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इस बायोगैस प्लांट की वजह से 5000 परिवारों को नहीं पड़ती है LPG की जरूरत, जानिए कैसे !

पुणे स्थित सिस्टेमा बायो कंपनी ने बायोगैस प्लांट विकसित किया है, जिससे गुजरात, महाराष्ट्र और कर्नाटक के लगभग 5,000 किसानों को एलपीजी की जरूरत नहीं पड़ रही है।

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केदार खिलारे महाराष्ट्र के पुणे से करीब 100 किलोमीटर दूर फलटण शहर के रहने वाले हैं। वह पेशे से एक किसान हैं। यदि आप उनके घर जाएंगे तो उनके कैंपस में आपको एक बड़ा सा प्लास्टिक बैग जैसा कुछ दिखेगा। आप इसे करीब से देखेंगे तो लगेगा कि यह हवा से भरा कोई बड़ा सा गुब्बारा है। इसमें एक छोर पर पाइप लगा रहता है जो इसे रसोई घर से जोड़ता है, दरअसल यह एक बायोगैस प्लांट है। आज द बेटर इंडिया आपको इस अनोखे बायोगैस प्लांट के बारे में बताने जा रहा है जिसके जरिए आप एलपीजी रसोई गैस का इस्तेमाल कम कर सकते हैं। 

इस अनोखे बायोडाइजेस्टर सिस्टम के बारे में केदार कहते हैं, “यह एक बायोगैस संयंत्र है और इसकी वजह से हमने लगभग 2 वर्षों से कोई एलपीजी सिलेंडर नहीं खरीदा है। मेरे परिवार में 8 सदस्य हैं और हमें हर महीने दो रसोई गैस सिलेंडर की जरूरत होती थी, जिसमें लगभग 1500 रुपए खर्च होते थे और मेरे लिए इस खर्च को उठाना काफी मुश्किल होता था।

लेकिन, 2018 में इनोवेटिव बायोडाइजेस्टर बेचने वाली पुणे की एक कंपनीसिस्टेमा बायोने गाँव में एक शिविर का आयोजन किया और ग्रामीणों को इसके लाभ बताए।

इसके बाद, केदार ने उत्पाद पर यकीन करते हुए, जनवरी 2018 में अपने घर में बायोगैस संयंत्र को स्थापित किया और आज इसका पूरा लाभ उठा रहे हैं।

सक्षम और सुविधाजनक बायोगैस

केदार कहते हैं, “इस बायोगैस संयंत्र के इस्तेमाल की वजह से हर साल मुझे 15,000 रुपये की बचत होती है। मैंने पहले, प्लास्टिक और धातु से बने पारंपरिक बायोगैस संयंत्रों को आजमाया, लेकिन अम्लीय (Acidic) वस्तुओं के कारण उसमें दरार आ जाते हैं।

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इस बायो-डाइजेस्टर गैस, एनारोबिक बैक्टीरिया के डाइजेस्टन प्रक्रिया के तहत उत्पन्न होता है।

केदार कहते हैं कि बायो-डाइजेस्टर ने उन्हें निराश नहीं किया है और यह उम्मीद से कहीं अधिक सक्षम है।

वह कहते हैं, “ठंड के मौसम में भी, यह बायोडाइजेस्टर परिवार के लिए खाना बनाने की जरूरतों के हिसाब से पर्याप्त गैस देता है।

आज केदार की तरह, गुजरात, महाराष्ट्र और कर्नाटक के लगभग 5,000 किसान ऐसे बायोडाइजेस्टर का उपयोग कर रहे हैं।

इस संयंत्र में बायोगैस, एनारोबिक बैक्टीरिया के डाइजेस्टन प्रक्रिया के तहत उत्पन्न होता है। इसमें गाय के गोबर को एक एयरटाइट टैंक या पिट में डाला जाता है और फिर इसमें पानी भरा जाता है। लगभग एक महीने तक प्राकृतिक प्रतिक्रियाओं के फलस्वरूप इसमें मीथेन के साथ सल्फर और अन्य गैसों का निर्माण होता है। फिर, इस गैस का उपयोग रसोई घर में किया जाता है।

इस प्रतिक्रिया के बाद के अवशेषों को गारा कहा जाता है और खेतों में इसका इस्तेमाल उच्च गुणवत्ता वाली खाद के रूप में किया जा सकता है।

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प्रतिक्रिया के बार बचे गारे को किसान खेतों में उर्वरक के रूप में इस्तेमाल करते हैं।

सिस्टेमा बायो कंपनी के मैनेजर पीयूष सोहानी बताते हैं, “ इन बायोडाइजेस्टरों को औद्योगिक जियो-मिम्ब्रेन से बनाया जाता है और इनकी उम्र20 साल तक होती है

पीयूष कहते हैं कि सिस्टेमा बायो, अनारोबिक डाइजेस्टन (अवायवीय अपघटन) तकनीक के साथ-साथ अन्य कृषि सेवाओं के जरिए छोटे किसानों को अपनी उत्पादकता को बढ़ाने में मदद करती है।

वह आगे कहते हैं, “हमारी कोशिश अक्षय ऊर्जा और खेतों की पर्यावरणीय स्थिरता को बेहतर बनाने में मदद करना है।

पीयूष के अनुसार, प्री-फैब्रिकेटेड बायोडाइजेस्टर, किसानों की लकड़ी और जीवाश्म ईंधन पर निर्भरता को कम करते हैं, इस तरह प्रदूषण को नियंत्रित करने में भी मदद मिलती है।

