दिल्ली: मिनटों में खुल-बन सकता है बस्ती के बच्चों के लिए, बाँस से बना यह स्कूल

'मॉडस्कूल' बनने से पहले बस्ती के बच्चे तीन साल तक एक नीम के पेड़ के नीचे पढ़ते रहें।

दिल्ली: मिनटों में खुल-बन सकता है बस्ती के बच्चों के लिए, बाँस से बना यह स्कूल

देश में विकास कार्यों के नाम पर हर साल हजारों घर तोड़ दिए जाते हैं। इससे न सिर्फ आर्थिक रूप से कमजोर लोगों की जिंदगी तबाह होती है, बल्कि सबसे बुरा असर पड़ता है बच्चों की शिक्षा और परिवेश पर। लेकिन, कहते हैं कि युवाओं की इच्छाशक्ति किसी भी समाज की तकदीर बदल सकती है और दिल्ली के कुछ युवाओं ने इसे चरितार्थ भी किया है।

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स्वाति ने यमुना खादर में 50 से अधिक वालंटियर्स और स्थानीय लोगों की मदद से बनाया स्कूल

यह कहानी है दिल्ली के यमुना खादर झुग्गी बस्ती की, जहाँ स्वाति जानू और निधि सोहाने नाम की दो युवा आर्किटेक्ट ने स्थानीय लोगों के साथ मिलकर, सैकड़ों बच्चों के भविष्य को संवारने के लिए एक पर्यावरण के अनुकूल और आसानी से स्थानांतरित करने योग्य स्कूल बना दिया।

आव्यशकता ही आविष्कार की जननी हैं...

दिल्ली में यमुना खादर गाँव यमुना नदी के किनारे बसा हुआ है और यहाँ दशकों से मूलभूत सुविधाओं की व्यापक कमी रही है। इसी को देखते हुए साल 1993 में, पेशे से एक वकील गुरमीत सिंह लवाणा ने यहाँ के किसानों के बच्चों को बेहतर शिक्षा देने के उद्देश्य से 'वन फूल' नामक एक स्कूल की स्थापना की।

इस कड़ी में स्वाति बताती हैं, "यह बच्चों के लिए एक महत्वपूर्ण स्कूल था, लेकिन साल 2011 में एनजीटी के आदेश पर दिल्ली विकास प्राधिकरण ने बस्ती के अधिकांश भवनों के साथ इस स्कूल को भी तोड़ दिया। इसकी वजह यह है कि दशकों से यहाँ रहने के बावजूद भी किसी के पास औपचारिक जमीन नहीं है।"

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यमुना खादर बस्ती में पुल के नीचे पढ़ते बच्चे

इसके बाद कुछ सामाजिक कार्यकर्ताओं द्वारा समुदाय के समर्थन में दिल्ली उच्च न्यायलय में याचिका दायर करने के बाद अस्थायी तौर पर स्कूल बनाने की अनुमति मिली। फिर समाजसेवी नरेश पाल की अगुवाई में यहाँ बाँस और तिरपाल से स्कूल बनाया गया। लेकिन बच्चों को बारिश और धूप से पढ़ने में काफी दिक्कत होती थी।

इस विषय में नरेश बताते हैं, "साल 2011 में स्कूल टूटने के बाद हमारे पास कोई विकल्प नहीं था। इसलिए हमने बच्चों को नीम के पेड़ के नीचे पढ़ाना शुरू कर दिया। बारिश और धूप से बच्चों को पढ़ाई में काफी परेशानी होती थी। हमने बच्चों को 3 वर्षों तक इसी स्थिति में पढ़ाया। इसके बाद हमने 2014 में बाँस और तिरपाल से स्कूल बनाने का फैसला किया, लेकिन इससे भी कुछ खास राहत नहीं मिली।"

इन्हीं सब चीजों के बीच एक समाजसेवी शकील ने साल 2014 के अंत में, निराश्रित लोगों की बेहतरी के लिए काम करने वाली संस्था सोशल डिजाइन कोलैबोरेटिव की संस्थापक स्वाति से संपर्क किया और नींव रखी 'प्रोजेक्ट मॉडस्कूल' की ।

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यमुना खादर में मॉडस्कूल प्रोजेक्ट के तहत स्कूल बनाते वालंटियर्स

महज़ तीन हफ़्तों में बना मिनटों में खुलने-बनने वाला यह स्कूल

इस विषय में स्वाति बताती हैं, "प्रोजेक्ट मॉडस्कूल के तहत मैंने और निधि ने स्कूल प्रबंधन के सामने एक पर्यावरण के अनुकूल, स्व-निर्मित और बेहतर स्वच्छता समाधान वाले डिजाइन को रखा। यह एक ऐसा मॉडल था, जिसे बनाने में बेहद कम लागत आ रही थी और इसे चंद मिनटों में ही खोला जा सकता था।"

