है और इसलिए, जब भी वह बेंगलुरु के बाहर काम करते हैं तो अपने साथ टीम ले जाने की बजाय, वह उसी इलाके में अपने मिस्त्री ढूंढते हैं और उन्हें सिखाते हैं।
अगर आप उनके काम के बारे में अधिक जानना चाहते हैं तो उन्हें [email protected] पर ईमेल कर सकते हैं!
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