पीयूष कहते हैं, “बायोगैस पर खाना जल्दी बनता है और यह धुआँ रहित भी है। इससे स्वास्थ्य पर काफी सकारात्मक प्रभाव पड़ता है, खासकर महिलाओं और बच्चों के। वहीं, प्रक्रिया के उप-उत्पाद यानी घोल (गारा) से फसल की पैदावार भी बढ़ती है, जिससे किसानों की अधिक आय सुनिश्चित होती है।

वह आगे बताते हैं, “संयंत्र को सुचारु होने में कुछ घंटे लगते हैं। इस प्लांट केरखरखाव की कोई जरूरत नहीं होती है, क्योंकि इसमें घोल को इन-बिल्ट सिस्टम द्वारा बाहर निकाला जाता है। आमतौर पर, घोल को बाहर करने के लिए बाहरी शक्ति का इस्तेमाल किया जाता है, लेकिन इसमें हाथ लगाने की कोई जरूरत नहीं पड़ती है।

पीयूषकहते हैं कि संयंत्र को अलग-अलग जगहों के मौसम के अनुसार बनाया गया है। इस संयंत्र को दो गाय वाले परिवार के लिए स्थापित किया जा सकता है और इसे बड़े डेयरी फार्मों तक बढ़ाया जा सकता है। इसे दूरदराज के गाँवों में भी काफी आसानी से स्थापित किया जा सकता है।

उदाहरण के तौर पर, बायो-डाइजेस्टर एक दिन में 45 किलो से लेकर दो टन गोबर तक प्रोसेस कर सकता है। इसके साथ ही, इस संयंत्र को आसानी से एक स्थान से दूसरे स्थान तक ले जाया जा सकता है।

कमियों को दूर करने के लिए नवाचार

बायो-डाइजेस्टर में कई विशेषताएँ हैं, जैसे - पारंपरिक संयंत्रों के उच्चदबाव के विपरीत, यह कम दबाव पर भी काम करता है। इसके साथ ही, यह लीकप्रूफ भी है।

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बायोगैस स्वच्छ और धुआं रहित ऊर्जा का स्त्रोत है।

बायो-डाइजेस्टर में गैस प्रवाह के लिए एक इंच का पाइप लगा होता है, जिससे कि गैस काफी आसानी से रसोई तक पहुँचती है। पाइप में नमी के कारण चोकिंग या पानी के ठहराव से बचने के लिए ट्रैपिंग पॉइंट लगाए गए हैं, ताकि किसान इसे आसानी से साफ कर सकें।

पीयूष के अनुसार, इसबायो-डाइजेस्टर की कीमत लगभग 40,000 रुपये है। लेकिन, यह लागत डेढ़ महीने में वसूल हो जाती है और अगले 10-15 वर्षों तक इसका निःशुल्क लाभ उठाया जा सकता है।

बड़े पैमाने पर कार्बन उत्सर्जन को करता है कम

पीयूष कहते हैं कि इस संयंत्र से देश के लगभग 5000 परिवारों को सीधे तौर पर लाभ पहुँचा है और इससे पर्यावरण में जहरीली गैसों के उत्सर्जन को नियंत्रित करने में मदद मिली है।पिछले दो साल में सिस्टेमा बायो ग्रामीण क्षेत्रों में 25,000 लोगों तक क्लीन कुकिंग गैस मुहैया करा चुकी है।

पीयूष के अनुसार, “इस पहल से अब तक 60,000 टन कार्बन डाइऑक्साइड को नियंत्रित करने में मदद मिली है। मोटे तौर पर 5 लाख टन अपशिष्टों को संसाधित किया जा चुका है। इस तरह, 72 लाख क्यूबिक मीटर गैस का उत्पादन हुआ है और छह लाख पेड़ों की रक्षा हुई। इसके अलावा, इन संयंत्रों से उत्पन्न जैव-उर्वरकों से 23,450 हेक्टेयर कृषि भूमि कोलाभ मिला है।

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20 वर्ष उम्र होती है इन बायोडाइजेस्टरों की।

सिस्टेमा बायोकंपनी केन्या, मैक्सिको और कोलंबिया में भी संचालित है।

इसे लेकर पीयूष कहते हैं, “पिछले एक दशक से दूसरे देशों में संचालन के दौरान, हमारे प्रयासों से लगभग 30 लाख पेड़ों की रक्षा हुई है। लकड़ी और जीवाश्म जीवाश्म ईंधन के उपयोग को कम करने की वजह से लगभग दो लाख टन कार्बन उत्सर्जन को कम करने में मदद मिली।

कंपनी द्वारा यह गणनाजलवायु परिवर्तन पर संयुक्त राष्ट्र फ्रेमवर्क (UNFCC) द्वारा निर्धारित मानदंडों के अनुसार की गई है।

हमने बायो-डाइजेस्टर सिस्टम को स्थापित करने से पहले घरों में गैस सिलेंडर या जलावन के उपयोग के संबंध में आँकड़े जुटाए और बायोगैस का उत्पादन प्रति घन मीटर किया और इसी गणित के साथ आगे बढ़े,” पीयूष बताते हैं।

पीयूष का अनुमान है कि साल 2040 तक बायोगैस के इस्तेमाल में 40 फीसदी की बढ़ोतरी होगी। इसकी वजह ऊर्जा की बढ़ती जरूरतों के साथ पशुओं की संख्या में वृद्धि, फसल उत्पादन और समान रूप से अपशिष्टों का उत्पादन है और इन मुद्दों को सुलझाने के लिए बायोगैस के इन तरीकों को व्यवहार में लाना काफी कारगर साबित हो सकता है।

भारत में, 550 मिलियन पशु हर दिन लगभग 50 लाख टन गोबर का उत्पादन करते हैं और कंपनी का लक्ष्य इसके जरिए अगले 3 वर्षों में 50,000 परिवारों तक पहुँचने का है।

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