वह आगे बताती हैं, "जुलाई 2016 में सबकुछ तय होने के बाद हमें लगभग 2.5 लाख रुपए की जरूरत थी। इसलिए हमने सोशल मीडिया के जरिए क्राउड फंडिंग की अपील की और लोगों की मदद से आखिर स्कूल बनाने का काम साल 2017 में शुरू हो गया।

हमने इसके ढांचे को लोहे से बनाया, जिसे कभी भी खोला जा सकता है और दीवारों, दरवाजों और खिड़कियों को बाँस, लकड़ी और सूखी घास जैसे स्थानीय संसाधनों से बनाया गया। छत को टिन से बनाया गया और उस पर सूखे घास डाल दिए गए, ताकि गर्मी का असर कम हो। इसके साथ ही, बच्चों के मनोरंजन के लिए भी काफी कार्य किए गए।"

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मॉडस्कूल प्रोजेक्ट के तहत बांस, लकड़ी और घास से बनाया गया स्कूल को

एक और खास बात यह है कि इस स्कूल को बच्चों, शिक्षकों, पत्रकारों, स्थानीय लोगों और 50 से अधिक वॉलंटियर्स ने मिलकर महज 3 हफ्ते में बना दिया। इसमें इंजीनियरिंग से संबंधित महत्वपूर्ण सलाह विनटेक कंसल्टेंट कंपनी के निदेशक विनोद जैन ने दिया, जिन्होंने इस स्कूल के लिए सबसे ज़्यादा राशि भी डोनेट की थी।

एक दुखद मोड़ पर एक नई शुरुआत!

जब यह स्कूल बना था, उस वक्त इसमें एक साथ 250 बच्चे पढ़ सकते थे। लेकिन, महज एक साल चलने के बाद स्कूल को भूमि विवाद की वजह से बंद करना पड़ा।

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यमुना खादर स्थित मॉडस्कूल में पढ़ते बच्चे

यमुना खादर में प्रोजेक्ट मॉडस्कूल के बेहद दुर्भाग्यपूर्ण ढंग से बंद होने के बाद, इसे बाल अधिकार संरक्षण के लिए काम करनेवाली गैर सरकारी संस्था 'द चाइल्ड ट्रस्ट' की मदद से जून, 2019 में ग्रेटर नोएडा के कुलेसरा गाँव में हिंडन नदी के किनारे स्थानांतरित किया गया।

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भूमि विवाद की वजह से मॉडस्कूल को साल 2019 में ग्रेटर नोएडा के कुलेसरा स्थानांरित किया गया

इस विषय में स्वाति बताती हैं, "अब इस स्कूल का नाम 'समग्र शिक्षा केन्द्र' है। इस स्कूल को बनाने में पारंपरिक खाट बुनाई तकनीक को अपनाया गया है। यह काफी किफायती है और इसकी वजह से बस्ती के लोगों को न सिर्फ रोजगार का अवसर मिला, बल्कि अपने बच्चों के लिए अपने संसाधनों और संरचना शैलियों का इस्तेमाल करने की वजह उनमें एक स्वामित्व और गर्व की भावना भी पैदा हुई है।"

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ग्रेटर नोएडा के कुलेसरा गाँव में खाट बुनाई तकनीक से बनाया गया स्कूल

वहीं, द चाइल्ड ट्रस्ट की निदेशक सुमन कहती हैं, "इस स्कूल को बनाने के पीछे हमारा मकसद मूलभूत शिक्षा से वंचित हर आयु वर्ग के बच्चों को सहज और परिवार जैसे माहौल में शिक्षा देना था। हमारे पास इस समय 52 बच्चे हैं और हम उनके समग्र विकास के लिए काम कर रहे हैं, ताकि वे अपनी भविष्य की चुनौतियों का सहजता से सामना कर सकें। यह स्कूल हफ्ते में 6 दिन चलता है और हमने बच्चों को पढ़ाने के लिए 2 शिक्षकों को नियमित रूप से रखा है।"

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बच्चों के सम्पूर्ण विकास पर ध्यान दिया जाता है समग्र शिक्षा केन्द्र में

शिक्षा सुधार के ऐसे प्रयासों के फलस्वरूप सामुदायिक विकास का भी रास्ता खुलता है। बस जरूरत है, सरकार और प्रशासन समाज के ऐसे सच्चे नायकों को प्रोत्साहित करे और उनकी हरसंभव मदद करे।

यदि आप स्वाति से बात करना चाहते हैं तो उनसे फेसबुक पर संपर्क कर सकते हैं।

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