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Home इको-फ्रेंडली 'साल' के पत्तों से बनी 'खलीपत्र' को बनाया प्लास्टिक का विकल्प, आदिवासियों को दिया रोज़गार!

'साल' के पत्तों से बनी 'खलीपत्र' को बनाया प्लास्टिक का विकल्प, आदिवासियों को दिया रोज़गार!

केंदुझर जिला प्रशासन की किसी भी मीटिंग या अन्य किसी आयोजन के दौरान चाय और स्नैक्स बायोडिग्रेडेबल पेपर कप और साल के पत्तों से बनी प्लेट- कटोरी में ही सर्व किये जायेंगें!

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'साल' के पत्तों से बनी 'खलीपत्र' को बनाया प्लास्टिक का विकल्प, आदिवासियों को दिया रोज़गार!

'प्लास्टिक-मुक्त' समाज की दिशा में उड़ीसा के केंदुझर जिला प्रशासन ने बहुत ही अहम कदम उठाया है। कुछ समय पहले ही, प्रशासन ने फ़ैसला किया है कि अब से किसी भी प्रशासनिक मीटिंग्स, सेमिनार और वर्कशॉप आदि के दौरान खाने-पीने के लिए प्लास्टिक के कप, गिलास या फिर प्लेट्स आदि का इस्तेमाल नहीं होगा।

बल्कि प्रशासन ने इसकी जगह 'साल' के पत्तों से बनने वाले इको-फ्रेंडली प्रोडक्ट्स इस्तेमाल करने का निर्णय किया है। किसी भी मीटिंग या अन्य किसी आयोजन के दौरान चाय और स्नैक्स पेपर कप और साल के पत्तों से बनी प्लेट और दोने/कटोरी में सर्व किये जायेंगें।

यह पहल यहाँ के जिला अधिकारी, आशीष ठाकरे ने अपनी टीम के साथ मिलकर शुरू की है। उन्होंने बताया,

"हमारा उद्देश्य प्लास्टिक-फ्री पर्यावरण है। हमने पहल की है कि प्रशासन के कामों में से सिंगल-यूज प्लास्टिक का प्रयोग बिल्कुल बंद हो जाये। इसलिए साल के पत्तों से बनी प्लेट्स, जिन्हें यहाँ 'खली पत्र' कहते हैं, प्लास्टिक का एक बेहतर विकल्प हैं।"

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आईएएस आशीष ठाकरे

साल के पत्तों से बनी प्लेट्स या फिर दोने आदि न सिर्फ़ इको-फ्रेंडली हैं बल्कि उड़ीसा के इन आदिवासी इलाकों की संस्कृति का हिस्सा भी हैं। जब भी गाँव में कोई बड़ा आयोजन होता है तो अक्सर खाना, खलीपत्र पर ही परोसा जाता है। इसके साथ, सब्ज़ी के लिए मिट्टी या फिर खली के ही बने दोनों का इस्तेमाल होता है और पानी कुल्हड़ में दिया जाता है।

इस तरह से कितना भी बड़ा आयोजन हो, लेकिन कोई कूड़ा-कचरा नहीं होता था। पर पिछले कई सालों में प्लास्टिक के प्रोडक्ट इस्तेमाल होने के कारण तस्वीर बिल्कुल ही बदल गयी थी। लेकिन अब जिला प्रशासन की यह पहल न सिर्फ़ प्लास्टिक-फ्री पर्यावरण की दिशा में है, बल्कि यह इस इलाके की संस्कृति को सहेजने का भी एक ज़रिया है।

इसके अलावा, आईएएस ठाकरे बताते हैं कि इस योजना से उनका एक और उद्देश्य पूरा होगा और वह है यहाँ के आदिवासी लोगों के लिए रोज़गार के साधन बनाना।

"जब हमने खली पत्र पर अपनी योजना बनायीं तो हमें यह भी पता चला कि गांवों के बहुत से स्वयं-सहायता समूह साल के पत्तों के प्रोडक्ट्स बनाते हैं। हमने कार्यालय के लिए भी प्रोडक्ट्स बनाने का ऑर्डर उन्हें ही देने का निर्णय किया।"

क्योंकि यहाँ के आदिवासी लोगों के लिए साल की पत्तल, दोने या फिर कप आदि बनाना, उनका प्राथमिक रोज़गार है। यदि उन्हें उनके इलाके में ही इस तरह से ऑर्डर मिल जाये तो इससे उनकी आमदनी में बढ़ोतरी होगी।

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आदिवासी महिलाओं को मिला रोज़गार

इस योजना पर लगभग एक महीने पहले ही ऑफिसियल सर्कुलर जारी कर दिया गया था और साथ ही, सभी प्रशासनिक स्टाफ को खुद अपने पानी की बोतलें लाने के लिए भी कहा गया है। इस योजना के ज़रिए लगभग 500 आदिवासी महिलाओं को रोज़गार देने का लक्ष्य है।

आईएएस ठाकरे ने बताया कि यह योजना जिला प्रशासन की बहुत-सी विकास योजनाओं में से एक है। इससे पहले जिला प्रशासन ने इलाके के बच्चों को कुपोषण-मुक्त करने के लिए 'ममता घर' नामक पहल भी है। आदिवासी औरतें काम के समय अपने बच्चों को 'ममता घर' में छोड़कर जा सकती हैं।

इस पहल के ज़रिए, यहाँ के 6 महीने से लेकर 3 साल की उम्र तक के लगभग 1500 बच्चों को पोषक खाना दिया जा रहा है। साथ ही, उन्हें स्वास्थ्य, शिक्षा व एक अच्छे-सुरक्षित माहौल में खेलने-कूदने की सुविधा दी जा रही है।

'ममता घर' के अलावा प्रशासन द्वारा जिले में 8 डिजिटल डिस्पेंसरी भी सेट-अप की गयीं हैं। पहले यहाँ के लोगों को मेडिकल सुविधाओं के लिए लगभग 30-40 किमी दूर जाना पड़ता था पर अब उनके अपने इलाके में प्राथमिक स्वास्थ्य सुविधाएँ उपलब्ध हैं।

इन डिजिटल डिस्पेंसरी में अनुभवी नर्स, लैब तकनीशियन, फार्मासिस्ट और सभी ज़रूरी डिजिटल उपकरण मौजूद हैं। एक्सपर्ट डॉक्टर्स से मरीजों का फ्री-ऑनलाइन विडियो कंसल्टेशन करवाया जाता है और उनके टेस्ट, चेक-अप और दवाइयां, सब मुफ़्त होता है।

अपनी इन सब योजनाओं के चलते केन्दुझर जिला प्रशासन न सिर्फ़ उड़ीसा के बल्कि अन्य राज्यों के लिए भी एक प्रेरणा है। अंत में आईएएस ठाकरे सिर्फ़ यही कहते हैं,

"हम कुछ अलग नहीं कर रहे हैं। हमारा काम जनता की सेवा है और इसके लिए हमें जो भी कदम उठाने होंगे, हम उठायेंगें।"

संपादन: भगवती लाल तेली


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