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Home कर्नाटक शिक्षक ने सुधारी सरकारी स्कूल की हालत, 'पेंसिल' के ज़रिये पंचायत तक पहुंचाई परेशानी!

शिक्षक ने सुधारी सरकारी स्कूल की हालत, 'पेंसिल' के ज़रिये पंचायत तक पहुंचाई परेशानी!

"एक वक़्त था जब बच्चे स्कूल नहीं आना चाहते थे और अब वे यहाँ से जाना नहीं चाहते।"

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शिक्षक ने सुधारी सरकारी स्कूल की हालत, 'पेंसिल' के ज़रिये पंचायत तक पहुंचाई परेशानी!

र्नाटक के रायचूर में सिंधनुर तालुका के बेलागुर्की गाँव के रहने वाले 38 वर्षीय बी. कोटरेश ने जब यहाँ के बेलागुर्की सरकारी स्कूल में पढ़ाना शुरू किया था तो स्कूल की हालत एकदम ही खस्ता थी। उन्हें कुछ वक़्त में ही समझ आ गया कि बच्चों को स्कूल आना और पढ़ाई करना बिल्कुल भी मजेदार नहीं लगता और उनके लिए यह सिर्फ एक काम की तरह है।

इसके साथ ही उन्हें यह भी पता था कि न तो स्कूल का इंफ्रास्ट्रक्चर ही ठीक है और न ही कोई सुविधाएँ हैं यहाँ। गाँव के लोगों का भी इस तरफ कोई ध्यान नहीं था। लेकिन आज कोटरेश ने अपनी मेहनत और लगातार प्रयासों के दम पर स्थिति को बहुत बदल दिया है।

आज, लगभग एक दशक बाद, स्कूल का नज़ारा ही कुछ और है। अच्छा इंफ्रास्ट्रक्चर, शौचालय, पानी पीने की अच्छी व्यवस्था, स्पोर्ट्स रूम, लाइब्रेरी और चार नये क्लासरूम- ये सभी सुविधाएं स्कूल में उपलब्ध हैं। और यह सब मुमकिन हो पाया है 'पेंसिल' की सफलता के चलते। कोटरेश बताते हैं कि 'पेंसिल,' उनके स्कूल की मैगज़ीन है।

'पेंसिल' के पीछे का उद्देश्य 

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The children enjoying the newspaper.

"मैंने देखा कि स्कूल में ड्रॉपरेट बहुत ज़्यादा है और पहली चुनौती यही थी कि इसे कैसे कम करें," उन्होंने कहा।

कोटरेश ने देखा कि स्कूल के बच्चों को आर्ट और ड्राइंग आदि करना पसंद है। इसलिए उन्होंने आर्ट्स एंड क्राफ्ट्स के ज़रिये बच्चों के मन तक पहुँचने की ठानी। साल 2013 में उन्होंने एक स्कूल मैगज़ीन शुरू की - 'पेंसिल'!

वह बताते हैं, "इसे शुरू करने का मुख्य कारण बच्चों को किसी क्रिएटिव चीज़ में शामिल करना और फिर उन्हें इसकी ज़िम्मेदारी का एहसास कराना था।"

वह हर महीने कम से कम इस मैगज़ीन के 500 कॉपी छपवाते हैं, जिन्हें पाठकों में बांटा जाता है।

"इसकी महीने की लागत मुझे 4, 000 रुपये पड़ती है जो मैं हर महीने अपनी जेब से देता हूँ। एक साल तक, मुझे इसके लिए इंडियन फाउंडेशन ऑफ़ आर्ट्स से ग्रांट भी मिली, जिससे काफी मदद हुई, उन्होंने आगे बताया।

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A reader from Bengaluru

मैगज़ीन के सबसे पहले अंक के प्रकाशन के बारे में याद करते हुए उन्होंने बताया, "बच्चे बहुत उत्साहित थे। मुझे नहीं याद कि किसी और चीज़ में मैंने उनकी कभी इतनी रूचि देखी है। मैगज़ीन के लिए काम करने पर उन्हें गर्व महसूस हो रहा था।"

पेंसिल के एक सेक्शन को खास तौर पर गाँव के लोगों के लिए डिजाईन किया गया है ताकि उन्हें भी पता चले कि स्कूल में क्या-क्या होता है? कोटरेश कहते हैं कि पहले गाँव से कोई भी स्कूल में कदम तक नहीं रखता था और अब वे बेसब्री से मैगज़ीन का इंतज़ार करते हैं।

क्या है खास?

