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क्या कभी ऐसा हुआ है कि किसी दुकान में जाने पर आपके मन में बहुत से सवाल आए, जैसे कि इन प्रोडक्ट्स की असल कीमत क्या है? ये कहाँ से बनकर आ रहे हैं? या फिर इनकी पैकेजिंग पर्यावरण के लिए सुरक्षित है या नहीं?
अगर आपके मन में ये सब सवाल आते हैं, तो यकीनन समाज के सुरक्षित भविष्य के लिए आपने अपना पहला कदम बढ़ा लिया है। और अगर नहीं, तो आप को आज से ही इसकी शुरुआत करनी चाहिए।
यदि आप चेन्नई में रहते हैं, तो आपके पास एक ज़िम्मेदार नागरिक बनने और पर्यावरण के लिए कुछ करने का अवसर है।
सनीबी (SunnyBee), एक ऐसा ही सुपरमार्किट है- जो अपने सभी के लिए मिसाल कायम कर रहा है। इसी के साथ यह संदेश भी दे रहा कि व्यवसाय और बाज़ार में आगे बढ़ने के लिए पर्यावरण की अनदेखी करना ज़रूरी नहीं।
सनीबी के फाउंडर, 24 वर्षीय संजय दसारी को अक्सर देश में फलों और सब्ज़ियों की व्यवस्था देख कर चिंता होती थी। पर इस स्थिति के बारे में दूसरों से शिकायत करने के बजाय, उन्होंने इसे बदलने की सोची। इसी सोच के साथ साल 2016 में बोस्टन के बैबसोन कॉलेज से ग्रेजुएशन करने के मात्र एक महीने बाद, उन्होंने सनीबी नाम से अपना बिज़नेस शुरू किया।
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द बेटर इंडिया से बात करते हुए संजय ने बताया कि उनकी रूचि ऐसा कोई व्यवसाय करने में थी, जो लोगों की ज़रूरत का ख्याल तो रखे ही, साथ ही समाज पर भी उसका सकारात्मक प्रभाव हो। इसलिए उन्होंने जैविक खाद्य पदार्थों की बिक्री, प्लास्टिक पर रोक और खाने की बर्बादी को कम से कम करने पर ध्यान दिया।
तीन साल पुराने इस स्टार्टअप के आज चेन्नई शहर में 12 आउटलेट हैं, जिसमें घरेलू ज़रूरत के सामान जैसे बेकरी प्रोडक्ट्स, जैविक उत्पाद (ऑर्गेनिक प्रोडक्ट्स), डेरी उत्पाद आदि मिलते हैं!
तीन तरह से बदलाव ला रहा है संजय का बिज़नेस:
1) फलों व सब्ज़ियों की खरीद के लिए सीधा किसानों से जुड़ना
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बिज़नस-टू-बिज़नेस मॉडल का पालन करते हुए, संजय व उनकी टीम ने देश भर के 35,000 किसानों से सीधा संपर्क किया, ताकि फलों और सब्जियों के असली दाम में कोई फर्क न आये। गुणवत्ता से कोई समझौता न हो, इसके लिए किसानों से लिए गए सैंपल को नियमित रूप से स्थानीय परीक्षण प्रयोगशाला (testing lab) में भेजा जाता है।
संजय बताते हैं कि ऑर्गेनिक प्रोडक्ट्स के इस युग में, वे क्षेत्रों के हिसाब से फल और सब्ज़ियाँ खरीदकर आपूर्ति करते हैं। उदहारण के लिए, सेब केवल कश्मीर से और प्याज सिर्फ़ महाराष्ट्र से ही खरीदे जाते हैं।
किसानों से सीधा संपर्क स्थापित करने से बिचौलियों के मनमाने भ्रष्टाचार पर रोक लगी है और इस कारण आम किसानों की आय में 25-40% तक की बढ़ोतरी हुई है।
चूँकि, सनीबी सीधा किसानों के संपर्क में है, तो ये अपने ग्राहकों के लिए खेतों पर जाकर दौरे की भी व्यवस्था करवाते हैं। इस प्रकार उन्हें खेती की प्रकिया से अवगत कराने के साथ ही, जागरूकता बढ़ाने में भी मदद मिलती है।
फेसबुक पर उनके लिए एक ग्राहक ने लिखा, “बिचौलियों को हटाकर, किसानों को उनके हिस्से का सही लाभ देने के साथ ही, ग्राहकों को जैविक और विश्वसनीय फल व सब्ज़ियाँ उपलब्ध करवाने वाली यह बहुत ही बढ़िया कंपनी है। खेतों पर दौरे के दौरान, हम किसानों से सीधे बातचीत कर सकते हैं और उनकी परेशानियाँ जानने के साथ ही कमीशन एजेंट के बदले सीधा सनीबी से जुड़ने की उनकी जो ख़ुशी है, उसे भी समझ सकते हैं।"
