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जानिए कैसे एक 90 साल पुरानी डायरी से खुला, कोलकाता से कश्मीर तक की साइकिल यात्रा का राज़

By निशा डागर

आजादी से पहले, चार बंगाली युवकों द्वारा साइकिल पर तय किया गया सफर, यात्रा के प्रति रोमांच, धैर्य और प्रेम को दर्शाता है। 90 सालों से सहेजकर रखी गयी इस डायरी में आसनसोल से लाहौर होते हुए इस यात्रा का पूरा विवरण है।

बीना दास : 21 साल की इस क्रांतिकारी की गोलियों ने उड़ा दिए थे अंग्रेज़ों के होश!

By निशा डागर

स्वतंत्रता सेनानी बीना दास का जन्म बंगाल के कृष्णानगर में 24 अगस्त 1911 को प्रसिद्द ब्रह्मसमाजी शिक्षक बेनी माधव दास और समाजसेविका सरला देवी के घर में हुआ था। मात्र 21 साल की उम्र में बीना ने बंगाल के तत्कालीन गवर्नर पर पांच गोलियाँ चलाकर उनकी हत्या का प्रयास किया था।

काकोरी कांड का वह वीर जिसे अंगेज़ों ने तय समय से पहले दे दी फाँसी!

By निशा डागर

राजेन्द्रनाथ लाहिड़ी का जन्म बंगाल के पाबना ज़िले के भड़गा नामक गाँव में 23 जून, 1901 को हुआ था। 9 वर्ष की उम्र में ये बंगाल से बनारस आ गये। एम. ए. की पढ़ाई के दौरान ये क्रांतिकारियों के सम्पर्क में आये और बिस्मिल से जुड़ गये। काकोरी कांड के मुख्य क्रांतिकारियों में एक थे लाहिड़ी।

बाघा जतिन, जिनकी 'जुगांतर पार्टी' से तंग आकर अंग्रेज़ों ने बदल दी अपनी राजधानी!

By निशा डागर

जतिंद्रनाथ मुख़र्जी का जन्म बंगाल के कायाग्राम, कुष्टिया जिला (जो अब बांग्लादेश में है) में 7 दिसंबर 1879 को हुआ था। उन्हें सब 'बाघा जतिन' पुकारते थे। भारतीय स्वतंत्रता संग्राम में उनके योगदान को कभी नहीं भुलाया जा सकता है। उन्होंने ही 'जुगांतर पार्टी' का नेतृत्व किया। अंग्रेज भी बाघा जतिन से खौफ खाते थे।

इश्वर चंद्र विद्यासागर की देख-रेख में, इस साहसी महिला ने किया था भारत का पहला कानूनन विधवा-पुनर्विवाह!

By निशा डागर

ईश्वर चंद्र विद्यासागर जिन्होंने हिन्दू विधवा-पुनर्विवाह का कानून पारित करवाया था। यह एक्ट जुलाई 1856 में पारित हुआ था। इसके बाद उन्होंने कोलकाता में 7 दिसंबर 1856 को एक विधवा लड़की कालीमती का पुनर्विवाह अपने एक साथी चंद्र विद्यारतना से करवाया था। यह देश में कानूनन पहला विधवा-विवाह था।

सखाराम गणेश देउस्कर: 'बंगाल का तिलक,' जिसकी किताब पर अंग्रेज़ों ने लगा दी थी पाबंदी!

By निशा डागर

देउस्कर ने बहुत सारे ऐसे लेख लिखे, जिनका उद्देश्य भारतीय जनता को अपने अतीत और वर्तमान का ज्ञान कराना था। सखाराम गणेश देउस्कर

शांति घोष: वह क्रांतिकारी जिसने 15 साल की उम्र में ब्रिटिश अधिकारी को गोली मारी!

By निशा डागर

शांति घोष भारत के स्वतंत्रता संग्राम की क्रान्तिकारी वीरांगना थीं। उनका जन्म 22 नवंबर 1916 को पश्चिम बंगाल के कोलकाता में हुआ था। उन्होंने 15 साल की उम्र में एक अंग्रेजी अधिकारी को गोली मारी थी। उन्होंने अपनी आत्मकथा 'अरुणबहनी' नाम से लिखी। साल 1989 में 28 मार्च को उन्होंने अपनी आखिरी सांस ली।