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"पिछली बार हमलोगों ने लगभग 90 लाख पौधों के सैपलिंग सप्लाई किए थे और उनके लिए पॉलिथीन का ही इस्तेमाल हुआ था। हमने तय किया था कि इन सभी पॉलिथीन को पौधारोपण के बाद इकट्ठा करके रीसायकल के लिए दे दिया जाएगा लेकिन यह प्रक्रिया बहुत ही चुनौतीपूर्ण रही। इसके बाद, हमने तय किया कि हमें पौधे उगाने के लिए कोई और विकल्प चुनेंगे।" यह कहना है केरल वन विभाग के एर्नाकुलम में नियुक्त भारतीय वन सेवा की अधिकारी (आईएफएस) मीनाक्षी का।
आईएफएस मीनाक्षी एर्नाकुलम में वन-विभाग के सोशल फॉरेस्टरी विंग में बतौर वन संरक्षक नियुक्त हैं। इस विंग का काम स्कूल, कॉलेज, सामुदायिक जगहों और जंगलों में पौधारोपण करना होता है। पौधे तैयार करने से लेकर उन्हें लगाने और फिर उनकी देखभाल का ज़िम्मा इसी विंग का है।
पिछले साल जब मीनाक्षी यहाँ नियुक्त हुईं तो उन्हें पॉलिथीन को नर्सरी तैयार करने के लिए इस्तेमाल करना पड़ा और बाद में उन्हें काफी परेशानी हुई। ऐसे में, उन्हें लगा कि उन्हें इसका कोई और विकल्प ढूँढना चहिए।
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वह बताती हैं, "सरकार की तरफ से भी पॉलिथीन पर रोक जारी हो चुकी है। ऐसे में नागरिक भी सवाल करते कि अगर वन विभाग ही पॉलिथीन इस्तेमाल कर रहा है तो वो क्यों न करें? हम कोई इको-फ्रेंडली विकल्प अपनाएंगे तभी तो लोगों को प्रेरणा मिलेगी।"
उनकी टीम ने सबसे पहले बांस और नारियल के खोल के गमले इस्तेमाल करने की ठानी। उन्होंने काफी पौधे उनमें लगाए भी। लेकिन फिर कुछ परेशानियों के चलते उन्हें लगा कि वह सिर्फ इन दो विकल्पों पर निर्भर नहीं कर सकते।
उनके मुताबिक, सोशल फॉरेस्ट्री विंग को 80-90 लाख तक पौधे तैयार करने होते हैं। ऐसे में, सबसे पहली चुनौती थी कि कौन इतनी ज्यादा संख्या में बांस के गमले बनाकर उनतक ट्रांसपोर्ट करेगा। फिर दूसरी एक समस्या थी कि इन गमलों को ज्यादा से ज्यादा 2-3 महीने तक ही उपयोग में लिया जा सकता है।
जैसे-जैसे पौधा विकसित होता है, उसकी जड़ें फैलने लगती हैं और साथ ही, नियमित रूप से पानी देने की वजह से बांस और नारियल के खोल के टूटने का भी डर रहता है। हालांकि, उनका डिपार्टमेंट मैनग्रूव के पौधों के लिए बांस के गमलों ही इस्तेमाल कर रहा है। लेकिन इन पौधों को कम समय के लिए गमलों की ज़रूरत होती है और फिर इन्हें वन में लगा दिया जाता है।
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"हमारी समस्या वहीं थीं कि ऐसे प्लांटर/गमले कहाँ से लाए, जिसमें वह खूबियाँ भी हो जिस वजह से पॉलिथीन को अच्छा प्लांटर माना जाता है। पॉलिथीन में पौधों को लम्बे समय तक रखा जा सकता है। ट्रांसपोर्टेशन आसान है और साथ ही यह बहुत कम-लागत में मिल जाती है," उन्होंने आगे कहा।
मीनाक्षी और उनकी टीम की यह तलाश 'कॉयर कंटेनर' यानी की नारियल के सूखे छिलके से बने गमलों पर खत्म हुई। तमिलनाडु के कोयम्बटूर जिले में पोलच्ची के एक एक्सपोर्टर से वन-विभाग के अधिकारियों की मुलाक़ात हुई। उन्हें पता चला कि वह एक्सपोर्टर नारियल के छिलके से उत्पाद बनाकर बेचता है। उससे ही उन्हें जानकारी मिली कि इसका उपयोग पौधों के लिए छोटे-छोटे गमले यानी कि प्लांटर बनाने में भी हो सकता है।
"हमें जब इस बारे में पता चला तो हमें उस एक्सपोर्ट एजेंसी से संपर्क किया। उनसे बात करके उन्हें हमारी ज़रूरत समझाई और उन्होंने उसी हिसाब से हमें नारियल के छिलके से गमले तैयार करके दिए। पहले हमें 14 जिलों में इसका ट्रायल लिया और 5 लाख 'कॉयर कंटेनर्स' में पौधे तैयार किए, जिन्हें अब लगाया जाएगा," आईएफएस मीनाक्षी ने कहा।
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नारियल के छिलकों से बने गमलों की खासियत
1. पानी को सहेजने की क्षमता होती है जिससे कि मिट्टी में नमी बनी रहती है। इससे पौधों को बार-बार पानी नहीं देना पड़ता।
2. जैसा कि हम सब जानते हैं कि नारियल के छिलकों से ही कोकोपीट बनता है, जिसे पौधों के लिए पॉटिंग मिक्स तैयार करते वक़्त मिट्टी के साथ मिलाया जाता है।
3. इसमें 3-4 महीने तक, आराम से पौधों को रखा जा सकता है और जब पौधों को कहीं लगाना हो तो उन्हें इसके साथ ही लगाया जा सकता है।
4. मिट्टी में लगने के बाद यह कॉयर कंटेनर, मिट्टी के लिए पोषण का काम करेगा और मिट्टी को उपजाऊ बनाएगा।
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साथ ही, एक छोटे कंटेनर की कीमत फिलहाल उन्हें 3 रुपये पड़ रही है जो बाकी गमलों की बजाय सस्ता विकल्प है। साथ ही, नारियल केरल में काफी मात्रा में होता है तो वह स्थानीय तौर पर भी यह बनवा सकते हैं। आईएफएस मीनाक्षी बतातीं हैं कि फ़िलहाल, विभाग दूसरे ट्रायल की तैयारी कर रहा है। जिसमें वो देखना चाहते हैं कि क्या ये गमले 6 महीने तक चल सकते हैं।
अगर उनका यह ट्रायल सफल रहा तो आगे चलकर इससे स्थानीय महिला समूहों और ग्रामीण तबकों के लिए रोज़गार के अवसर भी खुल सकते हैं। वन विभाग स्थानीय महिलाओं को नारियल के छिलके से गमले बनाने की स्किल ट्रेनिंग कराकर उन्हें अच्छा रोज़गार दे सकता है। उम्मीद है आईएफएस मीनाक्षी और उनकी टीम की यह पहल पर्यावरण के अनुकूल होने के साथ-साथ स्वरोज़गार के अवसर भी खोलेगी।
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