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दिन भर करते हैं नौकरी, शाम को अपनी कमाई के एक हिस्से से चलाते हैं ‘एक रुपया क्लिनिक'

संबलपुर, ओडिशा के 38 वर्षीय डॉ. शंकर रामचंदानी ने ‘एक रुपया क्लिनिक' की शुरुआत की है, जहां वह गरीब और जरूरतमंदों का इलाज मात्र एक रूपये में करते हैं।

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दिन भर करते हैं नौकरी, शाम को अपनी कमाई के एक हिस्से से चलाते हैं ‘एक रुपया क्लिनिक'

रोटी, कपड़ा और मकान के साथ ही, शिक्षा तथा स्वास्थ्य भी हर एक नागरिक का मूलभूत अधिकार होना चाहिए। शिक्षा के क्षेत्र में आज बहुत से लोग काम कर रहे हैं लेकिन, बात जब स्वास्थ्य की आती है, तो कई तरह के सवाल उठते हैं। साल 2019 में प्रकाशित, प्रेस इन्फॉर्मेशन ब्यूरो (PIB), भारत सरकार की एक प्रेस विज्ञप्ति (नेशनल मेडिकल कमीशन बिल) के मुताबिक, देश में प्रत्येक 1456 लोगों पर मात्र एक डॉक्टर है। जबकि, विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) के तय मानकों के अनुसार, प्रति एक हजार व्यक्तियों पर एक डॉक्टर होना चाहिए। 

देश में ज्यादातर डॉक्टर प्राइवेट सेक्टर में काम करते हैं। यहां सवाल उठता है कि देश के गरीब और आर्थिक रूप से मजबूर नागरिकों को, क्या अच्छी चिकित्सा सेवाओं का अधिकार नहीं है? यकीनन, ये आंकड़े चिंता का विषय हैं और हमें इस बारे में गंभीरता से सोचना चाहिए। इस बीच कुछ ऐसे डॉक्टर भी हैं, जो उम्मीद की किरण बनकर उभर रहे हैं। आज हम आपको ऐसे ही एक डॉक्टर से मिलवा रहे हैं - ओडिशा में संबलपुर जिले के डॉ. शंकर रामचंदानी। 

बुर्ला स्थित वीर सुरेंद्र साईं इंस्टिट्यूट ऑफ़ मेडिकल साइंस (VIMSAR) में बतौर असिस्टेंट प्रोफेसर कार्यरत, डॉ. रामचंदानी ने हाल ही में, ‘एक रुपया क्लिनिक’ की शुरुआत की है। इस क्लिनिक पर वह गरीब और जरूरतमंद लोगों का इलाज सिर्फ एक रुपये में करते हैं।

द बेटर इंडिया से बात करते हुए डॉ. रामचंदानी ने बताया, “यह मेरे माता-पिता का सपना था कि उनके बच्चे समाज के लिए कुछ करें। मेरे पिताजी एक किराने की दुकान चलाते थे। जैसे-तैसे करके, उन्होंने हम सभी बहन-भाइयों को पढ़ाया-लिखाया। उनकी इच्छा थी कि मैं डॉक्टर बनने के बाद, गरीबों के लिए कुछ करूँ।”

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Dr. Shankar Ramchandani treating patients

डॉ. रामचंदानी के दादा विभाजन के समय, भारत आये थे। यहां उन्होंने दिन-रात मेहनत करके अपने परिवार को फिर से बसाया। डॉ. रामचंदानी कहते हैं कि उनके पिता ने भी बचपन से ही संघर्ष किया था। इसलिए, उन्होंने हमेशा अपने बच्चों को, लोगों की मदद करने की शिक्षा दी। उन्होंने आगे बताया, “पिताजी चाहते थे कि हम गरीबों के लिए मुफ्त नर्सिंग होम शुरू करें। लेकिन आज के जमाने में मुफ्त नर्सिंग होम चलाना बहुत मुश्किल है। इसके लिए आपको बहुत साधनों और पैसों की जरूरत होती है। इसलिए मैंने ‘एक रुपया क्लिनिक' खोलने का फैसला किया।” 

वह कहते हैं कि कुछ न करने से बेहतर है कि छोटे स्तर का ही सही, लेकिन कुछ किया जाए। वह सुबह से शाम तक कॉलेज में अपनी नौकरी करते हैं और इसके बाद, क्लिनिक पर पहुँच जाते हैं। यहां वह हर दिन 30-35 मरीजों को देख रहे हैं। बुखार, हाइपरटेंशन, डायबिटीज जैसी हर तरह की बीमारियों से परेशान लोग उनके पास इलाज करवाने के लिए आते हैं।

