पंजाब-हरियाणा की राजधानी और एक केंद्र शासित प्रदेश, चंडीगढ़, भारत के योजनाबद्ध तरीके से बनाये गये शहरों में से एक है। इस शहर का आर्किटेक्चर, डिजाईन, आवासीय कॉलोनी और तो और शहर में हरियाली का अनुपात भी पूरी प्लानिंग के साथ किया गया है। चंडीगढ़ को फ़्रांस के मशहूर आर्किटेक्ट ली कोर्बुज़िए ने डिजाईन किया था।
इसी शहर से प्रेरणा लेकर, हरियाणा में सोनीपत के रहने वाले देवेंदर सूरा ने पूरे हरियाणा में पर्यावरण के लिए एक अभियान छेड़ दिया है।
चंडीगढ़ पुलिस में कोंसटेबल के पद पर कार्यरत देवेंदर सूरा को लोग 'हरियाणा का ट्री-मैन' कहते हैं!
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"साल 2011 में जब भर्ती के लिए मैं चंडीगढ़ गया, तो यह शहर तो जैसे मेरे मन में ही बस गया। सबसे ज़्यादा मुझे यहाँ की हरियाली ने प्रभावित किया। सड़क के बीच में डिवाइडर पर और तो और रास्तों के दोनों तरफ भी पेड़ इस तरह से लगाये गये हैं कि इनकी छाँव में चलते समय आपको धूप का अंदाजा भी न होगा," देवेंदर ने याद करते हुए बताया।
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वे आगे कहते हैं कि उनमें हमेशा से ही देश के लिए कुछ करने का जज़्बा रहा है। उनके पिता एक रिटायर्ड फौजी हैं और उन्हीं से उन्हें देश और समाज के लिए कुछ करने की प्रेरणा मिली। चंडीगढ़ की हरियाली को देखकर उनके मन में ख्याल आया कि क्यों ना अपने सोनीपत को भी ऐसे ही हरा-भरा बनाया जाये। इस तरह पर्यावरण को संरक्षित कर, वे अपने देश का भी कल्याण करेंगें।
फिर 2012 से, पर्यावरण के लिए इस सिपाही का अभियान शुरू हुआ और देखते ही देखते वे लोगों के लिए 'पर्यावरण मित्र' और 'ट्री-मैन' बन गये!
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गाँव से लेकर शहरों तक हरियाली का संदेश
हरियाली की यह पहल उन्होंने अपने खुद के घर और शहर से शुरू की। गाँव से होने के चलते, उन्हें पेड़-पौधों के बारे में ज्ञान तो था और अपने अभियान के साथ-साथ वे हर रोज़ नया कुछ सीखते भी रहे। जो पहल उन्होंने घर के बाहर एक-दो पेड़ लगाने से शुरू की थी, वह आज हरियाणा से लेकर दिल्ली तक पहुँच चुकी है।
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देवेंदर बताते हैं कि जब उन्होंने यह काम शुरू किया, तब उनका परिवार पूरे मन से उनके साथ नहीं था क्योंकि देवेंदर अपना पूरा वेतन पेड़ों पर ही खर्च कर देते थे। इससे परिवारवालों को दिक्कत थी। लेकिन धीरे-धीरे, जब कई जगहों पर उनके प्रयासों से बदलाव आने लगा और ख़ासकर कि गांवों के युवा उनसे जुड़ने लगे, तो उनके परिवार का भी पूरा साथ उन्हें मिला।
वे अब तक सोनीपत के आस-पास के लगभग 182 गांवों में पेड़ लगवा चुके हैं।
"मैं और अब मेरे कुछ साथी आस-पास के गांवों में जाकर ग्राम पंचायतों से बात करते हैं। फिर चौपाल पर गाँव के लोगों के साथ सभा की जाती है, जिसमें हम उन्हें पर्यावरण का महत्व समझाते हैं और अपने घर, घर के बाहर या फिर खेतों पर पेड़ लगाने के लिए प्रेरित करते हैं। फिर गाँव से ही लगभग 20-30 युवा बच्चों की एक समिति बनाई जाती है और गाँव में पौधारोपण के बाद, इस समिति को पेड़ों की देखभाल की ज़िम्मेदारी सौंपी जाती है," उन्होंने बताया।
