‘सबके खिलाफ जाकर मेरे पिता ने सिर्फ मेरी पढ़ाई के बारे में सोचा’–प्राची ठाकुर, TEDx स्पीकर

TEDx Speaker Prachi Thakur with her father

प्राची ठाकुर, बिहार के एक गांव में पली-बढ़ीं, जहां लड़कियों की शादी अक्सर 10वीं कक्षा के तुरंत बाद कर दी जाती है। लेकिन जब गांव में रहनेवाले कई लोग अपनी-अपनी बेटियों की शादी के लिए दहेज़ इकट्ठा कर रहे थे, तब प्राची के पिता ने अपनी कमाई का सारा पैसा बेटी की शिक्षा पर खर्च किया।

प्राची ठाकुर, बिहार के एक गांव में पली-बढ़ीं, जहां लड़कियों की शादी अक्सर 10वीं कक्षा के तुरंत बाद कर दी जाती है। लेकिन जब गांव में रहनेवाले कई लोग अपनी-अपनी बेटियों की शादी के लिए दहेज़ इकट्ठा कर रहे थे, तब प्राची के पिता ने अपनी कमाई का सारा पैसा बेटी की शिक्षा पर खर्च किया। आज वह ‘वर्ल्ड वुमन टूरिज्म’ में स्ट्रैटजिस्ट और एक TEDx स्पीकर हैं।

हाल ही में, प्राची ने एक लिंक्डइन पोस्ट शेयर किया है, जिसमें उन्होंने बताया कि कैसे एक समय में उन्हें अपने पिता के काम को लेकर शर्मिंदगी होती थी और अब वह उन्हें कितना महत्व देती हैं। प्राची ने अपने पोस्ट में लिखा है, “उन्होंने सड़क के किनारे एक छोटी सी दुकान पर लोगों के गैस स्टोव और कुकर ठीक करने का काम किया। हम बिहार के एक छोटे से कस्बे सुपौल में रहते थे। हमारे पास एक कच्चा घर था और बाहर एक मिट्टी का आंगन था। खाने में हमें अक्सर एक ही चीज़ मिलती थी – रोटी, प्याज और अचार।”

जब प्राची ठाकुर से अपने परिवार के बारे में लिखने के लिए कहा गया, तो उन्होंने बस इतना ही लिखा, “बाउजी एक बिजनेसमैन हैं और अम्मा एक दर्जी का काम करती हैं।” उनके साथ पढ़ने वाले साथी अक्सर उन्हें तंग किया करते थे और वह रोते हुए घर भाग जाती थीं।

लेकिन जब वह मासूमियत से अपने पिता से पूछतीं कि वह दूसरों की तरह एक ऑफिस में काम क्यों नहीं कर सकते, तो वह बेटी के आँसू पोंछते और कहते, “जीवन में पैसा ही सब कुछ नहीं है।”

“मेरे पास वह चीज़ थी, जो तब किसी और के पास नहीं थी”

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प्राची ठाकुर अपने पोस्ट में लिखती हैं कि उस समय, उन्हें अपने पिता के शब्दों की कीमत का एहसास नहीं था। आखिरकार, उन्होंने पटना से ग्रेजुएशन की पढ़ाई पूरी की और पोस्ट ग्रेजुएशन के लिए पांडिचेरी विश्वविद्यालय में एडमिशन लिया। लेकिन उन्हें इस बात का अंदाज़ा था कि उन्हें अपने शहर से इतनी दूर पढ़ने भेजने के लिए उनके पिता ने अपने रिश्तेदारों के सामने कैसे उनका बचाव किया।

रिश्तेदार अक्सर उनसे बेटी की शादी कर देने का दबाव बनाते थे। वे कहते थे कि पढ़ाई पर पैसे बर्बाद करने से अच्छा है कि उसकी शादी कर दी जाए। लेकिन प्राची के पिता अपनी बेटी के सपनों के साथ हमेशा खड़े रहे।

प्राची ठाकुर आगे लिखती हैं, “जब मेरे क्षेत्र की लड़कियां कुकिंग क्लास में जाती थीं, तब मेरे पिता हमारे लिए खाना बनाते थे। तब मुझे एहसास हुआ कि मेरे पास कुछ ऐसा था, जो औरों के पास नहीं था – एक पिता जो मेरे सपनों की परवाह करते थे। उन्हें देखने के मेरे नज़रिए में बदलाव हुआ। मुझे उनकी बेटी होने पर गर्व महसूस हुआ! मैंने गर्व के साथ अपनी पुरानी यूनिफॉर्म पहनना शुरू कर दिया और खुशी-खुशी अपनी फटी किताबों का इस्तेमाल किया।”

पिता ने सिखाया पब्लिक स्पीकिंग का गुण

जब प्राची ठाकुर पोस्ट ग्रेजुएशन की पढ़ाई करने अपने शहर से दूर आईं, तो गाँव के लोगों ने अफवाह फैला दी कि वह गर्भवती हो गई है और किसी के साथ भाग गई है। लेकिन उनके पिता, इन बातों पर ध्यान नहीं देते थे और इसे हंसी में उड़ाते थे। इससे उन्हें काफी आत्मविश्वास मिलता था।

वह प्राची को उनके गांव में स्थानीय कार्यक्रमों को होस्ट करने के लिए ले जाते थे और जब वह घबरा जाती थी, तो वह उन्हें यह कह कर हौसला देते थे कि बस यह मान लो कि सामने बैठे लोग नहीं, बल्कि सिर्फ आलू की बोरियां हैं। प्राची ने लिखा, “विश्वविद्यालयों में गेस्ट लेक्चर देने से लेकर TEDx में अपने जीवन के सफर को साझा करने तक, ‘आलू की बोरी’ ने मेरे लिए बहुत काम किया है।”

“पानवाले की बेटी होने पर शर्म आती थी”- प्राची ठाकुर

मास्टर्स की पढ़ाई पूरी करने के बाद प्राची ठाकुर ने पीएचडी की और उन सभी के सामने अपना और अपने पिता का सिर ऊंचा रखा, जो उनका मजाक उड़ाते थे। जिस लड़की को कभी गैस स्टोव ठीक करनेवाले की बेटी होने पर शर्म आती थी, वह आज दुनिया को उनके कदमों लाकर रखने के लिए तैयार है।

उनके इस लिंक्डइन पोस्ट को 3,000 से ज्यादा कमेंट मिले हैं। एक सॉफ्टवेयर इंजीनियर अश्विनी महाजन ने लिखा, “मेरे पिता की एक टेलरिंग (सिलाई) दुकान थी। मुझे इससे शर्म आती थी। मेरे पिता इतने पढ़े-लिखे नहीं थे, लेकिन उन्होंने मुझे हमेशा पढ़ाई के लिए प्रेरित किया। भले ही पैसों की कमी थी, लेकिन उन्होंने मुझे मुंबई के सबसे अच्छे स्कूल में पढ़ाया। लोग सोचते हैं कि लड़कियों को पढ़ाना पैसे की बर्बादी है, जबकि मेरे पिता ने अपनी कमाई का अधिकांश हिस्सा मेरी शिक्षा पर खर्च किया। अपने पिता के बारे में लिखने के लिए धन्यवाद।”

मूल लेखः अनाघा आर मनोज

संपादनः अर्चना दुबे

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