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छत पर लगे अडेनियम, बोगेनविलिया, गुलाब, गेंदा, वाटर लिली जैसे फूलों ने दिलाये कई पुरस्कार

Odisha Couple Flower Garden

ओडिशा के भुवनेश्वर में रहनेवाले जयंती साहू और चित्तरंजन साहू पिछले 25 सालों से अपने घर में बागवानी कर रहे हैं। जयंती, गृहिणी हैं और चित्तरंजन, बैंक से रिटायर हो चुके हैं। इस दंपति ने अपने घर को एक सुंदर से बगीचे में बदल दिया है, जहां वे फल-फूल से लेकर हरी सब्जियां तक उपजा रहे हैं। 

द बेटर इंडिया से बात करते हुए जयंती कहती हैं कि गार्डनिंग से उन्हें खास तरह का लगाव है और इसी बागवानी के कारण शहर में आज उनकी अपनी एक अलग पहचान है। वह शहर में आयोजित होने वाली बागवानी से संबंधित कई प्रतियोगिताओं में सम्मान प्राप्त कर चुकी हैं। अपने इस सफर के बारे में उन्होंने बताया, “मेरे पिताजी हमेशा खुद ही परिवार के लिए सब्जियां उगाते थे। मैं हमेशा उन्हें कोई न कोई पौधे लगाते देखती थी। मैंने पिताजी से ही बागवानी के गुर सीखे।” 

विज्ञान विषय में ग्रैजुएशन करने वाली जयंती साहू शादी के बाद, जब ससुराल पहुंची तो देखा कि इस घर में बहुत ज्यादा खुली जगह नहीं है। ऐसे में, उन्हें बागवानी संभव नहीं लग रही थी। लेकिन एक बार वह शहर में किसी फूल महोत्सव में गयी और देखा कि कैसे छोटे-छोटे गमलों में लोगों ने खूबसूरत फूल लगाए हुए हैं। इसके बाद, उन्होंने ठान लिया कि वह गमलों में ही छत पर बागवानी करेंगी। जयंती के शौक को, उनके पति चित्तरंजन का पूरा साथ मिला। इसके लिए उन्होंने सबसे पहले अपने घर की छत को तैयार किया, ताकि बागवानी करने पर कोई समस्या न हो। उन्होंने छत पर गमले रखे, क्यारियां तैयार की।

“शादी के बाद बहुत-सी जिम्मेदारी बढ़ जाती हैं। घर-परिवार को संभालना, बच्चों की पढ़ाई, उनका खेल-कूद, बस इसी सबमें महिलाएं रम जाती हैं। मैं भी इस सबमें व्यस्त होने लगी थी। लेकिन मैंने अपने शौक को नहीं छोड़ा, क्योंकि मुझे लगा कि अगर मैं बागवानी करूंगी तो कुछ समय अपने आप को दे पाऊंगी। इसलिए मैंने सभी कामों के साथ अपने घर में धीरे-धीरे बगीचा लगाना भी शुरू किया,” जयंती ने बताया। 

बगीचे में लगाए अडेनियम, गुलाब, वाटर लिली जैसे फूल

चित्तरंजन ने बताया कि उनके घर में लगभग 400 गमले हैं और कई जगह उन्होंने क्यारियां भी बनाई हुई हैं। उनके बगीचे में 50 से भी ज्यादा तरह के फूल लगे हुए हैं। इसलिए उनके घर को ‘फूलों की बगिया’ कहना भी गलत नहीं होगा। उन्होंने बताया, “हमारे बगीचे में 10 किस्म के बोगेनविलिया हैं और 25 गमलों में अडेनियम लगे हुए हैं। 10 से ज्यादा वाटर लिली और कमल के फूल हैं। इसके अलावा, आर्किड, पैशन फ्लावर, गुलाब, जैस्मिन, अपराजिता, मधुमालती, मालती, आलमंडा, क्लेमेटिस, ब्रह्म कमल आदि भी लगाए हुए हैं।” 

तरह-तरह के फूलों के पौधे तैयार करके जयंती और चित्तरंजन ने शहर में होने वाले वार्षिक फ्लावर शो में भाग लेना शुरू किया। उन्हें कई प्रतियोगिताओं में पुरस्कार भी मिले हैं। उन्होंने एक जगह पर क्यारी बनाकर गेंदे के पौधों को इस तरह से लगाया कि इनमें फूल आने के बाद, यह किसी रंगोली से कम नहीं लगता है। फूलों के पौधों के बाद, उन्होंने फलों के पौधे लगाना शुरू किया।

फलों को छत पर लगाना आसान नहीं था। क्योंकि इससे छत पर वजन बढ़ने का डर था। इसके लिए उन्होंने अलग तरीके से काम किया। उन्होंने प्लास्टिक के बड़े कंटेनर में मिट्टी, खाद, कोकोपीट और सूखे पत्तों का मिश्रण बनाकर डाला। इससे छत पर वजन भी ज्यादा नहीं हुआ और पौधे भी अच्छे से पनपने लगे। 

उन्होंने अमरुद, आम, चीकू, नींबू, और पपीता जैसे पौधे लगाए। वह कहती हैं, “हमारा चीकू का पेड़ तो इतना बड़ा हो गया है कि अब खूब फल आते हैं।” 

