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हर किसी को गार्डनिंग का शौक नहीं होता है लेकिन कुछ ऐसी परिस्थति बनती है कि ऐसे लोग भी बागवानी की शुरूआत कर देते हैं। ऐसी ही कहानी हरियाणा के गुरुग्राम में रहने वाली रूचिका की है। उन्होंने जब आसपास के लोगों को गार्डनिंग करते हुए देखा और उन्हें महसूस हुआ कि बाजार से वह जो कुछ भी सब्जी लाती हैं, वह ऑर्गेनिक नहीं है तो उन्होंने भी किचन गार्डन की शुरूआत कर दी।
पिछले 6-7 सालों से रूचिका अपने घर के आँगन, बालकनी और छत, हर खाली जगह में गमला, ग्रो बैग आदि में सब्जी उगा रही हैं। होम-साइंस में पढ़ाई करने वाली रूचिका शादी के बाद गुरुग्राम शिफ्ट हुईं। उनकी माने तो उन्हें पहले पेड़-पौधों और मिट्टी से कोई लगाव नहीं था। एक वक़्त था जब उन्हें अपने घर में हर चीज़ बिल्कुल साफ़ चाहिए होती थी। उन्हें लगता था कि अगर घर में पेड़-पौधे होंगे तो मिट्टी होगी, पानी बिखरेगा और कौन इतना साफ़ करेगा। अपनी पढ़ाई के दौरान उनका एक विषय बॉटनी भी हुआ करता था और तब उन्हें प्रैक्टिकल में आलू के लिए खेत तैयार करना था। यह प्रैक्टिकल उनके लिए किसी आफत से कम नहीं रहा।
तो आखिर ऐसा क्या हुआ कि मिट्टी और पौधों से दूर भागने वाली रूचिका आज अपने घर की ज़रूरत की सब्जी खुद उगा रही हैं? इस बारे में उन्होंने द बेटर इंडिया को बताया, "जब मैं गुरुग्राम के डीएलएफ सोसाइटी में रहने लगी तो मैंने अपने आसपास के लोगों को गार्डनिंग करते हुए देखा। सबके घरों में पेड़-पौधे थे। यहाँ की हाउसिंग सोसाइटी गार्डनिंग को लेकर काफी एक्टिव है। शुरू में तो मैं इन सब चीजों से भागती रही लेकिन जब भी पड़ोसियों के यहाँ देखती कि कोई पालक उगा रहा है या फिर मिर्च, हरी सब्जी आदि तो लगा कि मुझे भी कुछ करना चाहिए।"
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अपने आस-पास के लोगों से प्रेरित होकर रूचिका ने फूल के पौधे लगाने लगी। इसके बाद, उन्होंने सब्जियों में थोड़ा हाथ आज़माने की सोची। "मैं यही सोचकर लगाती थी कि बस एक बार करके देखती हूँ। पहली बार मैंने फूलगोभी लगाई थी और मुझे इतनी बड़ी-बड़ी गोभी गार्डन से मिली कि मैंने बहुत से लोगों को बांटी भी। फिर मैंने हरी सब्जियां शुरू की और उनसे भी काफी उपज मिली। गार्डन में जब आपके पेड़-पौधे फलते-फूलते हैं और आपको उपज मिलती है तो जो सुकून मिलता है, वह कहीं और नहीं मिलता। इसलिए मैं कहती हूँ कि प्रकृति मुझे लालच दे रही थी और मैं जो उगाती वह इतने अच्छे से होता था और बस फिर कभी पीछे मुड़कर नहीं देखा," उन्होंने कहा।
रूचिका के गार्डन में आपको हर मौसम में सब्जी मिल जाएगी। फिलहाल, वह सर्दियों की सब्जियों के लिए अपने गार्डन को तैयार कर रही हैं। रुचिका कहती हैं, "2-3 तरह की मूली, 2 -3 किस्म की गाज़र (लाल, पीली, काली), हरी मिर्च, काली मिर्च, फूलगोभी, ब्रोकॉली, सलाद की लगभग 15 किस्में, पुदीना, तुलसी, धनिया, पार्सले, पत्तागोभी, चकुंदर, सरसों, बीन्स आदि अपने गार्डन में उगाती हूँ। इसके अलावा 15-16 किस्म के फूल के पौधे भी हैं।"
अपने पूरे गार्डन की देखभाल रूचिका खुद करती हैं। उनका कहना है कि उनके घर से बहुत ही कम कोई कचरा बाहर जाता है, वह रीसाइक्लिंग, रियूजिंग और कम्पोस्टिंग में विश्वास करती हैं। उनके किचन का सारा वेस्ट खाद और बायोएंजाइम बनाने में इस्तेमाल होता है। यहाँ तक कि उनके गार्डन का भी जो वेस्ट होता है जैसे सूखे पत्ते या फिर पुराने मौसम के सब्जियों के पौधे, बेल जिनसे हार्वेस्ट ले ली गई है और जिन्हें अब निकालना है- सभी कुछ को वह बायोएंजाइम बनाने में इस्तेमाल कर लेती हैं।
