आईआईटियन का आईडिया: ई-वेस्ट से बना देते हैं नया सोफा, फ्रिज और वॉशिंग मशीन; कई कारीगरों को मिला रोज़गार!

आईआईटी खड़कपुर से पढ़ाई पूरी करने के बाद हर्ष ने बेंगलुरु में नौकरी की शुरुआत की थी!

आईआईटियन का आईडिया: ई-वेस्ट से बना देते हैं नया सोफा, फ्रिज और वॉशिंग मशीन; कई कारीगरों को मिला रोज़गार!

देश में युवा प्रतिभाओं की कमी नहीं है। जहां एक ओर इन प्रतिभाओं को आगे बढ़ाने के लिए सरकार की ओर से सहायता मिल रही है, वहीं दूसरी ओर कुछ युवा ऐसे भी हैं, जो अपने बलबूते पर देश और पर्यावरण को बचाने के लिए कुछ ऐसे कदम उठा रहे हैं, जो हम सबके लिए एक प्रेरणा है।

ऐसे ही एक युवक हैं आईआईटी खड़कपुर से डिग्री हासिल करने वाले हर्षवर्धन रायकवार।  हर्ष ने अपने दो साथी पार्टनर्स अभिमन्यु दीक्षित और प्रतीक अग्रवाल के साथ मिलकर अपने स्टार्टअप 'गैरेंटेड' की नींव रखी, जहाँ वे आसपास फैले ई-वेस्ट को रीसायकल करके उसे नया रूप देते हैं।

गैरेंटेड घर से दूर रहते युवाओं को घर का सामान और होम अप्लायंसेस किराए पर मुहैया करवाती है। मासिक किराए पर गैरेंटेड से मिलने वाला ये सामान ई-वेस्ट को रीसायकल करके बनाया जाता है। आइये जानते हैं कैसे इस आईआईटियन ने ईको-सिस्टम को बेहतर बनाने के लिए एक सराहनीय प्रयास किया है।

आवश्यकता ही आविष्कार की जननी है!

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आईआईटी खड़कपुर से पढ़ाई पूरी करने के बाद हर्ष ने बैंगलोर में नौकरी की शुरुआत की

गैरेंटेड की शुरुआत हुई एक ऐसी असुविधा से, जो खुद हर्षवर्धन को उठानी पड़ी थी। बगैर फर्नीचरवाले घरों में रूममेट्स के साथ रहना उनके लिए काफी चुनैतीपूर्ण साबित हो रहा था। साल 2012 में आईआईटी खड़कपुर से पढ़ाई पूरी करने के बाद उन्होंने बेंगलुरु में नौकरी की शुरुआत की। तीन साल बाद यानी कि 2015 में उन्होंने इस असुविधा को एक सुविधा में बदलने के लिए इस स्टार्टअप की शुरुआत की और इसी के साथ शुरू हुआ गैरेंटेड का सफर।

छोटे से बचत फंड और बिना किसी फायनेंसर के साथ शुरू हुआ ये बिज़नेस आगे चल कर लोगों की सुविधा का दूसरा नाम बन जाएगा, किसने सोचा था! सीमित फंड और ईको-सिस्टम को बेहतर बनाने के ख्याल से हरवर्धन ने ई-वेस्ट को नया रूप देकर बेस्ट क्वालिटी घरेलू सामान बनाने के लिए लोगों को प्रेरित किया और इसके लिए उन्होंने अपनी अच्छी-खासी नौकरी भी छोड़ दी!

पर क्या उन्हें अपने दूसरे आईआईटियन दोस्तों की प्रगति की रफ़्तार देख पछतावा नहीं होता?

इस सवाल के जवाब में हर्ष कहते हैं, "प्रगति करना हर व्यक्ति का सपना होता है, लेकिन साथ ही साथ हमारे वातावरण की बेहतरी का ध्यान रखना भी हमारा कर्तव्य है। इसलिए हमें आगे बढ़ने के साथ-साथ उस सोच की ज़रुरत है, जिससे आप समाज को एक बेहतर कल दे सकें।"

ई-वेस्ट क्या बला है? / क्या होता है ई-वेस्ट?

