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WIPRO में थे IT इंजीनियर, भतीजी की बीमारी देख बन गए किसान, बदली 200 किसानों की ज़िंदगी

इन दिनों केशव कोरोना संक्रमण की वजह से सोशल मीडिया पर गूगल मीट के जरिए किसानों को लेक्चर भी दे रहे हैं, ताकि वह अपनी खेती में सुधार कर सकें और उनके अनुभवों का लाभ उठा सकें।

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WIPRO में थे IT इंजीनियर, भतीजी की बीमारी देख बन गए किसान, बदली 200 किसानों की ज़िंदगी

ज्यादातर किसान अपने बच्चों को पढ़ा लिखाकर डॉक्टर, इंजीनियर बनाना चाहते हैं। लेकिन आज हम आपकी मुलाकात एक ऐसे आईटी इंजीनियर से कराएंगे, जिन्होंने इंजीनियरिंग छोड़ खेती-किसानी की दुनिया में कदम रखा है। इस किसान ने ज़हर मुक्त खेती का अभियान चलाया और करीब दो सौ किसानों की ज़िंदगी बदल दी। यह कहानी नांदेड़ (महाराष्ट्र) के केशव राहेलगाँवकर की है।

बच्ची की तबीयत बिगड़ी तो बदल गई सोच

Engineer turned farmer
केशव राहेलगाँवकर

केशव ने द बेटर इंडिया को बताया, “मैं विप्रो कंपनी के हार्डवेयर डिवीजन में कार्यरत था। वहाँ मैं सॉल्यूशन प्रोवाइडर का काम कर रहा था। 1998 से लेकर 2000 तक यहीं काम किया। इसके बाद मन आया कि इतनी मेहनत अपने काम के लिए करनी चाहिए। तोअपना कंप्यूटर हार्डवेयर का बिजनेस शुरू कर दिया। इसी बीच 2009 में भाई की बच्ची की तबीयत बिगड़ी। उसे सेरिब्रल पाल्सी के साथ ही कई तरह की दिक्कत हो रही थी, जिसका सीधा संबंध डॉक्टर ने भोजन के जरिए उसके भीतर पहुँचे हानिकारक तत्वों को बताया। बस यहीं से मेरी सोच बदल गई। लगा, न जाने कितने लोग जहरयुक्त रासायनिक खेती से प्रभावित हो रहे होंगे। फैसला ले लिया कि जहर मुक्त खेती ही करनी है और लोगों को जागरूक भी करना है।"

नांदेड़ में खेती, पंढरपुर में बागवानी शुरू की

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अपने खेत में केशव

नांदेड़ में केशव ने अपनी पुश्तैनी जमीन को तैयार कर खेती शुरू कर दी। उन्होंने केवल गोबर खाद का इस्तेमाल किया। हल्दी, अदरक, गन्ना, मूंगफली, तुअर से खेती की शुरूआत की। फलों के लिए जलवायु को ध्यान में रखते हुए पंढरपुर में बागवानी शुरू की। अंगूर, आम सहित तमाम फलों पर ध्यान दिया। 

केशव कहते हैं, पहले साल किसी लाभ की कामना नहीं थी। नो प्राफिट-नो लॉस के आधार पर खेती शुरू की थी, इसके बावजूद आर्गेनिक उत्पादों को लोगों ने हाथों-हाथ लिया और अच्छा मुनाफा हुआ। लेकिन मकसद तो जहर मुक्त खेती की विचारधारा को फैलाना था तो किसानों को जोड़ना प्राथमिकता बन गई। इसके लिए कोशिश शुरू कर दी।

आसान नहीं था किसानों को साथ लाना

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खेत में काम करते किसानों के साथ केशव

केशव बताते हैं कि किसानों को आर्गेनिक खेती की तरफ मोड़ना आसान काम नहीं था।वह कुछ सुनने को तैयार नहीं होते थे। ऐसे में उनके साथ अधिक से अधिक समय बिताया। उन्हें मोबाइल पर जैविक खेती के फायदों पर बनाए वीडियो दिखाए। धीरे-धीरे कोशिश रंग लाई। पहले दस, फिर पचास, फिर सौ और अब करीब 200 किसान उनके साथ जुड़े हैं। केशव के मुताबिक इसके बाद भी दिक्कत बंद नहीं हुई। किसानों ने अपने खेतों को तैयार कर उनमें जैविक बीज बोए। साल भर बाद फसल भी अच्छी हुई लेकिन टेक्निकल सपोर्ट और ब्रांडिंग की दिक्कत खड़ी हो गई। इससे निजात पाने के लिए अमृत नेचुरल ब्रांड बनाया। इसके बैनर तले वह सभी किसानों की उपज को एकत्र करके बिक्री का काम करते हैं। 