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रूचिका अपने घर में कोई केमिकल इस्तेमाल नहीं करती हैं। वह अपने घर के जैविक कचरे से ही लगभग 100 लीटर तक बायोएंजाइम बना लेती हैं, जिसका इस्तेमाल वॉश रूम, किचन अदि की सफाई में होता है। गार्डन के लिए वह सभी कुछ घर पर ही बनातीं हैं। नीम और प्याज के पत्तों से वह जैविक स्प्रे भी बनाती हैं। वह कहती हैं, "अक्सर लोग पूछते हैं कि आप गमले में इतना कैसे उगा लेते हैं तो मैं कहती हूँ कि यह सब जैविक कचरे से बने फ़र्टिलाइज़र और बायोएंजाइम का कमाल है। हमारी मिट्टी के पास हर एक पोषण है जो पौधों को चाहिए लेकिन इस पोषण को एक्टिव करने में मदद ये एंजाइम करते हैं।"
रूचिका ने गार्डनिंग की तकनीक जैसे मल्चिंग और मल्टी-क्रॉपिंग के बारे में भी विस्तार से बताया। उन्होंने कहा कि ज़रूरी नहीं कि इन सब तकनीकों को बड़े खेत में ही किया जा सकता है। आप अपने गमले, ग्रो बैग में भी इसका प्रयोग कर सकते हैं। वह कहती हैं, “आप अपने गार्डन के ही सूखे पत्ते और घास आदि को इकट्ठा करके गमलों में मल्चिंग कर सकते हैं। इससे मिट्टी जल्दी सूखती नहीं है और नमी बनी रहती है। पानी की ज़रूरत भी कम रहती है और धीरे-धीरे ये पत्ते भी गलने-सड़ने लगते हैं और खाद का काम करते हैं।”
ज़रूरी नहीं कि आप एक गमले में कोई एक ही पेड़ लगाएं बल्कि आप सही पौधे चुनकर साथ में लगा सकते हैं। जैसे रुचिका हर्ब्स, तुलसी और कोई बेल एक साथ लगाती हैं। आपको ऐसे साथी पौधे रखने चाहिए, जिनमें से किसी की जड़ें गहरी जाती हो तो किसी की जडें छोटी हो। इस तरह से हम पौधों के बारे में थोड़ी रिसर्च करके सही पौधे साथ में लगा सकते हैं। "जब हम इंसानों को दोस्त के होने से ख़ुशी मिलती है वैसे ही मेरा मानना है कि पौधे भी साथ में ज्यादा खुश रहते हैं," वह कहती हैं।
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गार्डन से उन्हें सब्जियों के अलावा बीज भी मिलते हैं और कुछ अनोखी-प्राकृतिक रोज़मर्रा की चीजें भी। जैसे तोरई को अगर तोड़ने की बजाय बेल पर ही सूखने दिया जाए तो इनसे आपको अगले सीजन के लिए बीज तो मिलेंगे ही, साथ ही प्राकृतिक लूफा भी मिलेगा। जी हाँ, तोरई जब पूरी सूख जाए तो आप इसे तोड़ लें और दोनों सिरों से हल्का सा काटकर, पहले बीजों को निकाल लें। इसके बाद इसे पानी में भिगोएं, थोड़ी नरम होने पर आप आसानी से इसका छिलका उतार पाएंगे और अंदर से आपको जो मिलेगा, उसे आप प्राकृतिक लूफा की तरह इस्तेमाल कर सकते हैं।
ध्यान रहे कि अप इसे उपयोग करके हर रोज़ अच्छे से सुखाएं, इससे इसमें फंगस नहीं लगेगी और यह ज्यादा दिन तक चलेगा।
अंत में रूचिका सबके लिए बस यही संदेश देती हैं कि अगर आपके घर में थोड़ी भी जगह है, तब भी कुछ न कुछ उगाएं। एक मोबाइल खरीदने से पहले हम उसके फीचर्स के बारे में हजार जगह पूछते हैं लेकिन हम क्या खा रहे हैं इसके बारे में हम कभी रिसर्च नहीं करते और न ही पढ़ते हैं। बस खा रहे हैं और अपने बच्चों को खिला रहे हैं। हमने यह सोच बदलने की ज़रूरत है तभी हम एक स्वस्थ ज़िंदगी जी पाएंगे!
रुचिका से संपर्क करने के लिए आप उन्हें उनके इंस्टाग्राम अकाउंट पर फॉलो कर सकते हैं!
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