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“लहरों से डर कर नौका पार नहीं होती,
कोशिश करने वालों की हार नहीं होती,
नन्हीं चींटी जब दाना लेकर चलती है,
चढ़ती दीवारों पर, सौ बार फिसलती है,
मन का विश्वास रगों में साहस भरता है,
चढ़कर गिरना, गिरकर चढ़ना न अखरता है,
आखिर उसकी मेहनत बेकार नहीं होती,
कोशिश करने वालों की हार नहीं होती।।”
हिन्दी के विराट कवि सोहनलाल द्विवेदी की ये पंक्तियाँ छत्तीसगढ़ के रायपुर के रहने वाले चित्रसेन साहू पर बिल्कुल सटीक बैठती है।
चित्रसेन के पैर नहीं हैं। जून 2014 में, एक ट्रेन हादसे में उन्होंने अपने दोनों पैर गँवा दिए थे। लेकिन, यह उनकी सफलता के आड़े नहीं आया और उन्होंने अपने मजबूत इरादों से अफ्रीका के सबसे ऊँचे किलिमंजारो पर्वत पर फतह करने से लेकर, 14 हजार फीट स्काई डाइविंग करने और राष्ट्रीय स्तर पर व्हीलचेयर-बास्केटबॉल खेलने जैसे कई साहसी काम किए हैं।
उनका मानना है कि दिव्यांगजनों के साथ लोगों को कोई भेदभाव नहीं करना चाहिए। उन्हें दया की नहीं, बल्कि एक समान जिंदगी जीने का हक चाहिए। अपने इसी विचार के तहत, उन्होंने ‘Mission Inclusion’ पहल की नींव रखी, जिसके ज़रिये वह अपनी तरह अनेक दिव्यांगजनों को एक नई राह दिखा रहे हैं।
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