वह कहते हैं, इससे दो फायदे होते हैं एक संगठित खेती का लाभ किसानों को मिलता है उनकी आय में बढ़ोतरी हुई है। और दूसरा यह कि खाने वालों के स्वास्थ्य की देखभाल संभव हुई है।

किसानों को सोशल मीडिया से भी कर रहे प्रशिक्षित

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किसानों को सोशल मीडिया के ज़रिये कर रहे हैं शिक्षित

केशव ने एक टेक्निकल टीम भी बनाई है, जिसके जरिए वह किसानों की सहायता करते हैं। केशव कहते हैं,  बागवानी विशेषज्ञ भरत रघुराई, जिन्हें जैविक खेती के क्षेत्र में 35 साल का अनुभव है, के साथ मिलकर बागवानों को प्रशिक्षित करने का भी काम कर रहे हैं। इन दिनों कोरोना संक्रमण की वजह से सोशल मीडिया पर गूगल मीट के जरिएलेक्चर भी किसानों को दे रहे हैं ,ताकि वह अपनी खेती में सुधार कर सके और उनके अनुभवों का लाभ उठा सकें।

केशव जैविक खेती से जुड़ी कार्यशाला में हिस्सा लेते रहते हैं, ताकि कुछ न कुछ नया सीखते रहें। यही सब बाद में वह अपने साथ जुड़े किसानों को भी सिखाते हैं और इस तरह वह अभी तक कई जगह प्रशिक्षण में हिस्सा ले चुके हैं।

दक्षिण भारत के बाद अब उत्तर भारत का रुख

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केशव के अनुसार उनके जैविक उत्पादों की बिक्री पूरे दक्षिण भारत में हो रही है। अब उत्तर भारत की ओर भी उन्होंने रुख किया है। फोकस पंजाब पर भी किया है। हालाँकि कोरोना संक्रमण काल को देखते हुए उनकी यह कवायद अभी मनचाहे तरीके से परवान नहीं चढ़ पा रही है। बहरहाल, उन्हें इंतजार स्थितियाँ सामान्य होने का है। वह बताते हैं कि बीते वित्तीय वर्ष का टर्न ओवर करोड़ों में रहा है। इससे सभी साथी लाभान्वित हुए हैं।

हाल ही में केशव के बेटे की डेंगू के चलते मौत हो गई। केशव ने अपने पुत्र को खो दिया लेकिन जल्द ही खुद को संभाल भी लिया। वह मानते हैं कि जीवन चलने का नाम है। केशव ने खुद को फिर से हिम्मत दी और औरों के लिए काम करने की प्रेरणा लेकर वह खेतों की ओर चल दिए। 

अनुशासन, मेहनत और समर्पण 

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केशव के खेत में अंगूर

नांदेड़ के प्रतिभा निकेतन हाईस्कूल से स्कूली पढ़ाई के बाद बाबा साहेब डा. अंबेडकर मराठवाड़ा यूनिवर्सिटी से डिग्री हासिल करने वाले केशव जीवन में पढ़ाई को बेहद जरूरी मानते हैं। उनका कहना है, यदि आप लक्ष्य बनाकर किसी कार्य को करने की ओर प्रवृत्त होते हैं तो उसके लिए जरूरी है अनुशासन, धैर्य मेहनत और समर्पण की। इसके बगैर सफलता नहीं मिलती है। यही चारों तत्व आपको सफल बनाता है। खेती- किसानी खासतौर पर एक ऐसा क्षेत्र है, जहाँ पर बिना कुछ किए या रातों-रात सफलता नहीं मिल सकती।

यदि आपको इस कहानी से प्रेरणा मिली है तो आप  केशव राहेलगांवकर से उनके मोबाइल नंबर  8668590511 पर संपर्क कर सकते हैं।

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