बालकनी को बनाया ऑक्सीजन चैम्बर

चित्तरंजन कहते हैं कि उनके घर की बालकनी उनके लिए ऑक्सीजन चैम्बर से कम नहीं है। क्योंकि बालकनी में जयंती ने सभी फोलिएज और इंडोर पौधे लगाए हैं। जिनमें स्नेक प्लांट, फिलॉडेंड्रॉन, मोंस्टेरा आदि शामिल हैं। इसलिए बालकनी में थोड़ी देर बैठते ही, उन्हें एकदम तरोताजा महसूस होने लगता है। सुबह और शाम यह दंपति कुछ पल अपनी बालकनी में जरूर बिताते हैं। फल, फूल और फोलिएज पौधों के साथ-साथ, वे अपने घर के लिए जैविक सब्जियां भी उगा रहे हैं। 

वे बताते हैं, “हम बगीचे में वही सब्जियां लगाते हैं, जो हमारे बच्चे खाना पसंद करते हैं। अपने बगीचे से हम भिंडी, बैंगन, खीरा, चेरी टमाटर, कद्दू और बीन्स उपजा रहे हैं। कुछ सब्जियां हमें बाजार से खरीदनी पड़ती हैं। लेकिन रसोई की लगभग आधी से ज्यादा जरूरत बगीचे से पूरी हो जाती है। कई बार तो कुछ सब्जियां बहुत ज्यादा मात्रा में होती हैं। जैसे इस बार चेरी टमाटर का उत्पादन अधिक हुआ, तो हमने अपने रिश्तेदारों और पड़ोसियों के घर भी पहुंचाए। इस तरह से थोड़ा-बहुत ही सही लेकिन परिवार के लोग जैविक सब्जियां तो खा पा रहे हैं।” 

खासकर कि लॉकडाउन में उन्हें अपने बगीचे से काफी मदद मिली है। उन्होंने बताया कि उन्होंने इस बार सब्जियों के बहुत से बीज लगाए ताकि कोरोना काल में ज्यादा बाहर न जाना पड़े। 

खुद बनाते हैं खाद 

जयंती कहतीं हैं, “हम ‘बगीचा से रसोई और रसोई से बगीचा’- इस कांसेप्ट को फॉलो करते हैं। हम सभी फल-सब्जियों के छिलके को इकट्ठा करके एक कम्पोस्ट बिन में डालते हैं। इसमें थोड़ी मिट्टी और गोबर डालते हैं। साथ ही, बगीचे से निकलने वाला कचरा जैसे सूखे पत्ते भी इसमें डालते हैं। इन सबसे तैयार खाद ही, हम अपने पौधों को देते हैं। इससे अच्छा नतीजा मिलता है। किसी भी तरह का रसायन इस्तेमाल नहीं करते हैं।” पौधों को कीड़े-मकौड़ों से बचाने के लिए, वे नीम के तेल का छिड़काव करते हैं। 

उन्होंने कहा कि वे इस बात का इंतजार नहीं करते हैं कि पौधों को कीड़ा लगे तब वे नीम के तेल का स्प्रे करें। बल्कि महीने में एक-दो बार वे पहले से ही स्प्रे कर देते हैं, ताकि कोई कीड़ा लगे ही नहीं। “वैसे हमारे बगीचे में ज्यादा कीड़े आते भी नहीं हैं। हमारे सभी पौधे अच्छे से पनपते हैं,” उन्होंने बताया। अपने घर के जैविक कचरे के अलावा, वे अपने गली-मोहल्लों में बड़े-बड़े पेड़ों से गिरने वाले सूखे पत्तों को भी इकट्ठा करके इस्तेमाल में लेते हैं। उन्होंने बताया कि सफाई कर्मचारी सड़कों से पत्तों को इकट्ठा करके जला देते हैं। इससे पर्यावरण का नुक्सान ही होता है। लेकिन जब भी इस दंपति को मौका मिलता है, तो वे इन पत्तों को इकट्ठा करवाकर अपने घर में खाद बनाने के लिए प्रयोग करते हैं। 

इसी तरह, अगर उन्हें कभी कोई सब्जी लाने के लिए बाजार जाना पड़े, तो सब्जीवाले से प्याज-लहसुन के बेकार पड़े छिलके भी वे ले आते हैं। इन छिलकों से वे अपने पौधों के लिए पोषक खाद और कीट प्रतिरोधक बना लेते हैं। इस तरह से उनका बगीचा दिन-प्रतिदिन फल-फूल रहा है। अंत में वे कहते हैं, “हमने जो सीखा है एक्सपेरिमेंट करके सीखा है। कई बार असफलता भी मिली, लेकिन हार नहीं मानी। अब हम और नए-नए एक्सपेरिमेंट कर रहे हैं जैसे ‘टावर गार्डनिंग।’ जिसमें कम जगह में ज्यादा पौधे लगाए जाते हैं। हम एक ही गमले में ‘वर्टीकल’ पोजीशन में ज्यादा से ज्यादा फूलों के पौधे लगाने की कोशिश कर रहे हैं। कई में सफलता भी मिली है।” 

अगर आपको भी है बागवानी का शौक और आपने भी अपने घर की बालकनी, किचन या फिर छत को बना रखा है पेड़-पौधों का ठिकाना, तो हमारे साथ साझा करें अपनी #गार्डनगिरी की कहानी। तस्वीरों और सम्पर्क सूत्र के साथ हमें लिख भेजिए अपनी कहानी hindi@thebetterindia.com पर!

संपादन- जी एन झा

वीडियो साभार: अंकिता साहू

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