चार बच्चों की माँ, 57 वर्षीय छायारानी साहू कहती हैं, "सैकड़ों लोग हर रोज अपनी जान गंवा रहे हैं मैं अपने काम से लोगों की मदद कर सकती हूं। मौत का डर मुझे परेशान नहीं करता है।” #CoronaWarriors #Respect
मुंबई की उद्यमी कहती है, “मेरा अंतिम लक्ष्य छोटे पैमाने के किसान समुदायों को सशक्त बनाना है। मैं उन्हें आत्मनिर्भर बनाने में मदद करना चाहती हूं।'' #FarmersFirst #WomenEntrepreneurs
अनुया के इस काम कि शुरूआत एक आंगनवाड़ी में टायर से बना झूला देने से हुई थी और आज वह बच्चों के पूरे प्ले स्टेशन पुराने टायर्स और अन्य बेकार की चीजों से बना रही हैं!
66 वर्षीया रीटा, प्लास्टिक की थैलियों से खूबसूरत बैग, चटाई और बास्केट जैसी चीजें बना रही हैं। इन सभी उत्पादों को वह अपनी सोसाइटी में काम करने वाले स्टाफ को बाँट देती हैं!
'मिट्टी कैफ़े' की सबसे पहली स्टाफ कीर्ति ने जॉब के पहले दिन ही ग्राहक को चाय सर्व करने से पहले दो बार कप गिराया था। लेकिन आज कीर्ति यहाँ पर 4-5 स्टाफ को मैनेज करती हैं!
भारत में स्त्रियों की शिक्षा के दरवाजे सावित्रीबाई ने रखी थी। लेकिन कम ही लोग जानते हैं कि उन्होंने और उनके बेटे ने 1896-97 में बंबई और पूना में बुबोनिक प्लेग महामारी से पीड़ित लोगों की सेवा करते हुए अपने प्राणों की आहुति दी थी!
2012 में, ‘गो ग्रीन विद टेट्रा पैक’ के तहत ‘कार्टन ले आओ, क्लासरूम बनाओ’ अभियान शुरू किया गया था। इस अभियान के तहत, बेकार टेट्रा पैक को रीसायकल कर बेंच बनाया गया और ये बेंच सरकारी स्कूलों को दान दिए गए।
"फ़ास्ट फ़ूड के जमाने में मैं लोगों को 'स्लो फ़ूड सेंटर' का विकल्प दे रही हूँ। जहां रुककर वे अपनी संस्कृति, अपने समुदायों और अपनी जड़ों के बारे में सोच-समझ सकते हैं। हमारी आने वाली पीढ़ी को अपनी संस्कृति पर गर्व होना चाहिए।"