उत्तर प्रदेश में वाराणसी जिले के नारायणपुर गाँव के कुछ सदस्यों ने कॉर्पोरेट की नौकरी छोड़कर, मोती की खेती यानी मोती पालन की शुरुआत की है। आज उनकी वजह से, गाँव के अन्य किसान भी धीरे-धीरे पारंपरिक खेती से हटकर, मोती पालन की ओर बढ़ रहे हैं। यह सब 2018 में शुरू हुआ, जब श्वेतांक पाठक ने एक पर्ल फार्म की शुरुआत की थी। इस फार्म के अंतर्गत, अब तक 180 से ज्यादा लोगों को मोती पालन की ट्रेनिंग (Pearl Farming Training) दी गई है।
धीरे-धीरे, श्वेतांक पाठक के भाई, रोहित आनंद पाठक, मोहित आनंद पाठक और उनके चाचा, जलज जीवन पाठक भी अपनी-अपनी नौकरी छोड़कर, उनके इस काम से जुड़ गए। आज, पाठक परिवार न केवल मोती पालन करता है, बल्कि गाँव वालों को मोती पालन की ट्रेनिंग (Pearl Farming Training) भी देता है। साथ ही, ये सभी कृषि से संबंधित नये-नये प्रयोग और प्रयास भी करते रहते हैं।
इन तीनों भाइयों में सबसे बड़े, रोहित ने द बेटर इंडिया को बताया, “नारायणपुर घनी आबादी वाला गाँव है। जहां आम किसानों की जमीनें, बड़े किसानों के मुकाबले छोटे-छोटे भागों में बटी हुई हैं। साथ ही, यहाँ संसाधनों की भी काफी कमी है। इन बातों को ध्यान में रखते हुए, हमने कृषि पर काम करना शुरू किया। क्योंकि, हमारा मानना है कि खेती से गाँव वालों के लिए, रोजगार और आय के स्त्रोत पैदा किये जा सकते हैं।”
उगातें हैं मोती
श्वेतांक ने बनारस हिंदू विश्वविद्यालय से बीई और सोशिऑलोजी में एमए की डिग्री ली है। अपनी पढ़ाई पूरी करने के बाद, वह शिक्षक बनने की तैयारी करने लगे। हालांकि, 2018 में गाँव में एक कृषि एंटरप्राइज़ ‘उदय देव समिति’ के माध्यम से, उन्हें मोती की खेती के बारे में पता चला। श्वेतांक को मोती की खेती का यह कॉन्सेप्ट बहुत अच्छा लगा।
उन्होंने आगे बताया, “मोती पालन के इस अनोखे कॉन्सेप्ट से आकर्षित होकर, मैंने इसके बारे में और अधिक शोध करना शुरू किया। मैंने मोती की खेती का प्रशिक्षण लेने के लिए, ओडिशा के ‘सेंट्रल इंस्टीट्यूट ऑफ फ्रेशवॉटर एक्वाकल्चर’ (C।FA) में दाखिला लेने का फैसला किया। ताकि, मैं अपना खुद का एक बिज़नेस शुरू कर सकू।”
इसके बाद, श्वेतांक अपने गाँव वापस चले गए। फिर 2018 में, उन्होंने अपने घर के पास एक कृत्रिम तालाब में मोती की खेती शुरू कर दी। 2018 के नवंबर तक, उन्होंने डेढ़ लाख रुपये के शुरुआती निवेश के साथ ‘उदेस पर्ल फार्म्स’ शुरू किया।
श्वेतांक के भाई भी अपनी कॉर्पोरेट जॉब छोड़कर, गाँव लौटना चाहते थे। उन दिनों, मोहित एक फाइनेंस कंपनी में और रोहित एक एमएनसी में काम कर रहे थे। काम करने के दौरान ही, सभी भाई आपस में यह विचार करते थे कि वे कैसे अपने गाँव के किसानों को, खेती की इस नई तकनीक से जोड़ें। साथ ही, उनकी आय को बढ़ाने में कैसे मदद कर सकते हैं।
अपने भाई रोहित की सलाह पर, मोहित ने दिल्ली में ‘गांधी दर्शन’ से मधुमक्खी पालन की ट्रेनिंग ली। साथ ही, वह अक्टूबर 2019 में श्वेतांक के साथ काम करने के लिए गाँव वापस लौट आये। जुलाई 2020 तक, तीनों भाई अपनी-अपनी नौकरी छोड़कर, नारायणपुर लौट आए। साथ ही, मोती की खेती में अपना ज्यादा से ज्यादा समय देने लगे।
मोती पालन के तरीके के बारे में बात करते हुए रोहित बताते हैं, “मोती की खेती करने के लिए, लगभग 10×10 फीट के क्षेत्र में, छह फुट गहरा तालाब बनाया जाना चाहिए। फिर, सीपों को इकट्ठा या खरीदा जाना चाहिये। इसके बाद, जीवित सीप में एक छोटा सा न्युक्लिअस डाला जाता है, जिसके चारों ओर एक मोती बन जाता है। जब सीप की भूरे रंग की खोल या शेल को खोला जाता है, तब इसके अंदर नाशपाती के आकार का एक सुंदर मोती मिलता है।”