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खराब हो चुके सामान को नया रूप देना है सच्ची कला

दरअसल ई-वेस्ट डिफेक्टिव चीज़ों को कहा जाता है। किसी भी खराब अप्लायंस का ढांचा, जिसे इस्तेमाल में ना लाया जाए, उसे ई-वेस्ट के तौर पर देखा जाता है। उदाहरण के तौर पर ऑनलाइन शॉपिंग वेबसाइट्स, जहां से सामान खरीदने के बाद वो गैरेंटी पीरियड के दौरान खराब हो जाए, तो उपभोक्ता उसे कंपनी को लौटा देते हैं। इस्तेमाल किया गया ऐसा सामान ई-वेस्ट कहलाता है। अक्सर कंपनियों के पास ऐसे खराब सामान की भरमार होती है।

गैरेंटेड के को-फाउंडर अभिमन्यु दीक्षित कहते हैं, "ई-वेस्ट आनेवाले समय में देश की बड़ी मुसीबत में तब्दील हो जाएगा। साल 2020 तक हम 5 मिलयन टन से भी ज़्यादा ई-वेस्ट उत्पन्न कर रहे होंगे। ऐसे में गैरेंटेड हमारा एक छोटा सा प्रयास है, जिससे हम ई-वेस्ट को बढ़ने से बचा सकेंगे।"

ई-वेस्ट को रीसायकल करने की शुरुआत

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हर्षवर्धन की मानें, तो उन्होंने कम लागत में अपने काम को आगे बढ़ाने के लिए ई-वेस्ट को रीसायकल करने का मन बनाया। ऑनलाइन पर्चेसिंग कंपनियों से उन्होंने ना इस्तेमाल होनेवाले इन अप्लायंसेस को खरीदा और फिर प्रशिक्षित कारीगरों की मदद से उन्हें दोबारा इस्तेमाल करने लायक बनाया।

घर के फर्नीचर से लेकर होम अप्लायंसेस तक, धीरे-धीरे वे सभी चीज़ों को ठीक करके नया रूप देने लगे। ये सामान बेहद कम कीमत पर लोगों को किराए पर दिया जाता है।

हर्ष बताते हैं, "कई बार हम ये सामान फैक्ट्री सेल के ज़रिये लोगों को बेचते भी हैं। जो लोग मार्केट से कम कीमत पर इन सामानों को खरीदना चाहते हैं, वो यहाँ से इन्हें खरीद सकते हैं।"

रोज़गारी के अवसर अब सब के लिए

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देश में प्रतिभा की कमी नहीं है, बस लोगों के लिए अवसरों की कमी है

गैरेंटेड के को-फाउंडर प्रतीक अग्रवाल कहते है, "हमारी कंपनी का महत्वपूर्ण भाग है हमारे मैकेनिक्स। ये देश के कोने-कोने से आए हैं और जैसे वे होम एप्लायंसेस को बेहतर बनाने में अपनी कला का प्रदर्शन करते हैं, वह अविश्वसनीय है।"

गाँव और छोटे शहरों से आए कारीगरों को हर्ष और उनकी टीम खुद प्रशिक्षण देते हैं। असम से लेकर मुंबई से आए इन कारीगरों को एक अच्छी ट्रेनिंग देकर आगे बढ़ने का मौका दिया जाता है। हर्ष के मुताबिक ये लोग भी बड़ी लगन के साथ काम करते हैं और कई बार बेहद खराब और बिगड़े हुए सामान को बिलकुल नया सा बना देते हैं। उनकी मानें तो देश में प्रतिभा की कमी नहीं है, बस लोगों के लिए अवसरों की कमी है।

गैरेंटेड में काम करनेवाले भरत टाओ कहते हैं, "मैं साल 2016 में काम की तलाश में असम से बैंगलोर आया था। मेरे एक मित्र ने मुझे गैरेंटेड के बारे में बताया। मैंने यहां एक हेल्पर के तौर पर काम शुरू किया, लेकिन कुछ ही दिनों में मैंने टीवी रिपेयर का काम सीख लिया। अब मैं सिर्फ इसी के बूते असम में अपने परिवार को बेहतर ज़िन्दगी दे पा रहा हूँ।"

ईको-सिस्टम बेहतर बनाने के लिए नियमों का पालन ज़रूरी

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जिस तरह हमारे देश में इस ई वेस्ट को ख़त्म किया जाता है, वो हमारे वातावरण के लिए बेहद हानिकारक माना जाता है। इस तरह के ई-वेस्ट में कई हानिकारक गैस और विषैले तत्व हवा और पानी में मिल जाते हैं। ऐसे में गैरेंटेड से निकला हुआ ई-वेस्ट सरकार द्वारा जारी की गई एडवाइज़री के अनुसार ही ख़त्म किया जाता है। इसमें आनेवाला खर्च हमारी कंपनी वहन करती है।

यदि देश का हर युवा इन तीन ज़िम्मेदार युवकों की तरह सोचे, तो हो सकता है दिन-प्रतिदिन बढ़ते इस प्रदुषण से हमें राहत मिल सकती है!

यदि आप भी गैरेंटेड के साथ जुड़ना चाहते हैं, तो 096-06104444 इस नंबर पर या support@guarented.com इस ईमेल पर संपर्क कर सकते हैं। साथ ही गैरेंटेड के बारे में अधिक  जानकारी पाने के लिए guarented.com पर विज़िट कर सकते हैं।

संपादन - मानबी कटोच 


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