जो भी साथी पर्यावरण के लिए उनके साथ जुड़ते हैं, उन्हें 'पर्यावरण मित्र' का संबोधन दिया जाता है। साथ ही, उनका उत्साह बढ़ाने के उन्हें 'पर्यावरण मित्र' लिखी हुई टी-शर्ट दी जाती है।
इस तरह से, अब तक उनके साथ 8, 000 से भी ज़्यादा पर्यावरण मित्र जुड़े हुए हैं और अपने-अपने इलाकों में काम कर रहे हैं।
समय-समय पर देवेंदर और उनके कुछ साथी, इन सभी गांवों में पेड़ों की स्थिति पर जानकारी भी लेते रहते हैं।
उन्होंने अब तक 1, 54, 000 पेड़ लगवाए हैं और लगभग 2, 72, 000 पेड़ स्कूल, शादी समारोह, रेलवे स्टेशन, मंदिर आदि में जा-जाकर बांटे हैं। इनमें पीपल, जामुन, अर्जुन, आंवला, नीम, आम, अमरुद, हरसिंगार जैसे पेड़ शामिल हैं।
लोगों में हरियाली के प्रति जागरूकता लाने के लिए उन्होंने कई तरह के अलग-अलग प्रयास किये हैं और वे सभी सफल रहे हैं। उन्होंने लोगों को अपने जन्मदिन पर खुद के नाम से पेड़-पौधे लगाने का संदेश दिया है। क्योंकि हर साल आपका जन्मदिन आता है और अगर आप हर साल अपने जन्मदिन पर एक पेड़ भी लगाते हैं और उसकी देखभाल करते हैं, तब भी आप पर्यावरण के लिए बहुत-कुछ कर पायेंगें।
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पिछले सात सालों में पेड़ लगाने के लिए देवेंदर लगभग 30-40 लाख रूपये खर्च कर चुके हैं। शुरूआत में वे हरियाणा में ही निजी नर्सरी से पेड़-पौधे खरीदते थे, फिर उन्होंने उत्तर-प्रदेश से पेड़ लाना शुरू किया। पर जब उनका अभियान बढ़ने लगा तो उन्हें महसूस हुआ कि उन्हें खुद की नर्सरी शुरू करनी चाहिए, जहाँ वे खुद पेड़ तैयार करें। "मैंने दो एकड़ ज़मीन लीज़ पर ली हुई है और वहीं पर अपनी नर्सरी शुरू की। इस नर्सरी से कोई भी बिना किसी पैसे के पेड़ ले जा सकता है। इतना ही नहीं अब लोग मुझसे यहाँ पेड़ कैसे तैयार करते हैं, यह भी सीखने आते हैं," देवेंदर ने कहा।
उनकी नर्सरी में छायादार, फलदार पेड़ों के अलावा औषधीय पेड़-पौधे भी आपको मिलेंगें। यहाँ से हर रोज़ लोग पेड़ लेकर जाते हैं और आस-पास के गांवों में पेड़ पहुंचाने के लिए देवेंदर ने एक बैलगाड़ी ले रखी है।
देवेंदर कहते हैं कि हर एक इंसान को अपने घर में हरड, शहजन, तुलसी, श्यामा तुलसी आदि जैसे औषधीय पौधे ज़रूर लगाने चाहिए। आप किसी भी स्पेशलिस्ट या फिर डॉक्टर से पूछिये, ये सभी पेड़ किसी न किसी रूप में बहुत सी बीमारियों के लिए कारगर होते हैं।
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नर्सरी शुरू करने के साथ ही, देवेंदर ने हरियाली और स्वच्छता के संदर्भ से बीधल गाँव को गोद लिया। यहाँ उन्होंने ग्राम पंचायत और अन्य लोगों के साथ मिलकर 8, 000 से भी ज़्यादा पेड़ लगवाए हैं।
साइकिल के इस्तेमाल पर जोर
पर्यावरण के हित के लिए पेड़ लगाने के साथ-साथ वे और भी बहुत-सी इको-फ्रेंडली बातों पर जोर देते हैं। उनके घर में आज तक भी एसी नहीं है और साथ ही, वे आस-पास की जगहों तक जाने के लिए साइकिल का इस्तेमाल करते हैं और यदि उन्हें कहीं दूर जाना हो तो पब्लिक ट्रांसपोर्ट का।