कोटरेश, स्कूल मैगज़ीन के बारे में आगे बताते हैं कि मैगज़ीन के बहुत से सेक्शन में से दो सेक्शन बहुत मशहूर हैं- केलोना बननी (चलो, पूछते हैं) और नामुरा परिचय (चलिए अपने गाँव को जानते हैं)!

'चलो, पूछते हैं' सेक्शन में उन लोगों से बात की जाती है जिन पर स्कूल की ज़िम्मेदारी है और दूसरे सेक्शन में, गाँव के लोगों की उपलब्धियों के बारे में बात की जाती है। कोटरेश के छात्र यह सब खुद मैनेज करते हैं, बहुत ही कम होता है कि वे उनकी मदद करें।

इस मैगज़ीन को लेकर गाँव के लोगों में काफी उत्साह रहता है और तो और बंगलुरु में भी इस मैगज़ीन को पढ़ने वाले कुछ लोग हैं।

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A complete change

"वैसे तो, टीचर अपने छात्रों को होमवर्क देते हैं, लेकिन मैं अपने छात्रों से कुछ अलग करने के लिए कहता हूँ- मैंने उन्हें अपने घर पर होने वाली चीजों पर ध्यान देने के लिए कहता हूँ, गाँव के आयोजनों में हिस्सा लेने के लिए और फिर वहां जो भी चीजें होती हैं,  उन पर ध्यान देना, पहले उन्हें समझना कि क्या हो रहा है और फिर क्यों हो रहा है?"

बाद में अपने इन्हीं अनुभवों को छात्र 'पेंसिल' के लिए शब्दों में पिरोते हैं।

इससे बच्चों को अपने आस-पास के वातावरण को अच्छे से समझने में मदद मिलती है। पिछले छह सालों में, बच्चों के सोचने और बोलने के तरीके में काफी बदलाव आया है। उनका आत्म-विश्वास काफी बढ़ा है और कोटरेश के मुताबिक, यही उनकी सबसे बड़ी उपलब्धि है।

'पेंसिल' शुरू होने के बाद आये बदलाव के बारे में कोटरेश बताते हैं कि जब इस मैगज़ीन के ज़रिये पंचायत के लोग हमारी समस्याओं के बारे में पढ़ते हैं तो उन्हें एहसास होता है कि उन्हें काम करना चाहिए। लेकिन अब जब भी ज़रूरत पड़ती है तो बच्चों के माता-पिता भी बोलते हैं।

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B Kotresh

बाकी, बहुत से माता-पिता मैगज़ीन में अपने बच्चों के आर्ट-क्राफ्ट को देखने के लिए भी उत्साहित रहते हैं। बच्चों की प्रतिक्रिया के बारे में कोटरेश कहते हैं, "वे सबसे ज्यादा खुश हैं। वे सिर्फ इस काम का हिस्सा नहीं है बल्कि उन्हें इस बात की भी ख़ुशी है कि वे स्कूल के अच्छे के लिए कुछ कर रहे हैं। अब 'पेंसिल' की पूरी ज़िम्मेदारी उन्होंने ले ली है।"

अंत में कोटरेश मुस्कुराते हुए कहते हैं, "एक वक़्त था जब बच्चे स्कूल नहीं आना चाहते थे और अब वे यहाँ से जाना नहीं चाहते।"

यदि आप इस टीचर के काम से प्रभावित हुए हैं और किसी भी तरह से उनकी मदद करना चाहते हैं तो [email protected] पर मेल करके सम्पर्क कर सकते हैं!

मूल लेख: विद्या राजा

संपादन - मानबी कटोच 


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