वह बताते हैं, “यह दुःख की बात है कि मरीज ऐसी बीमारियों से भी मर रहे हैं, जिनका इलाज संभव है। इसकी सिर्फ एक वजह है, किफायती स्वास्थ्य सेवाओं की कमी। इसलिए, इस क्लिनिक की वजह से अब हम, कम से कम कुछ लोगों को तो वक्त पर सही इलाज दे पाएंगे।”

डॉ. रामचंदानी मरीजों के मेडिकल टेस्ट और इलाज के बदले, उनसे सिर्फ एक रुपया लेते हैं। अगर कोई मरीज इस हालत में भी नहीं है कि वह दवाइयां खरीद सकें तो वह खुद, उन्हें दवाई भी खरीद कर देते हैं।

एक रुपया लेने के पीछे की वजह के बारे में वह कहते हैं, “मैं एक रुपया इसलिए ले रहा हूँ क्योंकि, मैं नहीं चाहता कि लोगों को ऐसा लगे कि उन्हें कुछ मुफ्त मिल रहा है। वह मुझे मेरे काम की फीस दे रहे हैं। इसलिए, उन्हें पूरा हक है कि उन्हें अच्छे से अच्छा इलाज मिले। मैं उनसे फीस ले रहा हूँ तो यह मेरी ज़िम्मेदारी है कि मैं उनका सही इलाज करूँ। अब फीस कितनी है, इससे क्या फर्क पड़ता है।”

हालांकि, यह पहली बार नहीं है, जब डॉ. रामचंदानी लोगों के लिए कुछ कर रहे हैं। जबसे वह मेडिकल क्षेत्र में आये हैं तब से ही, वह समाज के लिए लगातार काम कर रहे हैं। VIMSAR में उन्होंने बतौर ‘सीनियर रेजिडेंट डॉक्टर' ज्वाइन किया था और उस समय नियमों के हिसाब से, वह अपना क्लिनिक नहीं खोल सकते थे। लेकिन जब वह असिस्टेंट प्रोफेसर के पद पर आ गए तो उन्होंने एक जगह को किराये पर लेकर, अपना क्लिनिक शुरू किया। क्लिनिक शुरू करने से पहले भी, वह गरीब लोगों को इलाज के लिए आर्थिक मदद करते थे। 

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He is helping leprosy patients as well

पिछले एक साल से, वह कुष्ठ रोग से ग्रस्त मरीजों की भी देखभाल कर रहे हैं। बुर्ला के एक सामाजिक कार्यकर्ता, प्रसन्ना कुमार साहू उनके इस काम के बारे में बताते हैं, “डॉ. रामचंदानी की मदद से बहुत से कुष्ठ रोगियों को अच्छे अस्पतालों में इलाज मिला है। वह कुष्ठ रोग के बारे में, लोगों में जागरूकता भी फैला रहे हैं। इस बीमारी को समाज ने छुआछूत बनाया हुआ है और इस वजह से मरीजों को सही इलाज नहीं मिल पाता है। जिससे उनकी हालत बिगड़ जाती है। लेकिन, डॉ. रामचंदानी जैसे कुछ डॉक्टर इस तस्वीर को बदलने में जुटे हैं।” 

उनकी मदद से इलाज पा रही एक महिला मरीज बताती हैं, “हमारे पास इतने भी साधन नहीं थे कि हम, अपने घावों के लिए पट्टी, रुई या दवाइयां ले सकें। लेकिन डॉक्टर साहब की मदद से हमें, अब सब वक्त पर मिलता है। हमारे बच्चों की पढ़ाई-लिखाई के लिए भी उन्होंने मदद की है।”

फंडिंग (धनापूर्ति) के बारे में डॉ. रामचंदानी कहते हैं, “फिलहाल, मैं अपनी कमाई का एक हिस्सा इस काम के लिए लगा रहा हूँ। साथ ही, मेरा पूरा परिवार भी मेरा सहयोग करता है। दुनिया में कुछ बहुत अच्छे लोग भी हैं, जिन्हें इस क्लिनिक के बारे में पता चला तो उन्होंने आर्थिक मदद की पेशकश की। लेकिन अभी यह काम, मैं अपने पैसों से चला सकता हूँ। अगर कभी, किसी मरीज को अपने इलाज के लिए पैसों की ज्यादा जरूरत हुई, तो मैं मदद के इच्छुक इन सज्जन लोगों को, उनसे जरूर जोड़ूंगा। मेरे लिए लोगों का स्वास्थ्य सबसे ज्यादा जरूरी है।”

डॉ. रामचंदानी को उनके इस काम के लिए हर तरफ से सराहना मिल रही है। लेकिन उनका कहना है कि यह सिर्फ शुरुआत है। उन्हें एक लम्बा सफर तय करना है। वह बस यही चाहते हैं कि उनका यह काम ज्यादा से ज्यादा लोगों तक पहुंचे।

संपादन – प्रीति महावर

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