2) प्लास्टिक की जगह केले के पत्तों का प्रयोग
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प्लास्टिक को पूरी तरह से नष्ट होने में 500 से 1000 वर्ष लगते हैं, और इसीलिए संजय शुरू से ही प्लास्टिक बैग की पैकेजिंग के खिलाफ़ थे। एक समय ऐसा भी था, जब उन्होंने ग्राहकों को प्लास्टिक बैग देना बंद कर दिया था, पर फिर ग्राहकों से इस संदर्भ में नकारात्मक प्रतिक्रिया मिलने के कारण उन्हें इसे वापिस लाना पड़ा।
पर जब तमिलनाडू में प्लास्टिक पर प्रतिबंध लगा, तो संजय को एक मौका मिल गया प्लास्टिक बैग व प्लास्टिक पैकेजिंग से निजात पाने का। हाल ही में, उनके दो आउटलेट्स ने पैकेजिंग के लिए प्लास्टिक बैग की जगह केले के पत्तों का प्रयोग करना शुरू किया है।
इस आईडिया का श्रेय संजय अपने ग्राहकों को देते हैं और कहते हैं, “सोशल मीडिया काफ़ी प्रबल साधन है और इसका एहसास मुझे तब हुआ, जब हमारे ग्राहकों ने हमें कुछ ऐसे उदाहरणों में टैग करना शुरू किया, जिसमें थाईलैंड की एक दूकान में पैकेजिंग के लिए केले के पत्तों का इस्तेमाल किया जा रहा था। यह विचार तो अच्छा था ही, पर यह और भी बेहतरीन इसलिए था, क्योंकि यह ग्राहकों की ओर से आया था, तो इसके असफल होने का डर नहीं था।”
संजय ने ऐसे किसानों से संपर्क किया जो इस योजना में उनकी मदद कर सकते थे।
"जिन पत्तों को किसान फेंक देते थे, उन्हें अलग-अलग आकार के टुकड़ों में काट कर, हम पैकिंग में प्रयोग करने के लिए तैयार करने लगे।"
दिखने में आकर्षक व हल्का होने के अलावा, केले के पत्ते फल व सब्जियों के लिए भी अच्छे होते हैं क्योंकि इनमें नमी बनाये रखते हैं और इससे फल और सब्ज़ियाँ थोड़े ज़्यादा समय तक ताज़ा रहती हैं।
इस पहल की शुरुआत कुछ समय पहले ही हुई है, और उन्हें इस पर दोनों ही तरह की प्रतिक्रिया मिली है। जहाँ कुछ ग्राहक इससे खुश हैं, तो वहीं कुछ अब भी प्लास्टिक बैग की मांग करते हैं।
संजय कहते हैं कि कुछ लोग अपनी सहूलियत के चक्कर में इस अलग-सी पहल को स्वीकार नही करते। इसके लिए अब हम केले के छिलकों को सामान के भार और आकार के अनुकूल बना कर, पैकेजिंग की गुणवत्ता बढ़ाने की कोशिश कर रहे हैं।
3) खाने की बर्बादी को रोकना
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बीबीसी की रिपोर्ट के अनुसार, भारत में करीब 40% ताज़े फल और सब्ज़ियाँ ग्राहकों के पास पहुँचने के पहले ही सड़ जाते हैं। इस तरह की बर्बादी से छोटे किसानों को भारी नुकसान होता है और ग्राहकों को भी ज़्यादा कीमत देनी पड़ती है।
ऐसा कुछ सनीबी में न हो, यह सुनिश्चित करने के लिए संजय और उनकी टीम उनके सारे आउटलेट्स में खाद्य सामग्रियों की सही मांग का हिसाब लगाते हैं।
संजय बताते हैं, “हमारी एक्सपर्ट टीम मांग का सही अनुमान लगा लेती है। यहाँ हमारा मकसद किसानों को यह बताना है कि उन्हें कितनी फसल बोनी है, बजाय इसके कि कितनी फसल काटनी है।”
बहुत ही सावधानी और समझदारी से बनायी गयी ये योजनायें काम कर रही हैं, और खाने की बर्बादी को 40% से घटा कर मात्र 2% कर दिया गया है। संजय कहते हैं कि वैसे तो टीम इस बर्बादी को कम करने से खुश है, पर संतुष्ट नहीं है और वे इस बात का जश्न तब मनायेंगें जब यह बर्बादी बिल्कुल ज़ीरो हो जाएगी।
सनीबी जहाँ अपनी ओर से पर्यावरण के लिए अच्छे बदलाव ला रहा है, तो उपभोगता हो कर यह हमारी भी ज़िम्मेदारी है कि हम इस पहल का समर्थन करें और इन उपायों को अपने जीवन में लागू कर, इस नेक पहल में अपना योगदान दें।
सनीबी से आप यहाँ संपर्क कर सकते हैं!
मूल लेख: गोपी करेलिया
संपादन: निशा डागर