"मेरे एक रिश्तेदार नीदरलैंड में रहते हैं और उनसे मुझे पता चला कि वहां आपको सड़कों पर गाड़ियाँ, बाइक आदि बहुत ही कम मिलेंगी क्योंकि वहां पर लोग साइकिल का इस्तेमाल करना ज़्यादा पसंद करते हैं। इससे आपकी कसरत भी हो जाती है और साथ ही, पर्यावरण को प्रदुषण से भी बचा सकते हैं। तब से मैं भी साइकिल पर ही आता-जाता हूँ। मैं तो और भी लोगों को साइकिल चलाने के लिए प्रेरित करता हूँ, खासकर कि स्कूल में बच्चों को।"
आज उनके प्रयासों से स्कूल और कॉलेज के लगभग 600 बच्चे बाइक का इस्तेमाल छोड़कर साइकिल से आते-जाते हैं। यह भी अपने आप में एक बड़ी उपलब्धि है क्योंकि जिस तरह से शहरों में प्रदुषण का स्तर बढ़ रहा है, उसे नियंत्रित करने के लिए हमें अपनी लाइफस्टाइल में ही बदलाव करने होंगें।
पक्षी-विहार बनाने के प्रयास
देवेंदर का एक उद्देश्य शहर में 65 पक्षी-विहार बनाने का भी है। जहाँ पर पक्षियों के लिए दाने-पानी की पूरी व्यवस्था हो। इसके लिए उन्होंने शहर भर में 8, 000 मिट्टी के कसोरे (बर्तन) और लगभग 10, 000 लकड़ी के घोंसले बांटे हैं।
उनका संदेश है कि हर एक घर के बाहर पक्षियों के विश्राम के लिए घोंसले होने चाहिए और साथ ही, लोग अपनी छतों पर मिट्टी के बर्तनों में उनके लिए पानी भरकर रखें।
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सोनीपत के सेक्टर 23 को उन्होंने 'ग्रीन सेक्टर' बनाने की ठानी है। यहाँ पर उन्होंने मुख्य सड़क पर लोगों को पेड़ लगाने के लिए प्रेरित किया। उनके प्रयासों से लगभग 100 पेड़ यहाँ के निवासियों ने लगाये। ये सभी पेड़ लोगों ने अपनी बेटियों के नाम पर लगाये हैं और हर एक पेड़ पर किसी न किसी बच्ची का नाम आपको लिखा मिलेगा। इस पहल का उद्देश्य न सिर्फ़ बेटियों को समाज में बराबरी का सम्मान देना था, बल्कि वे चाहते थे कि ये सभी लोग अपने-अपने पेड़ों की देखभाल भी करें जैसे कि वे अपने बच्चों की करते हैं।
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देवेंदर का यह अभियान बहुत सफल रहा और अब उन्हें लोग अलग से फ़ोन करके अपने यहाँ पौधारोपण कार्यक्रमों के लिए बुलाते हैं। दूसरे देशों में रहने वाले भारतीयों से भी उन्हें काफ़ी सराहना प्राप्त हुई है।
पुलिस विभाग का पूरा सहयोग
"मेरे काम में मेरे डिपार्टमेंट ने मुझे पूरा सहयोग दिया है। कई बार उन्होंने मेरे साथ मिलकर पौधारोपण भी किया है और चंडीगढ़ पुलिस ने मुझे सम्मानित भी किया है। डीजीपी संजय बेनीवाल का बहुत साथ है। मेरे इस काम को देखते हुए मुझे ड्यूटी भी इसी तरह दी जाती है ताकि मेरे अभियान पर कोई असर न पड़े," उन्होंने बताया।
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मानसून के मौसम में सबसे ज़्यादा पेड़ लगते हैं इसलिए कम से कम दो महीने के लिए वे छुट्टी ले लेते हैं। इन दो महीनों में अलग-अलग इलाकों में जाकर वे वृक्षारोपण करवाते हैं। घरों में ही सब्ज़ियाँ उगाने से लेकर खेतों पर, सडकों पर छायादार पेड़ लगाने तक, उनकी पहल रंग ला रही है।
देवेंदर कहते हैं कि वे ताउम्र यही काम करना चाहते हैं। उन्हें कभी भी रुकना नहीं है, बल्कि उनका लक्ष्य हर एक गाँव-शहर को हरा-भरा बनाना है, जहाँ हर एक घर में पेड़ हो और साथ ही, लोग कम से कम गाड़ियों का इस्तेमाल करें। उनका उद्देश्य लोगों को प्रकृति को ध्यान में रखते हुए अपनी लाइफस्टाइल रखने के लिए प्रेरित करना है।
ट्री-मैन देवेंदर सूरा से जुड़ने के लिए उन्हें 9253262999 पर संपर्क करें!