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प्रेरक महिलाएं

ओडिशा की यह महिला किसान 15 गांवों में जरूरतमंदों को मुफ्त वितरित कर रही है सब्जियां!

By पूजा दास

चार बच्चों की माँ, 57 वर्षीय छायारानी साहू कहती हैं, "सैकड़ों लोग हर रोज अपनी जान गंवा रहे हैं मैं अपने काम से लोगों की मदद कर सकती हूं। मौत का डर मुझे परेशान नहीं करता है।” #CoronaWarriors #Respect

मुंबई: 10,000 किसानों के 300 से ज्यादा जैविक उत्पाद सीधे बाज़ार तक पहुंचा रही है यह युवती

By पूजा दास

मुंबई की उद्यमी कहती है, “मेरा अंतिम लक्ष्य छोटे पैमाने के किसान समुदायों को सशक्त बनाना है। मैं उन्हें आत्मनिर्भर बनाने में मदद करना चाहती हूं।'' #FarmersFirst #WomenEntrepreneurs

कैंटीन से लेकर चप्पल और मसाला फैक्ट्री तक संभाल रही हैं इन गांवों की महिलाएं!

By निशा डागर

कोरोना लॉकडाउन में प्रशासन ने गरीब परिवारों को जो राशन किट वितरित किया, उन्हें इन महिलाओं के गृह उद्योग द्वारा ही तैयार किया गया था!

एक गृहिणी ने टमाटर लगाने से की थी शुरुआत, अब पूरे गाँव की महिलाओं को बना दिया जैविक किसान

महज 10 सदस्यों से शुरु हुए इस समूह में अब 50 महिलाएं शामिल हो चुकी हैं जो सब्जियों, फलों और यहां तक ​​कि धान की खेती करती हैं।

पुराने टायर्स से बना रही हैं गरीब बच्चों के लिए प्ले स्टेशन, 20 स्कूलों में किया प्रोजेक्ट

By निशा डागर

अनुया के इस काम कि शुरूआत एक आंगनवाड़ी में टायर से बना झूला देने से हुई थी और आज वह बच्चों के पूरे प्ले स्टेशन पुराने टायर्स और अन्य बेकार की चीजों से बना रही हैं!

इस गृहिणी का उद्देश्य है ‘जो प्लास्टिक घर आए, वह कुछ बनकर बाहर जाए’!

By निशा डागर

66 वर्षीया रीटा, प्लास्टिक की थैलियों से खूबसूरत बैग, चटाई और बास्केट जैसी चीजें बना रही हैं। इन सभी उत्पादों को वह अपनी सोसाइटी में काम करने वाले स्टाफ को बाँट देती हैं!

मिट्टी कैफ़े: खाने के ज़रिए 120 दिव्यांगों की ज़िंदगी बदल रही है यह युवती!

By निशा डागर

'मिट्टी कैफ़े' की सबसे पहली स्टाफ कीर्ति ने जॉब के पहले दिन ही ग्राहक को चाय सर्व करने से पहले दो बार कप गिराया था। लेकिन आज कीर्ति यहाँ पर 4-5 स्टाफ को मैनेज करती हैं!

जब सावित्रीबाई फुले व उनके बेटे ने प्लेग रोगियों की सेवा करते हुए अपनी जान गंवाई!

भारत में स्त्रियों की शिक्षा के दरवाजे सावित्रीबाई ने रखी थी। लेकिन कम ही लोग जानते हैं कि उन्होंने और उनके बेटे ने 1896-97 में बंबई और पूना में बुबोनिक प्लेग महामारी से पीड़ित लोगों की सेवा करते हुए अपने प्राणों की आहुति दी थी!

कार्टन से स्कूल डेस्क बना रही हैं मुंबई की मोनिशा, हर साल 750 टन कचरा होता है रीसायकल!

By पूजा दास

2012 में, ‘गो ग्रीन विद टेट्रा पैक’ के तहत ‘कार्टन ले आओ, क्लासरूम बनाओ’ अभियान शुरू किया गया था। इस अभियान के तहत, बेकार टेट्रा पैक को रीसायकल कर बेंच बनाया गया और ये बेंच सरकारी स्कूलों को दान दिए गए।

'चावल की चाय' से 'रागी के मोमोज़' तक, झारखंडी खाने को सहेज रही हैं यह महिला!

By निशा डागर

"फ़ास्ट फ़ूड के जमाने में मैं लोगों को 'स्लो फ़ूड सेंटर' का विकल्प दे रही हूँ। जहां रुककर वे अपनी संस्कृति, अपने समुदायों और अपनी जड़ों के बारे में सोच-समझ सकते हैं। हमारी आने वाली पीढ़ी को अपनी संस्कृति पर गर्व होना चाहिए।"