दिल्ली में ‘वीरजी का डेरा' संगठन द्वारा हर दिन 1000 से ज्यादा गरीब और बेसहारा लोगों को खाना खिलाया जाता है और 300 से 400 बीमार तथा घायल लोगों का इलाज किया जाता है।
उत्तर प्रदेश के बुंदेलखंड के रहने वाले रविकांत पाठक हॉंगकॉंग, अमेरिका और स्वीडन जैसे देशों में काम कर चुके हैं, लेकिन कुछ अलग करने की चाहत में उन्होंने अपनी नौकरी छोड़ दी। वह 2007 से अपने “भारत उदय” प्रयास के तहत किसानों को प्राकृतिक खेती को बढ़ावा देने की दिशा में संघर्षरत हैं।
1994 में, मणिपुर के सुदूरवर्ती गाँव लांगदाईपबरम में एक आतंकवादी मुठभेड़ में कप्तान डीपीके पिल्लई ने जांबाजी और नेकदिली का परिचय दिया, जब वह मौत के बिल्कुल करीब थे। उनकी वजह से दो मासूम बच्चों की जान बची। आज 27 वर्षों के बाद, वह उस गाँव के लोगों को एक नया जीवन देने में सफल हो रहे हैं।
दार्जिलिंग की रहने वाली यूडेन आंटी, फिलहाल दिल्ली में "दार्जिलिंग स्टीमर्स” रेस्टोरेंट चलातीं हैं। लेकिन, एक अकेली माँ होने के कारण, उन्हें इस बिजनेस को शुरू करने के लिए कई कठिनाइयों का सामना करना पड़ा। देखिये उनकी प्रेरक कहानी।
छत्तीसगढ़ के रायपुर के रहने वाले चित्रसेन साहू ने एक ट्रेन हादसे में अपने दोनों पैर गंवाने के बाद भी हिम्मत नहीं हारी। इस वीडियो में देखिये उनकी कहानी उन्ही की ज़ुबानी।
नागालैंड के खुजमा गाँव में रहने वाले केसेतो ठाकरो NIT Nagaland में एक टेक्नीशियन के रूप में काम करते हैं। उन्होंने अपने गाँव में एक मिनी-हाइड्रो पावर प्लांट को लगाया है, जिससे आज पूरा गाँव रोशन हो रहा है।
IAS अधिकारी सरयू मोहनचंद्रन मूल रूप से केरल की रहने वाली हैं। वह फिलहाल, तमिलनाडु के नीलगिरी जिले में तैनात हैं। कुछ महीने पहले, उन्होंने अपने फेसबुक पर अपनी माँ, खादिजा के लिए एक काफी भावनात्मक पोस्ट साझा किया।
पुणे के रहने वाले शिवाजी कांबले, कर्ज में डूबे हुए थे। उनके पास इतने पैसे भी नहीं बचे थे कि वह अपने माता-पिता को ठीक से खाना खिला सकें। ऐसे में वह उन्हें किसी तीर्थ स्थल पर छोड़ने चले गए। इसी क्रम किसी ने उसका वीडियो बनाकर वायरल कर दिया। उसके बाद जो कुछ भी हुआ, उससे उनकी जिंदगी बदल गई।