मोती के प्रकार के आधार पर, मोती बनने की इस पूरी प्रक्रिया में तीन महीने से लेकर, तीन साल तक का समय लग सकता है। मोती तीन प्रकार के होते हैं – डिजाइनर, आधा गोल और पूरा गोल। जहां डिजाइनर मोती की खेती में तीन महीने लगते हैं, वहीं आधे गोल मोती की खेती में 18-20 महीने लगते हैं। इसके अलावा, जो मोती पूरी तरह गोल होते हैं, उन्हें बनने में लगभग तीन साल लगते हैं।
लगभग दो हजार सीपों से शुरू होकर, अब उनके पास उत्तर प्रदेश के आठ जिलों के कई खेतों में, 31 हजार से ज्यादा सीप हैं। बाजार में एक मोती की कीमत 90 से 200 रुपये है, जिससे उन्होंने अपने शुरुआती निवेश के मुकाबले, 10 गुना ज्यादा कमाया है।
फिलहाल, इस फार्म के मोतीयों को हैदराबाद के बाजारों में बेचा जाता है। सभी भाइयों ने मिलकर, आने वाले कुछ महीनों में अपनी मोती की खेती को मध्य प्रदेश, बिहार और पश्चिम बंगाल में भी विस्तार करने की योजना बनाई है।
आय और पहचान
मोती की खेती और मधुमक्खी पालन के बाद, पाठक परिवार ने बकरी पालन और मशरूम जैसी विदेशी सब्जियां उगाना भी शुरू कर दिया है। खेती में सफलता पाने के बाद, यह परिवार गाँव के अन्य लोगों को भी एग्रिकाश के माध्यम से, अपनी खेती के तरीकों के बारे में ट्रेनिंग दे रहे हैं। वे किसानों को उनकी उपज का सही दाम दिलाने में भी मदद कर रहे थे। उसी दौरान, रोहित ने अगस्त 2020 में अपने चाचा जलज के साथ मिलकर, किसानों को बकरी पालन, मधुमक्खी पालन और मोती पालन की ट्रेनिंग (Pearl Farming Training) देने के लिए, एक कंपनी की शुरुआत की।
जलज बताते हैं, “किसानों को अक्सर पारंपरिक खेती के तरीकों के बारे में सही जानकारी न होने के कारण, उन्हें इस खेती में लागत के मुकाबले अच्छा मुनाफा नहीं मिलता है। हमने सोचा कि हम छोटे किसानों को एक अच्छी आय दिलाने में, कैसे मदद कर सकते हैं।”
रोहित कहते हैं, “हमारी ट्रेनिंग और अन्य कार्यों की वजह से, अब गाँव वालों का नौकरी की तलाश में बाहर जाना कम हो रहा है। साथ ही, गाँव में ही उन्हें अपनी आजीविका का साधन मिल रहा है।” अब तक, पाठक परिवार ने पूरे उत्तर प्रदेश में, 180 किसानों को मधुमक्खी पालन और मोती पालन की ट्रेनिंग (Pearl Farming Training) दी है।
जब उन्होंने अपनी अच्छी-खासी कॉर्पोरेट नौकरियों को छोड़कर, गाँव लौटने का फैसला किया, तब उन्हें कुछ संदेह था। लेकिन, समय के साथ पाठक परिवार को राष्ट्रीय स्तर पर पहचान मिली। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी तथा कृषि और किसान कल्याण मंत्रालय ने भी, उन्हें आत्मनिर्भरता को बढ़ावा देने और रोजगार के अवसर पैदा करने के लिए सराहा है।
जलज कहते हैं कि किसानी के लिए, अपनी कॉर्पोरेट नौकरी छोड़ने के निर्णय से वह काफी खुश हैं। वह कहते हैं, “हमने बड़ी कंपनियों में काम करते हुए कई साल बिताए, लेकिन हमेशा यह महसूस होता रहा कि अपने गाँव के लोगों की मदद करने के लिए वहीं जाना जरूरी है, जहां हम पले-बढ़े हैं। हम किसानों को आय का एक जरिया देने के साथ, उनकी विशेष पहचान बनाने में भी मदद कर रहे हैं।”
लोगों को अपना काम शुरू करने के लिए, प्रोत्साहित करते हुए जलज कहते हैं, “मेरा मानना है कि अगर आप किसी चीज पर अपना ध्यान लगाते हैं और उसके लिए कड़ी मेहनत करते हैं, तो आप जरूर सफल होंगे।”
मूल लेख: उर्षिता पंडित
संपादन- जी एन झा
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