Bengaluru की रहने वाली तेजश्री मधु और उनकी दोस्त, अनिता शंकर ने साल 2017 में 'अस्तु इको' नाम से एक स्टार्टअप शुरू किया। यह स्टार्टअप 'पृथ्वी और पर्यावरण के अनुकूल' उत्पाद जैसे शॉपिंग बैग, क्रोकरी (प्लेट, गिलास, चम्मच), स्टील की स्ट्रॉ, बॉक्स आदि की डिजाइनिंग व निर्माण करता है।
महाराष्ट्र के मुंबई में, 'ग्रीन यात्रा' नामक एनजीओ पूरे शहर भर में एक ख़ास जापानी 'मियावाकी तकनीक' से कम समय में घने जंगल उगा रहा है। इनका मिशन, साल 2025 तक 10 करोड़ पेड़ लगाना है और फ़िलहाल, साल 2019 में उन्होंने 10 लाख पेड़ लगाने की पहल शुरू की है |
तमिलनाडु सरकार ने छह महीने पहले ही राज्य में प्लास्टिक बैन की घोषणा कर दी थी, लेकिन 1 जनवरी 2019 से इस फैसले को प्रभाव में लाया जा रहा है। ऐसे में, राज्य भर के नारियल-पानी विक्रेताओं ने प्लास्टिक स्ट्रॉ का विकल्प ढूँढना शुरू किया है। वे पपीते के डंठल और बांस के तनों को स्ट्रॉ के तौर पर इस्तेमाल कर रहे हैं।
आंध्र प्रदेश के विजयनगरम जिले के धर्मवराम गांव के 13 वर्षीय लड़के के. तेजा ने एक टूथब्रश बनाया है। तेजा द्वारा बनाये गए टूथब्रश की ख़ासियत सिर्फ यही नहीं है कि यह बायोडिग्रेडेबल और इको- फ्रेंडली है बल्कि यह भी है कि इस टूथब्रश के अपने ही घर के बाग़ की चीज़ें इस्तेमाल करके बनाया गया है।
गुजरात के अहमदाबाद से ताल्लुक रखने वाले दो इंजीनियर अर्जुन ठक्कर और यश भट्ट पिछले दो सालों से अपनी पहल 'ब्रूक एंड ब्लूम' के जरिये मंदिरों से इकट्ठा होने वाले फूलों से जैविक खाद बना रहे हैं। इनकी यह पहल अहमदाबाद नगर निगम के 'कलश प्रोजेक्ट' से जुडी हुई है।
भारत में एयर कंडीशनर द्वारा होने वाली बिजली की खपत और ग्रीन हाउस गैसों के प्रभाव को कम करने के उद्देश्य से केंद्रीय सरकार ने प्रस्ताव रखा है। जिसके मुताबिक एयर कंडीशनर का न्यूनतम तापमान सेटिंग 24 डिग्री सेल्सियस होना चाहिए। ब्यूरो ऑफ़ एनर्जी एफिशिएंसी की रिपोर्ट के बाद बिजली मंत्रालय ने यह कदम उठाया है।
राजस्थान के बीकानेर जिले में राजकीय डूंगर कॉलेज में समाजशास्त्र के प्रोफेसर श्याम सुन्दर ज्याणी अब तक "पारिवारिक वानिकी" के तहत लगभग 2,620 गांवों में 2,60,000 परिवारों से जुड़कर लगभग 7,40,000 पेड़ लगवा चुके हैं। उन्होंने 'किसान इंटरनेशनल' यूट्यूब चैनल और 'माय फारेस्ट' व 'ग्रीन लीडर' जैसे दो एप भी शुरू किये हैं।
सप्ताह भर यह दल रात को अपना काम करते है पर सप्ताह के अंत में छुट्टी वाले दिन ये दिन भर इसी काम में जुटे होते है।रात दस बजे के करीब जब शहर का पूर्वी इलाका पार्टी और जश्न के माहौल में डूबा होता है ऐसे में ये युवा इस इलाके के पेड़ो पर लगे किले, इश्तहार तथा बैनर निकालने पहुँच जाते है।